ज़रा जाड़े की उस सुबह की कल्पना कीजिए, धुंध इतनी गाढ़ी कि ताज महल का सफ़ेद संगमरमर भी भूत-सा दिखने लगे। हवा में ऐसी सड़ांध कि सांस लेते ही सीने में जलन हो और ठीक ताज के पीछ, यमुना नदी, जिसने कभी मुग़लों का इतिहास देखा, आज ज़हरीले झाग का उबलता कब्रिस्तान बन चुकी है। ऐसा लगता है मानो ताज महल अपनी ही धीमी मौत का मातम मना रहा हो।
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