भारत की राजनीति में विचारधाराएं अब जाति के आगे नतमस्तक हैं। कम्युनिस्ट आंदोलन इतिहास बन चुके हैं, राष्ट्रवाद थका हुआ दिखता है, और धर्म की अफीम भी जातीय दीवारों को ढहाने में असमर्थ रही है। जाति अब भारतीय समाज की आत्मा में गहराई तक समा चुकी है...
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