जयपुर में आयोजित हुआ तीन दिवसीय जन साहित्य पर्व

राजस्थान के जनवादी लेखक संघ और जनसंस्कृति मंच के तत्वावधान में जयपुर स्थित राजस्थान विश्वविद्यालय के श्री शिक्षक सदन में विगत 15, 16 और 17 नवंबर को तीन दिवसीय जन साहित्य पर्व का आयोजन किया गया।

जलियांवाला बाग के अमर बलिदानियों को समर्पित 'भारत के सौ वर्ष' विषयक तीन दिन के इस आयोजन में विभिन्न सत्रों में सुपरिचित बुद्धिजीवियों, लेखकों, पत्रकारों, संस्कृतिकर्मियों व शिक्षकों आदि की मजबूत उपस्थिति में कई विचार-विमर्श हुए।

आयोजन के दौरान हिंदुस्तान की साझा सांस्कृतिक विरासत, जनता के संघर्ष और अहिंसा व शांति के माहौल को स्थापित करने के लिए बीते  सौ सालों में हासिल उपलब्धि पर भी चर्चा हुई।

आयोजन का शुभारंभ 14 नवंबर की शाम मशाल जुलूस के साथ हुआ। अगले दिन जलियांवाला बाग नृशंस हत्याकांड के बाद बाग की झकझोर देने वाली दृश्य प्रस्तुति की गई।

इस मौके पर जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष डॉ. जीवन सिंह ने कहा कि सरकार चाहे अंग्रेजी हो या देशी उसमें अहंकार आए बिना नहीं रहता है। उन्होंने युवाओं से अपील की कि ऐसी स्थिति में युवाओं को आगे आना होगा।

चर्चित लेखिका और पत्रकार शीबा असलम फहमी ने कहा कि संघर्ष और विरासत की राजनीति बहुत गहरी है।

प्रसिद्ध समाज वैज्ञानिक प्रो. आनंद कुमार ने अपने वक्तव्य में व्यक्तिवादिता, भोगवाद, सम्प्रदायवाद, स्त्री का स्वराज, दलित-विमर्श व आदिवासी-विमर्श के बारे में बातें कीं। उन्होंने चिंता जताई कि आज के पत्रकार शब्द-साधना के बजाय सत्ता-साधना कर रहे हैं।

एक अन्य सत्र में 'वैज्ञानिक चेतना, इतिहास एवं धर्म' पर दिनेश अबरोल एवं प्रो. रवि श्रीवास्तव ने अपने विचार रखे। इस सत्र में बोलते हुए दिनेश अबरोल ने कहा कि वैज्ञानिक ज्ञान को मातृभाषा में अर्जन करने पर बल दिया जाना चाहिए। इसी विषय पर बोलते हुए रवि श्रीवास्तव ने कहा कि जिस समाज में परत-दर-परत विभाजन हो वहां विज्ञान या वैज्ञानिक चेतना का विकास संभव नहीं है।

आयोजन के एक विशेष सत्र में वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी ने कहा कि आज मीडिया वह नहीं जो स्वाधीनता प्राप्ति से पूर्व था।

सुपरिचित साहित्यकार पंकज बिष्ट ने कहा कि हमें सोचने की जरूरत है कि अखबार की स्वतंत्रता क्यों खत्म हो गई है।

जन साहित्य पर्व के दूसरे दिन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे प्रसिद्ध सिनेमा विशेषज्ञ, आलोचक जव्वरीमल पारेख ने भारतीय सिनेमा के 123 सालों के इतिहास को उल्लेखित करते हुए कहा कि सिनेमा हमेशा एक महंगा माध्यम रहा है।

दिल्ली विवि के डॉ. विभास वर्मा ने कहा कि पहले सिनेमा देखना बुरा माना जाता था, लेकिन आज सिनेमा से बचा नहीं जा सकता। इसी सत्र में बोलते हुए लेखक, निर्देशक और कलाकार रणवीर सिंह ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी कोई देता नहीं है, यह हमें स्वयं अर्जित करनी पड़ती है।

ओडिशा के वरिष्ठ दलित साहित्यकार बासुदेव सुनानी ने कहा कि हमें साहित्य, समाज, धर्म, राजनीति को अलग-अलग करके नहीं देखना चाहिए क्योंकि ये सब एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय से पधारे हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव संजीव कुमार अपने विचार व्यक्त करते हैं कि वे जलियांवाला बाग शहादत के बाद के सौ सालों को जनतंत्रीकरण और जनवादीकरण के भी सौ साल मानते हैं।

आयोजन के तीसरे दिन जेएनयू के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार, सुरेश देमन तथा शक्ति सिंह ने शिरकत की।

कार्यक्रम के अंत में मुशर्रफ आलम जौकी के नाटक 'बेहद नफरत के दिनों में' का पाठ किया गया।

तीन दिन तक चले सभी सत्रों में चर्चित वक्ताओं, श्रोताओं, शिक्षकों, छात्रों, पत्रकारों संस्कृतिकर्मियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी रही।

Related Items

  1. कन्नड़ साहित्य की अनमोल संपत्ति माने जाते हैं मास्ति वेंकटेश अय्यंगर

  1. साहित्य सृजन को समर्पित हैं मैथिली लेखिका वीणा ठाकुर

  1. भोजपुरी फिल्में और भाषायी साहित्य की संवेदना


Mediabharti