उत्तर प्रदेश में नौकरशाही पर लगाम लगाने की सख्त जरूरत

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक संत, योगी और सनातन धर्म के विशिष्ट प्रचारक हैं। उनकी निष्ठा, ईमानदारी व निश्छलता से सभी परिचित हैं। गोरखपीठ के पीठाधीश्वर के रूप में उनके अनुयायी उन्हें ईश्वर-सदृश मानते हैं। अब सवाल यह है कि ऐसे महान व्यक्तित्व के नेतृत्व बावजूद उत्तर प्रदेश ‘उत्तम प्रदेश’ क्यों नहीं बन पा रहा है?

उत्तर प्रदेश की जनता ने हालिया लोकसभा चुनावों में भाजपा को मात्र 33 सीटें देकर एक विचित्र स्थिति में क्यों पहुंचा दिया है? इतने प्रभावशाली नेतृत्व की छवि के समक्ष यह एक गम्भीर प्रश्नचिह्न है।

यह सब जानते हैं कि दिल्ली की गद्दी का मार्ग उत्तर प्रदेश से होकर जाता है और यदि यह रास्ता ही अवरोधों से भरा रहे तो दिल्ली तक पहुंचना सम्भव नहीं है। यदि इन अवरोधों का निराकरण अतिशीघ्र नहीं किया गया तो भविष्य में भी केन्द्र में सत्तासीन होने का स्वप्न मात्र एक स्वप्न ही रह जाएगा।

इतना ही नहीं, वर्ष 2027 में उत्तर प्रदेश के भावी विधानसभा चुनावों में भी पराजय की आशंका बनी रहेगी। उत्तर प्रदेश के मंत्री और विधायकगण अपनी ही सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि मुख्यमंत्री योगी के निर्देशों के बावजूद कुछ प्रशासनिक अधिकारी जनता के हितार्थ कार्यो के प्रति उदासीन हैं। सम्भवत: उत्तर प्रदेश में यह पहला अवसर है जब मंत्री एवं विधायकों को अपने अधीनस्थ अधिकारियों से कार्य कराने के लिए धरने देने पड़ रहे हैं।

योगी ने प्रदेश के विकास के लिए देश-विदेश के बड़े उद्योगपतियों को प्रदेश में निवेश करने को पिछले साल फरवरी में आमंत्रित किया था। उन सम्भावित निवेशकों के सम्मान में हजारों करोड़ रुपयों का खर्चा भी किया गया था। परन्तु, इन निवेशकों में से अधिकांश निवेशकों ने अभी तक प्रक्रिया की शुरुआत ही नहीं की है। यह एक अत्यंत ही निराशापूर्ण स्थिति है। प्रशासनिक अधिकारियों से यह अपेक्षा की गई थी कि वे निवेशकों की समस्याओं का अतिशीघ्र समाधान करेगें, परन्तु उनका व्यवहार उन निवेशको के प्रति अत्यधिक उपेक्षापूर्ण ही रहा है।

दूसरी ओर, आम जनता अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए सरकारी कार्यालयों में नित्य प्रतिदिन चक्कर काटकर त्रस्त हो रही है। अधिकारियों के निजी सहायकों द्वारा त्रस्त जनता को अधिकारी से मिलने के लिए ईमेल के माध्यम से समय निश्चित करने का निर्देश देते हैं, एक बड़ी संख्या में अशिक्षित व निर्धन जनता यह कैसे करेगी और कितने दिन वे लखनऊ में अपनी समस्याओं के साथ पड़े रहेंगे? ऐसे निर्देश पारित करना सरकार की छवि को धूमिल करने वाला कार्य है। सत्तारूढ़ मंत्री व विधायक प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष असहाय दिख रहे है। ऐसी स्थिति में जनता बीजेपी को अपना सहयोग कैसे प्रदान करेगी, यह एक यक्ष प्रश्न है।

मुख्यमंत्री को भ्रष्ट अधिकारियों पर अंकुश लगाना होगा। जनता में सौहार्द की भावना का विकास करने के लिए, उनके कष्टों का निवारण अतिशीघ्र करना होगा, तभी उत्तर प्रदेश को ‘उत्तम’ प्रदेश बनाने का स्वप्न साकार हो पाएगा।

जनता के मध्य लुभावनी घोषणाएं करने का समय अब नहीं है। त्रस्त जनता की आवश्यकताओं का निराकरण उन्हीं के द्वार पर जाकर करने की जरूरत है। अब मुख्यमंत्री द्वारा अधिकारियों को निष्ठापूर्वक कार्य करने अथवा अपना पद त्याग देने की सख्त हिदायत देनी होगी।

(लेखक आईआईएमटी विश्विद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं)

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