क्या ऐसा भी कोई होगा जो गालिब को न जानता हो...! खैर, जो नहीं जानते हैं, उनके लिए स्वयं गालिब का यह जवाब हाजिर है... “पूछते हैं वो कि 'ग़ालिब' कौन है, कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या”...
Read Moreक्या ऐसा भी कोई होगा जो गालिब को न जानता हो...! खैर, जो नहीं जानते हैं, उनके लिए स्वयं गालिब का यह जवाब हाजिर है... “पूछते हैं वो कि 'ग़ालिब' कौन है, कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या”...
Read More... खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी...! बरसों पुरानी यह कविता ज्यादातर हिंदुस्तानियों को आज भी याद है। इस कविता के माध्यम से कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने जिस तरह से रानी लक्ष्मी बाई के शौर्य का चित्र खींचा है, वैसा विरले ही देखने को मिलता है...
Read Moreआज से करीब 100 साल पहले मदुरै में जब महात्मा गांधी देश के लिए विदेशी कपड़े छोड़कर सूत की धोती को धारण कर रहे थे, उसी समय बिहार के अररिया में शीलानाथ मंडल के यहां एक बालक ने जन्म लिया। बच्चे के जन्म पर परिवार को ऋण लेना पड़ा तो परिवार वाले बच्चे को ‘रेनुआ’ पुकारने लगे। यही रेनुआ अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य प्रेमियों को ऋणी कर गये।
Read Moreहिंदी कथाकार निर्मल वर्मा हिन्दी साहित्य में नई कहानी आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक रहे हैं। पहाड़, शहर, यात्राएं और चेहरे जैसे बिम्बों के सहारे गहरी बात कह जाना उनकी प्रमुख विशेषता रही है...
Read Moreकन्नड़ भाषा के महान साहित्यकार मास्ति वेंकटेश अय्यंगर कन्नड़ कहानी के प्रवर्तक माने जाते हैं। उनकी रचना चिक्क वीरराजेंद्र के लिए उन्हें वर्ष 1983 में, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मास्ति अय्यंगर ने 137 से भी अधिक रचनाएं की, जिनमें से लगभग 119 कन्नड़ भाषा में और शेष अंग्रेजी भाषा में लिखी गई हैं। इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए अभी "सब्सक्राइब करें", महज एक रुपये में, अगले पूरे 24 घंटों के लिए...
Read Moreसाहित्य सृजन एक साधना है। व्यक्ति जीवन की आंच पर तपता है और उन अनुभूतियों को शब्दों के सांचे में ढालकर पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करता है। लेखक अपने अनुभवों को, ठीक-ठीक पाठकों तक पहुंचा दे तो सृजन का एक उद्देश्य सफल होता है। इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए अभी 'सब्सक्राइब करें' महज एक रुपये में, अगले पूरे 24 घंटों के लिए...
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