धर्म, कला और संस्कृति

महाकुंभ का केंद्र प्रयागराज, इतिहास और आध्यात्मिकता से परिपूर्ण एक नगर है। तीर्थस्थल के रूप में इस नगर का अत्याधिक महत्व है। इसे 'तीर्थराज' या तीर्थस्थलों का राजा कहा जाता है। प्राचीन ग्रंथों और यात्रा वृत्तांतों में भी इसका काफी उल्लेख मिलता है...

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सनातन धर्म के शिखर के रूप में प्रतिष्ठित महाकुंभ प्रयागराज में अपनी भव्यता को प्रदर्शित करेगा। ‘तीर्थराज’ के रूप में जाना जाने वाला प्रयागराज एक ऐसा शहर है जहां पौराणिक कथाओं, आध्यात्मिकता और इतिहास का संगम होता है, जो इसे सनातन संस्कृति का एक कालातीत अवतार बनाता है। यह पवित्र भूमि, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां मिलती हैं, दिव्य आशीर्वाद और मोक्ष चाहने वाले लाखों लोगों के लिए एक आध्यात्मिक आकर्षण के रूप में कार्य करता है। भक्ति, ध्यान और आध्यात्मिकता की 'त्रिवेणी' के रूप में महाकुंभ एक दिव्य यात्रा में बदल जाता है।

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दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागमों में से एक महाकुंभ मेला न केवल नदियों का संगम है, बल्कि संस्कृतियों, परंपराओं और कलात्मक अभिव्यक्तियों का भी संगम है।

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प्रयागराज की सर्द सुबह में तीर्थयात्रियों के मधुर जयकारों ने पूरे वातावरण को गुंजायमान कर दिया है। यह गूंज महाकुंभ नगर के केंद्रीय अस्पताल में होने वाली गतिविधियों की मधुर ध्वनि के साथ सहजता से घुल-मिल गई।

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कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है। इसमें लाखों तीर्थयात्री पवित्र नदियों में स्नान के लिए आते हैं। यह स्नान आध्यात्मिक शुद्धि और नवीनीकरण का प्रतीक है। यह हर 12 साल में चार बार क्रमिक रूप से गंगा पर हरिद्वार में, शिप्रा पर उज्जैन में, गोदावरी पर नासिक और प्रयागराज, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है, होता है। अर्द्ध कुंभ मेला हर छह साल में हरिद्वार और प्रयागराज में होता है, जबकि महाकुंभ मेला, एक दुर्लभ और भव्य आयोजन है, जो हर 144 साल में होता है...

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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर चंदखुरी स्थान पर भगवान श्रीराम की मां कौशल्या का प्रसिद्ध मंदिर है। मां कौशल्या का यह मंदिर पूरे भारत में एकमात्र और दुर्लभ तो है ही, साथ ही, यह छत्तीसगढ़ राज्य की गौरवपूर्ण अस्मिता भी है...

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