प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में संपन्न हुए चुनाव प्रचार के दौरान कच्चतिवू टापू को श्रीलंका को देने के फैसले की कड़ी निंदा की थी। उन्होंने इस मुद्दे को तमिलनाडु के मतदाताओं को भाजपा से जोड़ने के लिए कई बार उठाया था। लेकिन, अब दो महीने से अधिक समय बीत चुका है, और प्रधानमंत्री इस विवाद पर खामोश हैं। अभी तक उनकी ओर से कोई कदम नहीं बढ़ाया गया है।
कच्चतिवू टापू साल 1974 में एक संधि के माध्यम से गैर-संवैधानिक तरीके से श्रीलंका को दिया गया था। उस समय, मैंने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर इस फैसले को रोकने का प्रयास किया था, लेकिन आपातकाल के कारण याचिका खारिज हो गई थी।
अब, हम प्रधानमंत्री से मांग करते हैं कि वह इस टापू के पुनर्विलय के लिए ठोस कदम उठाएं। यह टापू भारत का अभिन्न अंग है, और यह भारत को वापस मिलना चाहिए। हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ेंगे और भारत के हित में कार्रवाई करेंगे।
साल 1974 में कच्चतिवू द्वीप का श्रीलंका को हस्तांतरण भारतीय संविधान का स्पष्ट उल्लंघन था। भारतीय संसद की मंजूरी के बिना दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित संधि देश की संप्रभुता का घोर उल्लंघन है। यह जरूरी है कि भारत सरकार इस संधि को रद्द करने और द्वीप को देश में वापस एकीकृत करने के लिए तत्काल कार्रवाई करे।
साल 1974 में दिल्ली उच्च न्यायालय में मेरी याचिका इस असंवैधानिक हस्तांतरण को रोकने का एक प्रयास थी। दुर्भाग्य से, उस समय लगाए गए आपातकाल के कारण याचिका खारिज कर दी गई। हालांकि, यह इस तथ्य को नकारता नहीं है कि हस्तांतरण अवैध था और लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ भी...।
कच्चतिवू द्वीप भारत के क्षेत्रीय जल का एक अभिन्न अंग है, और श्रीलंका को इसका हस्तांतरण देश की सुरक्षा के लिए रणनीतिक निहितार्थ रखता है। भारतीय तट से द्वीप की निकटता और पाक जलडमरूमध्य में इसका स्थान इसे समुद्री व्यापार और रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु बनाता है।
इसके अलावा, द्वीप के हस्तांतरण से भारतीय मछुआरों पर भी महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव पड़ा है, जिन्हें उनके पारंपरिक मछली पकड़ने के क्षेत्रों तक पहुंच से वंचित कर दिया गया है। इससे मछली पकड़ने पर निर्भर हजारों परिवारों की आजीविका छिन गई है।
इस मुद्दे पर भारत सरकार की निष्क्रियता देश के हितों के साथ समझ से परे है। अब समय आ गया है कि सरकार 1974 की संधि को रद्द करने और कच्चतिवू द्वीप को पुनः प्राप्त करने के लिए ठोस कदम उठाए। यह कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से या अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की मांग करके किया जा सकता है।
कच्चतिवू द्वीप का भारत के साथ एकीकरण न केवल राष्ट्रीय गौरव का विषय है, बल्कि देश की सुरक्षा और आर्थिक हितों के लिए भी आवश्यक है। देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना कि उसके नागरिकों के हितों से समझौता न हो, भारतीय सरकार की जिम्मेदारी है।
कच्चतिवू द्वीप का श्रीलंका को असंवैधानिक हस्तांतरण एक अन्याय है, जिसे सुधारने की आवश्यकता है। भारत सरकार को 1974 की संधि को रद्द करने और द्वीप को वापस देश में एकीकृत करने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। यह न केवल राष्ट्रीय हित का मामला है, बल्कि भारत के नागरिकों के प्रति नैतिक दायित्व भी है।
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