भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन काल में कई इमारतों और सभागारों का निर्माण कराया था। उनके इन निर्माण कार्यों से उनके एक कुशल वास्तुविद होने का प्रमाण मिलता है।
महाभारत में द्वारका और इन्द्रप्रस्थ नगर का विस्तृत वर्णन मिलता है। इस ग्रंथ के सभा पर्व में ऐसे कई अन्य विधान कक्षों के निर्माण का भी मनोरम वर्णन है। हरिवंश पुराण में विष्णु पर्व के अध्याय 98 में द्वारका के आकार का वर्णन मिलता है। यहां गया है कि जब जनसंख्या विस्तार के कारण नगर छोटा पड़ गया तो फिर उसे और बड़ा करने की योजना बनानी पड़ी। ऐसी परिस्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने उसे तोड़कर एक बड़े नगर की भव्य योजना बनाई और उसका पुनर्निर्माण कराया गया।
पाण्डवों के राजसूय यज्ञ में आए हुए राजकीय अतिथियों को जिन आवासों ठहराया गया था, उनके निर्माण में भगवान श्रीकृष्ण का महती योगदान था। ये सुवासित कक्ष, उपयुक्त आसन, परिधान तथा शालाओं से युक्त थे।
उधर, इन्द्रप्रस्थ की दीवारों के ऊपर तरह-तरह के आक्रमणकारी यन्त्रों की व्यवस्था थी। उनके प्रयोग के लिए कुशल योद्धाओं की नियुक्ति की जाती थी।
इस तरह के कई उदाहरणों के चलते समस्त भारतीय कला चिन्तन में भी तदनुकूल भागवती सृष्टि की व्यापकता और श्रीकृष्ण के प्रभाव का दर्शन होता है।
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