कार्तिक का वह महीना जब कृष्ण कहलाने लगे ‘दामोदर’...

कृष्ण को हम कन्हैया, कुंजबिहारी, राधेश्याम, बांकेबिहारी, नंदलाल और कई अन्य नामों से जानते हैं। इन्हीं में से उनका एक नाम ‘दामोदर’ भी है। ‘दामोदर’ शब्द में दाम का अर्थ होता है 'रस्सी' और उदर का अर्थ होता है 'पेट', यानी रस्सी से बंधा हुआ पेट। कृष्ण को ‘दामोदर’ के नाम से पुकारे जाने के पीछे एक रोचक कहानी है।

एक बार मां यशोदा जब बाल कृष्ण की शरारतों से तंग आ गईं तो उन्होंने उन्हें रस्सी से बांधना चाहा। लेकिन, जिस भी रस्सी से वह कृष्ण को बांधती वह दो अंगुल छोटी रह जाती। ऐसा करते-करते मां यशोदा ने बहुत सी रस्सियों से कृष्ण को बांध दिया, लेकिन रस्सी फिर भी थोड़ी सी छोटी ही रह जाती। लेकिन, जब कृष्ण ने देखा कि मां ऐसा करते-करते थक गई हैं तो फिर वह स्वयं ही रस्सी से बंध गए और ‘दामोदर’ कहलाए।

इसके बाद, मां यशोदा कृष्ण को ओखली से बांधकर अपने काम में लग गईं और कृष्ण ओखली को खींचकर आंगन में खड़े यमलार्जुन वृक्षों तक ले गए। उन्होंने ओखली को दोनों वृक्षों में अड़ाकर जोर से झटका दिया। इससे दोनों वृक्ष उखड़कर नीचे गिर गए। उन वृक्षों से दो सुंदर पुरुष निकले और वे कृष्ण को प्रणाम कर अपने लोक चले गए।

ये दोनों कुबेर के पुत्र नलकुबेर और मणिग्रीव थे, जो कैलाश पर्वत पर रहते थे। वे दोनों  भगवान शिव के भक्त थे और उनकी कृपा से उनको अथाह धन संपदा प्राप्त हुई। धन वैभव के मद में चूर होकर उन्होंने शिव भक्ति छोड़ दी और अपना जीवन भोग विलास में बिताने लगे।

एक बार ये दोनों स्त्रियों के साथ जलक्रीड़ा कर रहे थे तो संयोगवश नारद वहां से गुजरे। स्त्रियों ने तो नारद को देखकर वस्त्र धारण कर लिए। लेकिन, ये दोनों अभिमान के वशीभूत होकर वहीं पर खड़े रहे। उनकी उदण्डता देखकर नारद ने उन दोनों को श्राप दिया कि लोकपाल के पुत्र होकर भी तुम दोनों ने अभिमानवश कपड़े नहीं पहने हैं और वृक्ष की भांति खड़े रहे, इसलिए, तुम दोनों गोकुल में जाकर वृक्ष बन जाओ। दोनों को जब अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने नारद से क्षमा मांगी और अपने उद्धार का उपाय पूछा। नारद ने उनके क्षमा मांगने पर कहा कि जब द्वापर युग में कृष्ण अवतार लेंगे तब तुम दोनों का उद्धार होगा। उसके पश्चात वे दोनों गोकुल में पेड़ बनकर उग आए।

इधर, वृक्षों के गिरने की आवाज सुनकर मां यशोदा दौड़ी आई और कृष्ण को गोद में उठाकर गले से लगा लिया और उनको सकुशलता देखकर उनकी बलईयां लेने लगीं। जब यह घटना घटी तब कार्तिक का महीना था। इसलिए, कार्तिक मास को ‘दामोदर’ मास भी कहा जाता है।

दामोदर मास के दौरान कृष्ण की दामोदर लीला और ‘श्री कृष्ण दामोदर अष्टकम’ पढ़ना विशेष फलदाई माना जाता है।

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