इस बार बदला-बदला नजर आया नववर्ष आयोजनों का स्वरूप...

पूरे विश्व का माहौल नए साल पर हर बार खुशनुमा होता है। हर देश में अपने-अपने तरीके से अंग्रेजी नववर्ष का स्वागत किया जाता है।

भारत में भारतीय काल गणना के अनुसार पारंपरिक नया साल नव विक्रम संवत के रूप में चैत्र महीने से शुरू होता है। यहां प्रमुख त्योहारों के समय का निर्धारण इसी के अनुसार होता है।

नव वर्ष का शुभारंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से माना जाता है, लेकिन पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध व विश्वव्यापी अंग्रेजी कलेंडर की मान्यता के चलते भारतीय नव विक्रम संवत मनाने की परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। भारत में शादी-विवाह, विभिन्न धार्मिक आयोजनों और अन्य प्रमुख कार्यों का मुहूर्त भी हिन्दू नवसंवत्सर के अनुसार ही निकाला जाता है।

पिछले कुछ दशकों से भारत में अंग्रेजी नववर्ष को अंग्रेजों की भांति ही मनाया जाने लगा था। इस दौरान यहां जगह-जगह ग्लैमरस पार्टियों का आयोजन होने लगा। लेकिन, पिछले कुछ सालों से यहां अंग्रेजी नववर्ष मनाने का स्वरूप बदला है। आज की युवा पीढ़ी का एक बड़ा वर्ग अंग्रेजी नववर्ष का स्वागत मंदिरों में पूजा पाठ और घरों में धार्मिक आयोजन के साथ कर रहा है। अंग्रेजी नववर्ष में पूजा-पाठ या जगह-जगह भंडारों के आयोजनों से दुनिया के बाकी समुदाय भी भारतीय संस्कृति की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। इसी तरह से भारत के लोग यदि अपनी संस्कृति को सहेज कर रखेंगे तो निश्चित ही आने वाले समय में अपना देश बाहर के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनने लगेगा।

एक तरफ हम अंग्रेजी नववर्ष का स्वागत तो करते ही हैं। साथ ही, हमें अपने पारंपरिक नए साल नव विक्रम संवत को भी मनाना नहीं भूलना चाहिए। एक हद तक भारत देश के लोगों में अपने पारंपरिक नववर्ष के लिए जागरूकता बढ़ने लगी है। लेकिन, अभी और आगे बढ़ने की जरूरत है। हम अंग्रेजी नववर्ष की पाश्चात्य संस्कृति को अपने भारतीय परिवेश में बदल सकते हैं। हमारे देश के प्रमुख संगठनों, धार्मिक गुरुओं और सरकारों को इसके लिए कदम उठाने चाहिए।

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