साल 2018 में साहसिक दृष्टिकोण के साथ एक बीज बोया गया, जिसका लक्ष्य क्षेत्रीय आर्थिक विभाजन को पाटना और भारत के विविध जिलों में आत्मनिर्भरता का पोषण करना था। एक जिला एक उत्पाद यानी ओडीओपी नाम के इस बीज का उद्देश्य एकल प्रतिष्ठित उत्पाद के माध्यम से प्रत्येक जिले की अनूठी शक्तियों की पहचान करना, उसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाना और स्थानीय समाज को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाना था।
ओडीओपी पहल के तहत देशभर के 760 से अधिक जिलों के एक हजार से अधिक उत्पादों की पहचान की गई है। पूरे भारत में, एक जिला-एक उत्पाद पहल की जीवंत छवि के नीचे परिवर्तन की उल्लेखनीय कहानियां छिपी हुई हैं।
Read in English: ODOP transforming agricultural landscapes
ऐसी ही एक कहानी कश्मीर से आई। यहां की बर्फीली हवाओं के बीच, शोपियां के सेब विश्व तक पहुंचने की संभावनाओं से चमक रहे हैं। ओडीओपी का जादुई स्पर्श, संबंधित जिलों और राज्यों को आर्थिक और आत्मनिर्भरता के धागों में पिरोता जा रहा है। सेबों के उत्पादन में 20 प्रतिशत की शानदार वृद्धि देखने को मिली है जो इस क्षेत्र में आर्थिक विकास की संभावना को दर्शाती है।
हिमालय के मनभावन दृश्यों के बीच रचा-बसा उत्तरकाशी, आत्मनिर्भरता के लिए आवश्यक परिवर्तनकारी शक्ति पर विशेष जोर दे रहा है। इसी ओर कदम बढ़ाते हुए गैर सरकारी संगठनों, स्थानीय प्रशासन और 700 से अधिक किसानों को 15 प्रशिक्षण सत्रों के माध्यम से जैविक खेती कौशल से सशक्त किया गया है। एक हजार से अधिक लाभार्थियों को महत्वपूर्ण उपकरण भी प्रदान किए गए हैं। इसके फलस्वरूप यहां पर लाल चावल का उत्पादन 25 फीसदी बढ़ गया है। यह आत्मनिर्भर भारत की सफलता की कहानी न केवल उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को सशक्त करती है, बल्कि टिकाऊ कृषि पद्धतियों के साथ इसके भविष्य को भी मजबूत करती है।
भारत के पूर्वी घाट में स्थित ‘अराकू वैली कॉफी’ अपने स्वाद और समृद्ध सुगंध से मन मोह लेती है। यह कॉफी स्थानीय समाज के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है। लगभग डेढ़ लाख आदिवासी परिवार, कॉफी बोर्ड और एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी के साथ मिलकर इस बेशकीमती पेय को उत्पादित कर रहे हैं। पारंपरिक तरीकों का सम्मान करते हुए उत्पादनकर्ताओं ने 20 फीसदी की जबर्दस्त वृद्धि हासिल की है। गिरीजन को-ऑपरेटिव कॉरपोरेशन द्वारा प्राप्त एक करोड़ से अधिक के ऋण ने भी उत्पादन की बढ़ोतरी में अहम भूमिका निभाई है। अराकू घाटी का यह पेय पदार्थ आत्मनिर्भर भारत का एक सामुदायिक गान है।
ओडिशा के कंधमाल जिले में उगने वाली सुगंधित हल्दी भारत की दूसरी सबसे बड़ी उत्पाद है। आत्मनिर्भरता की गाथा गाती यह हल्दी न केवल स्वादिष्ट और औषधीय गुणों से भरपूर है, बल्कि आर्थिक विकास की प्रेरणा भी बन गई है। इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए, वित्तीय योजनाओं से सशक्त पांच हजार से अधिक प्रशिक्षित कर्मचारी, 1,300 किसानों के साथ मिलकर घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अपनी धाक जमा रहे हैं। सरकारी खरीद में 70 फीसदी की वृद्धि ने सफलता की गाथा में चार चांद लगा दिए हैं। इस प्रगति ने आदिवासियों के आत्मविश्वास को बढ़ाया है और कंधमाल को आत्मनिर्भर भारत की ओर अग्रसर किया है।
पंजाब का बठिंडा शहर अब एक नई पहचान बना रहा है। यहां का शहद अब दुनियाभर में अपनी धाक जमा रहा है। स्थानीय स्तर पर सुलभता से उपलब्ध परीक्षण प्रयोगशालाएं, मधुमक्खी पालकों को समय बचाने और गुणवत्तापूर्ण मधु उत्पादन में मदद कर रही हैं। सब्सिडी, ऋण और प्रधानमंत्री माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज जैसी सरकारी मददों से मधुमक्खी पालक आर्थिक रूप से सशक्त बन रहे हैं। बेहतर ब्रांडिंग और पैकेजिंग मधु को बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बना रही है। इन प्रयासों के फलस्वरूप शहद उत्पादन में 30 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है।
बुरहानपुर के बेहतर गुणवत्ता वाले केले मध्य प्रदेश के दिल में बसी एक मीठी सफलता की कहानी बयां कर रहे हैं। ओडीओपी के अंतर्गत मिल रहे नवाचार और किसानों के समर्थन के परिणामस्वरूप उत्पादन में 15 फीसदी की वृद्धि हुई है। बुरहानपुर क्षेत्र में केले से प्राप्त आर्थिक मिठास से संतोषजनक वातावरण का निर्माण हो रहा है। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2023 सहित वैश्विक आयोजनों में इस उत्पाद की भागीदारी ने बुरहानपुर की आर्थिक झलक को प्रदर्शित किया है, जिससे विश्व मंच पर इसका स्वाद और निखर कर सामने आया है।
इस प्रकार, कश्मीरी सेब से लेकर आंध्र प्रदेश की कॉफी तक, ओडीओपी की सफलता नवाचार और विजय की कहानियों से बुनी गई है। प्रत्येक जिले का अनोखा उत्पाद, जो कभी स्थानीय बाजारों तक ही सीमित था, अब विश्व मंच पर चमक रहा है, वैश्विक स्तर पर लोगों को लुभा रहा है और अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा प्राप्त कर रहा है।
सुनहरे उत्पादों से परे, ओडीओपी केवल एक अभियान नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की एक क्रांति है। ओडीओपी, क्षेत्र-विशिष्ट उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को ऊपर उठाता है बल्कि आत्मनिर्भर और विकसित भारत की संकल्पना में भी योगदान देता है। यह तो इस सफल यात्रा की शुरूआत है, अभी भी मीलों संभावनाओं की खोज की जानी है, नए सूत्र बुने जाने हैं और अनकही कहानियां बताई जानी हैं। जैसे-जैसे ओडीओपी की मुहिम आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे ओडीओपी की मीठी महक हवाओं को सुगंधित करने लगी है।
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