पहले हों चुनाव सुधार, फिर हो ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की बात

भारत सरकार द्वारा ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ के लिए जोर देने से उन महत्वपूर्ण मुद्दों की अनदेखी हो रही है, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। एकल चुनाव प्रारूप को अपनाने से पहले, समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए व्यापक चुनावी सुधार आवश्यक हैं। 

मुख्य सुधारों में सबसे पहले आबादी की चार सालों से लंबित गणना, जनसंख्या गतिशीलता के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों को युक्तिसंगत बनाना, राजनीतिक दलों का लोकतांत्रिककरण व पारदर्शिता सुनिश्चित करना तथा वंशवादी शासन को समाप्त करना शामिल है। 

बाहुबल और राजनीतिक हिंसा से निपटने के उपायों के साथ-साथ कैंपेन फंड्स का सख्त विनियमन भी बहुत आवश्यक है। उम्मीदवारों की राजनीति, सामाजिक पृष्ठभूमि की जांच, शैक्षिक योग्यता और सार्वजनिक सेवा का ट्रैक रिकॉर्ड उम्मीदवारी के लिए अनिवार्य होना चाहिए।

ये सुधार चुनावों में धन और शक्ति के प्रभाव को कम करने में मदद करेंगे। इससे नागरिकों के हितों की सेवा करने वाली लोकतांत्रिक प्रक्रिया सुनिश्चित होगी। तभी, एकीकृत चुनाव प्रारूप पर विचार किया जा सकता है। इन परिवर्तनों को लागू करने से अनुचित परिणामों को रोका जा सकेगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि उम्मीदवारों का मूल्यांकन योग्यता और विचारों के आधार पर किया जाए, राजनीतिक प्रणाली की अखंडता को बनाए रखा जाए तथा परिणामों में लोगों की सच्ची इच्छा को प्रतिबिंबित किया जाए। 

केंद्र सरकार को चुनावी प्रक्रिया को सुधारने और उसे कारगर बनाने के लिए कई अन्य बुनियादी ‘तत्काल’ कदम भी उठाने होंगे। राजनीतिक दलों के ढांचे को लोकतांत्रिक और पारदर्शी बनाने की जरूरत है। राजनीतिक संगठनों में वंशवादी शासन को खत्म करने के लिए भी तुरंत प्रभावी उपाय किए जाने चाहिए।

आज के राजनीतिक परिदृश्य में, चुनावी मैदान को सभी के लिए एक जैसा करने और धन व बाहुबल के प्रभाव को कम करने के लिए कठोर चुनावी सुधारों की आवश्यकता बहुत बढ़ गई है। चुनावों में धन और बल का अत्याधिक प्रभाव लोकतंत्र के मूल तत्व को कमजोर करता है और अनुचित परिणामों को जन्म दे सकता है जो वास्तव में लोगों की इच्छा को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।

चुनावों में बाहुबल के इस्तेमाल से निपटने के सभी उपलब्ध उपाय करने होंगे। राजनीतिक हिंसा और धमकी का लोकतांत्रिक समाज में कोई स्थान नहीं है। ऐसा करने पर त्वरित कार्रवाई आवश्यक है। कानून प्रवर्तन को मजबूत करना और मतदाताओं व उम्मीदवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने से चुनाव परिणामों को विकृत होने से रोकने में मदद मिल सकती है।

इस प्रकार, जब ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ विचार के अपने गुण हो सकते हैं, तो यह भी जरूरी है कि हम पहले अपनी चुनावी प्रणाली को प्रभावित करने वाले बुनियादी मुद्दों पर नजर जरूर डालें। तभी, हम पूरे देश के लिए एकीकृत चुनाव प्रारूप के कार्यान्वयन पर विचार कर सकते हैं।

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