खेल संस्कृति को पुनर्जीवित करना स्वस्थ समाज के लिए बेहद जरूरी

बीते गुरुवार को चार खेल रत्न और 32 अर्जुन पुरस्कारों की घोषणा से खेल बिरादरी में जोश और उम्मीदें जागृत हुई हैं। यह मौका है भारत में वर्तमान खेल परिदृश्य पर गंभीरता से विचार करने का क्योंकि राजनैतिक दखलंदाजी और व्यावसायिकता ने खेल संस्कृति को गलत दिशा में मोड़ दिया है।

जहां ये राष्ट्रीय पुरस्कार प्रतिष्ठित मान्यताओं व उत्कृष्टता का सम्मान करती हैं, वहीं वे एक स्पष्ट अंतर को भी उजागर करती हैं। भारत में अभी भी एक मजबूत खेल संस्कृति का अभाव है। चरित्र निर्माण के लिए आवश्यक खेल अब तक हर उम्र, लिंग और पेशे से परे, प्रत्येक नागरिक के जीवन का अभिन्न अंग बन जाना चाहिए।

Read in English: Reviving sporting culture in India is vital for a healthy society

राष्ट्र निर्माण के लिए एक मजबूत खेल संस्कृति को प्रोत्साहित करना वक्त की मांग है। खेल भावना एकता को बढ़ावा देती है, गर्व की भावना पैदा करती है और देश के सामूहिक संकल्प को मजबूत करती है। इतिहास में कई उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि कैसे खेल आयोजन राजनीतिक और सामाजिक विभाजन को पार करते हैं। उदाहरण के लिए, ग्रीस में प्राचीन ओलंपिक खेल केवल खेल आयोजन नहीं थे, बल्कि धार्मिक उत्सव भी थे, जो ग्रीक शहर-राज्यों के एथलीटों को एक साथ लाते थे, अस्थायी रूप से शत्रुता को रोकते थे और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देते थे।

इसी तरह, भारत में महाभारत और रामायण जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों में कुश्ती और तीरंदाजी को योद्धा प्रशिक्षण के अभिन्न अंग के रूप में दर्शाया गया है, जिसमें न केवल शारीरिक कौशल बल्कि अनुशासन, साहस और खेल कौशल पर भी जोर दिया गया। श्री कृष्ण को खेल-कूद में काफी रुचि थी। खेल-खेल में उनकी गेंद यमुना में चली गई और कालिय नाग का उद्धार हुआ। ये प्राचीन कथाएं खेलों और एक मजबूत और एकजुट समाज के विकास के बीच गहरे संबंध को उजागर करती हैं।

व्यक्तिगत स्तर पर, खेल अनुशासन, समय की पाबंदी, टीम वर्क और लचीलापन सिखाते हैं। ये मूल्य जो एक मजबूत चरित्र और एक उत्पादक समाज की नींव रखते हैं। वरिष्ठ पत्रकार अजय झा कहते हैं कि खेलों में भाग लेने से निष्पक्ष खेल, नियमों के प्रति सम्मान और जीत और हार दोनों को शालीनता से संभालने की क्षमता विकसित होती है। ये जीवन के सबक खेल के मैदान से आगे तक फैले हुए हैं, जो व्यक्तियों को अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में अधिक आत्मविश्वास और अनुकूलनशीलता के साथ चुनौतियों का सामना करने के लिए सशक्त बनाते हैं।

दुर्भाग्य से, कोविड के बाद, घर से काम करने के मॉडल के प्रसार ने एक गतिहीन जीवन शैली को और बढ़ा दिया है। डॉ देवाशीष भट्टाचार्य के अनुसार, बच्चे और वयस्क समान रूप से शारीरिक गतिविधियों में संलग्न होने की तुलना में स्क्रीन से चिपके रहने में अधिक समय बिताते हैं। यह प्रवृत्ति मोटापे, हृदय संबंधी बीमारियों और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करती है।

प्रो. पारस नाथ चौधरी कहते हैं कि खेलों में घुसपैठ कर रही खिलाड़ियों की पशु मेलों की तरह नीलामी करने वाली व्यावसायिकता एक नकारात्मक मानसिकता है, जो खेलों के सार को कमज़ोर करती है। खेल का आनंद लिया जाना चाहिए, न कि केवल मनोरंजन के रूप में या व्यावसायिक लाभ के लिए इसका दोहन किया जाए। ।

इस नकारात्मकता से निपटने के लिए, खेलों को केवल शौक के रूप में नहीं बल्कि एक आदत के रूप में बढ़ावा दिया जाना चाहिए। स्कूलों, कार्यस्थलों और समुदायों को शारीरिक गतिविधियों को प्राथमिकता देनी चाहिए। उन्हें और ज्यादा सुलभ और आकर्षक बनाना चाहिए। इसमें बेहतर खेल सुविधाएं बनाना, अंतर-विद्यालय और अंतर-कार्यालय प्रतियोगिताएं आयोजित कराना और सामुदायिक खेल लीगों में भागीदारी को प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है। सामाजिक कार्यकर्ता मुक्ता गुप्ता कहती हैं कि माता-पिता व शिक्षकों द्वारा बच्चों को बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। उनके समग्र स्वास्थ्य के लिए शारीरिक गतिविधियों के महत्व पर ज़ोर देना चाहिए।

राष्ट्र के नीति निर्माताओं को बुनियादी ढांचे और जमीनी स्तर के कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिए। इसमें स्थानीय स्तर पर खेल सुविधाओं के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराना, कोचिंग कार्यक्रमों का समर्थन करना और युवा प्रतिभाओं की पहचान करना तथा उनका पोषण करना शामिल है। सरकारी पहलों को ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों को बढ़ावा देने, सभी नागरिकों के लिए समान पहुंच और अवसर सुनिश्चित करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

खेल रत्न और अर्जुन जैसे पुरस्कारों के माध्यम से उपलब्धियों का जश्न मनाना आवश्यक है, लेकिन भागीदारी को व्यापक बनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आइए…! हम एक ऐसे समाज का लक्ष्य बनाएं जहां खेल अपवाद न हों, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका हो। एक ऐसा समाज जो लाभ से ज़्यादा खेलने के आनंद को महत्व देता हो और व्यापार से ज़्यादा चरित्र को परिष्कृत करता हो। भारत की खेल भावना को पुनर्जीवित करके, हम न केवल एक स्वस्थ और अधिक सक्रिय आबादी बना सकते हैं, बल्कि एक अधिक एकजुट, लचीला और समृद्ध राष्ट्र भी बना सकते हैं।

Related Items

  1. बांग्लादेश की दुर्दशा और भारत की नई भूमिका

  1. भारत के नौनिहाल हो रहे हैं गणित से बेहाल...!

  1. आस्था, संस्कृति व आध्यात्मिक विरासत का पवित्र संगम है महाकुंभ



Mediabharti