छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर चंदखुरी स्थान पर भगवान श्रीराम की मां कौशल्या का प्रसिद्ध मंदिर है। मां कौशल्या का यह मंदिर पूरे भारत में एकमात्र और दुर्लभ तो है ही, साथ ही, यह छत्तीसगढ़ राज्य की गौरवपूर्ण अस्मिता भी है। मां कौशल्या को मातृत्व की जीवन्त प्रतिमा माना जाता है। उन्हें दया, माया, ममता, तप, त्याग व बलिदान की प्रतिमूर्ति कहा जाता है।
रामायण काल में छत्तीसगढ़ का अधिकांश भाग दण्डकारण्य क्षेत्र के अंतर्गत आता था। यह क्षेत्र उन दिनों ‘दक्षिणापथ’ भी कहलाता था। यह रामवनगमन पथ के अंतर्गत है, इस कारण श्रीराम के यहां वनवास काल में आने की जनश्रुति मिलती है। उनकी माता की जन्मस्थली होने के कारण उनका इस क्षेत्र में आगमन ननिहाल होने की पुष्टि करता है।
वाल्मिकी रामायण के अनुसार युवराज दशरथ के अभिषेक के अवसर पर कौशल नरेश भानुमंत को अयोध्या आमंत्रित किया गया था। इसी अवसर पर पिता के साथ आई राजकुमारी भानुमति की सुंदरता पर मुग्ध होकर युवराज दशरथ ने उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। कालांतर में युवराज दशरथ एवं कौशल की राजकन्या भानुमति का विवाह हुआ। कौशल की राजकुमारी भानुमति को विवाह उपरांत ‘कौशल्या’ कहा जाने लगा। बाद में, रानी कौशल्या ने श्रीराम को जन्म दिया।
चंद्रखुरी स्थित कौशल्या मंदिर का जीर्णोद्धार साल 1973 में किया गया था। पुरातात्विक दृष्टि से इस मंदिर के अवशेष सोमवंशी कालीन आठवीं-नौंवी शती के माने जाते हैं। यहां स्थित जलसेन तालाब में एक पुल बनाया गया है। पुल से जाकर इस मंदिर के प्रांगण में पहुंचा जा सकता है। जलसेन तालाब लगभग 16 एकड़ क्षेत्र में फैला है। इस सुंदर तालाब के चारों और लबालब भरे पानी में तैरते हुए कमल पत्र व पुष्प की मौजूदगी इस जलाशय की सुंदरता को बढ़ा देती है।
चंद्रखुरी सैंकड़ों साल तक ‘चंद्रपुरी’ के रूप में जानी जाती थी। चंद्रपुरी का अर्थ ‘देवताओं की नगरी’ होता है। पूर्व में, जलसेन तालाब इस क्षेत्र का सबसे बड़ा तालाब था। कहा जाता है कि इसके चारों ओर 126 दूसरे तालाब भी थे। फिलहाल, इनमें से 20-22 तालाब ही बचे हैं।
मां कौशल्या के विवाह के संबंध में प्रचलित एक अन्य कथा के अनुसार, राजकुमारी कौशल्या के विवाह योग्य होने पर वर की तलाश में चारों दिशाओं में दूत भेजे गए। उसी समय, अयोध्या के राजा दशरथ ने साम्राज्य विस्तार अभियान के तहत कौशल के राजा को मैत्री या युद्ध का संदेश भेजा। राजा को भ्रम हो गया कि अयोध्या के राजा दशरथ उनके राज्य को अपने अधीन करना चाहते हैं। स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रता प्रिय होने के कारण उन्होंने युद्ध का विकल्प चुना। दोनों के बीच घोर युद्ध हुआ। अंतत: कौशल नरेश पराजित हो गए। तब राजा दशरथ ने उन्हें अपने अधीन नहीं किया, बल्कि उनके सामने मैत्री का प्रस्ताव रखा। उन्होंने इस मैत्री को संबंधों में बदलने का प्रस्ताव रखा और इसी के चलते कौशल नरेश ने बेटी कौशल्या का विवाह राजा दशरथ से कर दिया। राजा दशरथ ने कौशल्या को महारानी का गौरव और सम्मान दिया।
कौशल्या धार्मिक प्रवृत्ति का थीं। वह अनेक व्रत रखती थीं और नित्य ब्राह्मणों को दान देती थीं। पुराणों में दशरथ और कौशल्या को कश्यप और अदिति का अवतार भी माना गया। पुराणों के अनसार, प्राचीन काल में मनु और शतरूपा ने वृद्धावस्था आने पर घोर तपस्या की। दोनों एक पैर पर खड़े रहकर भगवान का जाप करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। मनु ने बड़े संकोच से अपने मन की बात कही, “प्रभु! हम दोनों की इच्छा है कि किसी जन्म में आप हमारे पुत्र रूप में जन्म लें।” ‘ऐसा ही होगा वत्स!’ भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि त्रेतायुग में मेरा सातवां अवतार ‘राम’ के रूप में होगा। “त्रेता युग में तुम अयोध्या के राजा दशरथ के रूप में जन्म लोगे और तुम्हारी पत्नी शतरूपा तुम्हारी पटरानी कौशल्या होगी। तब मैं दुष्ट रावण का संहार करने माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लूंगा।”
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