आगरा में स्थानीय मेलों और सांस्कृतिक गतिविधियों की समृद्ध परंपरा लगभग 40 साल पहले तक हमारे मोहल्लों और बाज़ारों में फलती-फूलती थी। दुर्भाग्य से, हमारे सामुदायिक जीवन का यह जीवंत हिस्सा काफी हद तक लुप्त हो गया है।
सरकारी व्यावसायिक आयोजन, जैसे ताज महोत्सव, कार्निवल, होटलों में प्रदर्शनियां तो होती हैं, परन्तु पुराने जमाने के मेले, तमाशे, ताज सिटी में अब नहीं होते। हमारे शहर और इसके निवासियों के लाभ के लिए इसे पुनर्जीवित करने का एक जबर्दस्त अवसर है।
Read in English: Agra needs to revive local fairs and cultural activities
इतिहासकार राज किशोर राजे बताते हैं कि स्थानीय मेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसे कि नुमाइश, कबूतरबाजी, पतंगबाजी, अखाड़ेबाजी, प्रतियोगिताएं और यमुना में सामूहिक तैराकी मेलों ने विभिन्न इलाकों के लोगों को इकट्ठा किया, जिससे समुदाय और अपनेपन की भावना को बढ़ावा मिला। इन आयोजनों ने न केवल हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को उजागर किया, बल्कि स्थानीय कारीगरों, संगीतकारों और विक्रेताओं को अपनी प्रतिभा और सामान दिखाने के लिए एक मंच भी प्रदान किया, जिसने आगरा की सांस्कृतिक ताने-बाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कुछ आयोजन तो मुगलों के ज़माने से चल रहे हैं। जन कवि नजीर अकबराबादी ने तो आगरा के मेलों पर काफी कुछ लिखा है।
ताज महोत्सव से पहले तक, स्थानीय बाजार समिति के सहयोग से प्रत्येक मोहल्ला समिति वार्षिक मेला आयोजित किया करती थीं। नगर पालिका प्रकाश, सफाई, पानी के टैंकर उपलब्ध कराती थी। स्थानीय मंदिरों के देवी या देवता को जुलूस के रूप में निकाला जाता था। हमारे यहां भैरों का मेला, पथवारी का मेला, कचहरी घाट का मेला, शाह गंज का मेला, ताज गंज का मेला आदि लगते थे। स्थानीय उत्पाद, खाद्य पदार्थ, खिलौने व दूसरे सामान बेचे जाते थे। रामलीला मैदान में वार्षिक नुमाइश का आयोजन होता था। वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना कहते हैं कि दुर्भाग्य से आधुनिकीकरण की पागल दौड़ में ये सांस्कृतिक पदचिह्न कहीं खो गए हैं। इस सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने और संरक्षण की जरूरत है। हमारी सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग, स्थानीय संस्कृति जीर्णोद्धार की हकदार है।
इन मेलों के पुनरुद्धार से कई महत्वपूर्ण लाभ हो सकते हैं। स्थानीय मेले अपनेपन की मजबूत भावना पैदा करते हैं। वे लोगों को एक साथ आने, बातचीत करने और हमारी विविधता का जश्न मनाने के लिए एक जगह प्रदान करते हैं। यह एकता सामाजिक बंधन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकती है।
साथ ही, स्थानीय मेले स्थानीय और दूरस्थ पर्यटक, दोनों को आकर्षित करके अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकते हैं। स्थानीय उत्पादों, हस्तशिल्प और पाक कला के व्यंजनों को बढ़ावा देकर, हम छोटे व्यवसायों और कलाकारों का समर्थन कर सकते हैं, जिससे उन्हें फलने-फूलने के लिए एक बहुत ज़रूरी मंच मिल सके।
इन आयोजनों को पुनर्जीवित करने से हमारी स्थानीय परंपराओं, कला रूपों और लोक कथाओं को संरक्षित करने में मदद मिलेगी, जिन्हें भुला दिए जाने का खतरा खड़ा हो गया है। यह एक अंतर-पीढ़ीगत आदान-प्रदान की अनुमति देता है, जहां बुजुर्ग अपने ज्ञान को युवा पीढ़ी तक पहुंचा सकते हैं।
उद्योग जगत से जुड़े राजीव गुप्ता बताते हैं कि पूर्व में स्थानीय आयोजनों को देखने दूर-दूर से पर्यटक आते थे, जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिलता था। आगरा, ऐतिहासिक महत्व का एक शहर होने के नाते, अपने पर्यटन को बढ़ाने के लिए इन स्थानीय मेलों का लाभ उठा सकता है। आगंतुक अक्सर ऐसी अनुभवात्मक गतिविधियों की ओर आकर्षित होते हैं जो किसी स्थान की संस्कृति, परंपराओं और रोज़मर्रा की ज़िंदगी की झलक प्रदान करती हैं।
डॉ देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं कि यमुना के आसपास होने वाले कार्यक्रम, जैसे सामूहिक तैराकी और अन्य गतिविधियां, शारीरिक स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देते हैं। प्रकृति से जुड़ना और सामुदायिक गतिविधियों में भाग लेना मानसिक स्वास्थ्य, आनंद और उद्देश्य की भावना को बढ़ा सकता है।
इन सब वजहों के देखते हुए आगरा नगर निगम को अब नए सिरे से स्थानीय मेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को फिर शुरू करने पर विचार करना चाहिए। यह पहल मौसमी मेलों, स्थानीय कारीगरों के लिए कार्यशालाओं, स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रदर्शन और सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने वाली सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं के आयोजन का रूप ले सकती है। स्थानीय स्कूलों और संस्थानों को शामिल करने से युवा पीढ़ी में हमारी संस्कृति के प्रति गर्व की भावना भी पैदा हो सकती है।
जब हम आगरा के विकास की ओर देखते हैं, तो हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत के महत्व और हमारे समुदाय को एक साथ लाने में इसकी भूमिका को नहीं भूलना चाहिए। इन परंपराओं को बहाल करके हम एक अधिक जीवंत, एकजुट और आर्थिक रूप से समृद्ध आगरा का निर्माण कर सकते हैं।
Related Items
संकट में है शहर आगरा, ‘हॉर्न’बाज़ी का फैला आतंक
लुप्त होती उम्मीदें : अब गोद लेने को नहीं मिल रहे हैं बच्चे...!
नकारात्मक प्रचार का शिकार है आगरा शहर