भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनजातीय आबादी है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में जनजातीय जनसंख्या कुल जनसंख्या की लगभग 8.9 फीसदी है। पूरे देश में जनजातीय लोगों के पास अद्वितीय जीवनशैली और रीति-रिवाजों के साथ समृद्ध परंपराएं, संस्कृतियां और विरासत हैं।
खासी-गारो आंदोलन, मिज़ो आंदोलन व कोल आंदोलन आदि जैसे जनजातीय आंदोलन भारत के इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम के अभिन्न अध्याय हैं। गोंड महारानी वीर दुर्गावती की वीरता हो या रानी कमलापति का बलिदान, देश इन्हें भूल नहीं सकता है। वीर महाराणा प्रताप के संघर्ष की कल्पना उन वीर भीलों के बिना नहीं की जा सकती जिन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी और अपने जीवन का बलिदान किया। ऐसे कई जनजातीय नायक हैं, जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति दी।
Read in English: Tribal empowerment in transforming India
जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद करते हुए और उनकी विरासत को चिह्नित करते हुए केंद्र सरकार ने महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को 15 नवंबर, 2021 से जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। स्वतंत्रता के बाद देश में पहली बार जनजातीय समाज की कला तथा संस्कृति और स्वतंत्रता आंदोलन एवं राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को गर्व के साथ याद किया जा रहा है। यह घोषणा जनजातीय समुदायों के गौरवशाली इतिहास को स्वीकार करती है और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की दिशा में उनके प्रयासों को मान्यता देती है।
कुल 18 राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में ये जनजातियां बिखरी हुई, दूररदराज के इलाकों और दुर्गम बस्तियों और वन क्षेत्रों में रहती हैं। इसलिए, इन परिवारों और बस्तियों को सड़क व दूरसंचार कनेक्टिविटी, बिजली, सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य व पोषण तथा स्थायी आजीविका के अवसर तक बेहतर पहुंच जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए एक मिशन की योजना बनाई गई है।
जनजातीय समुदायों के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने की रक्षा करने और राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका को रेखांकित करने की आवश्यकता को समझते हुए भारत के संविधान निर्माताओं ने जनजातीय संस्कृति की सुरक्षा और अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए विशेष प्रावधान किए। इनमें उनकी भाषा, लिपि और अन्य सांस्कृतिक तत्वों का संरक्षण, उनके शैक्षिक हितों को सुनिश्चित करना, आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना और राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए कदम उठाना शामिल है।
उपरोक्त संवैधानिक सुरक्षा उपायों के अलावा अनुसूचित जनजातियों के एकीकृत सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अधिक केंद्रित दृष्टिकोण प्रदान करने के उद्देश्य से साल 1999 में जनजातीय कार्य मंत्रालय नामक एक अलग मंत्रालय की स्थापना की गई थी। इस मंत्रालय के कार्यक्रमों और योजनाओं का उद्देश्य अन्य केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों और स्वयंसेवी संगठनों को मदद करना और पूरक बनाना तथा वित्तीय सहायता के माध्यम से एसटी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए संस्थानों और कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण खाई को पाटना है।
जनजातीय सशक्तिकरण के लिए एक अन्य पहल में, अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम, 2006 को संसद द्वारा वनों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों को मान्यता देने और वनों में उनके निहित हितों की रक्षा करने के लिए अधिनियमित किया गया था। ये वनवासी पीढ़ियों से वन भूमि में निवास कर रहे हैं, लेकिन पैतृक भूमि और उनके आवास पर उनके अधिकारों को पर्याप्त रूप से मान्यता नहीं दी गई है, जो उनके साथ बड़ा अन्याय है। यह अधिनियम 31 दिसंबर 2007 को लागू हुआ। अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी नियम, 2007 को 1 जनवरी 2008 को अधिसूचित किया गया था।
इस अधिनियम के तहत, मई 2014 तक कुल 23,578 सामुदायिक अधिकार दिए गए जबकि 2014 से जून 2023 की अवधि के दौरान देशभर में 86,621 सामुदायिक अधिकार दिए गए हैं। एफआरए की शुरुआत से मई 2014 तक की अवधि के दौरान वितरित भूमि की कुल सीमा 55.30 लाख एकड़ थी, जबकि साल 2014 से जून 2023 की अवधि के दौरान 122.60 लाख एकड़ जमीन दी गई है, जो मई, 2014 तक की अवधि के दौरान वितरित की गई भूमि का लगभग दोगुना है। देशभर में बीते 30 जून तक कुल 177.90 लाख एकड़ वन भूमि वितरित की गई है।
आवासीय स्कूली सुविधाओं के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों में एसटी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय की स्थापना की गई है। अभी 401 ईएमआरएस में 1.2 लाख से अधिक छात्र पढ़ रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि ईएमआरएस में महिला छात्रों की संख्या पुरुष छात्रों से अधिक है। इसके अलावा, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों के लिए कुल 38 हजार शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों की भर्ती की जा रही है, जिससे 3.5 लाख जनजातीय छात्रों को लाभ होगा।
प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक स्तर से लेकर विदेश में उच्च शिक्षा तक की पढ़ाई के लिए एसटी छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए कई फेलोशिप और छात्रवृत्ति कार्यक्रम भी शुरू किए गए हैं। विशेष रूप से, पिछले नौ वर्षों के दौरान, कुल 3.15 करोड़ जनजातीय छात्रों को अप्रैल 2014 से सितंबर 2023 तक 17,087 करोड़ रुपये से अधिक की छात्रवृत्ति व फ़ेलोशिप दी गई हैं।
जनजातीय समुदायों के कल्याण को प्राथमिकता देते हुए, जनजातीय कार्य मंत्रालय का बजट आवंटन 2013-14 के 4295.94 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2023-24 में 12461.88 करोड़ रुपये कर दिया गया है जो लगभग 190.01 प्रतिशत की वृद्धि है।
संविधान के अनुच्छेद 275(1) के तहत राज्यों को धन जारी किया जाता है ताकि वे जनजातीय कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य द्वारा शुरू की जा सकने वाली विकास योजनाओं की लागत को पूरा करने में सक्षम हो सकें। प्रधानमंत्री वनबंधु विकास योजना के तहत, एसटी युवाओं द्वारा उद्यमिता व स्टार्ट-अप परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए एक उद्यम पूंजी कोष स्थापित किया गया है। लघु वन उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित किया जाता है और प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन के माध्यम से जनजातीय उत्पादों के लिए विपणन सहायता प्रदान की जाती है। इस मिशन के तहत, स्वीकृत वन धन विकास केंद्र की कुल संख्या 3958 है, जबकि 398.49 करोड़ रुपये का वितरण किया गया है। इस योजना से कुल 183412 जनजातीय लोग जुड़े हुए हैं।
इसके अलावा, अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनों को शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका में परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास महासंघ यानी ट्राइफेड भारत के जनजातीय समुदायों के बीच आजीविका विकास के लिए खुदरा विपणन करने में मदद करता है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए वार्षिक बजट अनुमान में 288 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया गया है, जिसे ट्राइफेड के माध्यम से विशेष रूप से स्वयं सहायता समूहों और उत्पादक उद्यमों के गठन के माध्यम से लागू किया जाएगा।
ट्राइफेड के तहत, बीते 18 अप्रैल को मणिपुर में पूर्वोत्तर क्षेत्र की अनुसूचित जनजातियों के लाभ के लिए एक केंद्रीय योजना 'उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के जनजातीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए विपणन और लॉजिस्टिक विकास शुरू की गई थी।
प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना का उद्देश्य अधिक जनजातीय आबादी वाले गांवों में बुनियादी ढांचा प्रदान करना है। इस योजना के तहत, 50 प्रतिशत जनजातीय आबादी और 500 अनुसूचित जनजाति वाले 36428 गांवों की पहचान इन गांवों में बुनियादी ढांचा सुविधाएं प्रदान करने के लिए की गई है, जिसमें नीति आयोग द्वारा पहचाने गए आकांक्षी जिलों के गांव भी शामिल हैं।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने सिकल सेल रोग सहित हीमोग्लोबिनोपैथी को नियंत्रित करने और रोकने के लिए एक व्यापक दिशानिर्देश तैयार किया है और इसे राज्यों को भेजा गया है।
मिशन इंद्रधनुष जैसी अन्य स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं का उद्देश्य दो साल तक के बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए सभी उपलब्ध टीकों के साथ पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित करना और कोविड-19 के नि:शुल्क टीकों का प्रावधान करना है। इन योजनाओं के द्वारा जनजातीय समुदायों पर विशेष ध्यान दिया गया है। जनजातीय समूहों के विशेष संदर्भ में एक और महत्वपूर्ण योजना निक्षय मित्र पहल है, जो तपेदिक का इलाज पाने वाले लोगों का अतिरिक्त नैदानिक, पोषण और व्यावसायिक सहायता सुनिश्चित करती है।
उपरोक्त के अलावा, जनजातीय अनुसंधान संस्थान को सहायता प्रदान करने वाली योजना का उद्देश्य अनुसंधान, दस्तावेज तैयार करने, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण गतिविधियों को पूरा करने के लिए टीआरआई को मजबूत करना है तथा टीआरआई को समग्र जनजातीय विकास को पूरा करने वाले ज्ञान केंद्र के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाना है।
जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के अलावा, सरकार के अन्य मंत्रालयों के अंतर्गत की गई पहलों द्वारा जनजातीय कल्याण पर ध्यान केन्द्रित किया गया, चाहे वह किसी भी क्षेत्र और प्रांत के हों। प्रधानमंत्री आवास योजना और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत क्रमशः आवास और सड़क सम्पर्क से लेकर जन धन खातों के माध्यम से वित्तीय सशक्तिकरण, स्वयं सहायता समूहों का गठन और मुद्रा योजना तक, विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों ने जनजातीय समुदायों को बहुत लाभ पहुंचाया है।
राजस्थान-गुजरात सीमा के नजदीक स्थित, मानगढ़ धाम, वह स्थान है जहां 1913 में अंग्रेजों की सामूहिक गोलीबारी में 1500 से अधिक भील स्वतंत्रता सेनानियों की जान चली गई थी। मानगढ़ धाम को जनजातीय विरासत और उनकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करने वाले एक राष्ट्रीय स्मारक के रूप में राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारों की संयुक्त परियोजना के रूप में विकसित किया जाएगा।
हाल के दिनों में अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। उदाहरण के लिए, एसटी की साक्षरता दर 2011 में 59 प्रतिशत से बढ़कर आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार जुलाई 2020-जून 2021 में 71.6 प्रतिशत हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप समग्र और एसटी साक्षरता के बीच का अंतर 2001-2011 के बीच 14 प्रतिशत से घटकर 2011-2021 के बीच 7.5 प्रतिशत पर आ गया।
उच्च प्राथमिक स्तर पर सकल नामांकन अनुपात 91.3 (2013-14) से सुधरकर 98 (2021-22) हो गया है; माध्यमिक स्तर पर अनुसूचित जनजातीय छात्रों के लिए जीईआर 70.2 (2013-14) से बढ़कर 78.1 (2021-22) हो गया है; वरिष्ठ माध्यमिक स्तर पर एसटी छात्रों के लिए जीईआर 35.4 (2013-14) से बढ़कर 52.0 (2021-22) हो गया है और उच्च शिक्षा स्तर पर एसटी छात्रों के लिए जीईआर 13.7 (2014-15) से बढ़कर 18.9 (2020-21) हो गया है।
सरकार द्वारा उठाए गए अन्य कदमों के साथ-साथ इन सभी पहलों ने जनजातीय समुदायों को उनकी संस्कृतियों, विरासतों और जीवन के तरीकों का सम्मान करते हुए मुख्यधारा में लाने का मार्ग प्रशस्त किया है।
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