दिल्ली से पश्चिमी यूपी के बीच डेढ़ दशक तक छाया रहा मावी का आतंक

मथुरा में गहराईयों तक जुड़ी रही मावी के आपराधिक सम्बन्धों की जड़े

मथुरा। गैंगेस्टर ब्रजेश मावी की अपराधिक पेशा दुनिया का कार्य क्षेत्र चाहे दिल्ली से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों तक फैला हुआ था परंतु मथुरा में उसके शुभचिंतकों की फेहरिस्त काफी लंबी थी। मथुरा में मावी के शुभचिंतकों की इस फेहरिस्त को यदि रेखांकित करने बैठें तो पता लगेगा कि उसमें न सिर्फ राजनीतिज्ञ बल्कि प्रसिद्ध डॉक्टर, तथाकथित पत्रकार और नामचीन व्यापारी तथा उद्योगपति भी शामिल थे। कृष्णा नगर के एक प्रसिद्ध डॉक्टर और उनके छोटे भाई से तो मावी की घनिष्ठता इस कदर थी कि वह उनके साथ आये दिन शराब की महफिल सजाने बैठता था। बाद में जब मावी ने उधार की आड़ में इसी डॉक्टर और उसके भाई से आये दिन चैथ वसूली शुरू कर दी तो वह उससे कन्नी काटने लगे। ब्रजेश मावी ने भी डॉक्टर फैमिली के व्यवहार में आये बदलाव को भांपकर अपना पैंतरा बदल लिया और फिर उसने उन्हें अपना इन्फॉरमर बनने को राजी किया। बताया जाता है कि इन्फॉर्मर बनकर कृष्णा नगर में अपना नर्सिंग होम चलाने वाले इस डॉक्टर ने बाद में अपने कई हमपेशा लोगों को मावी का शिकार बनवाया जिसमें एक भूतेश्वर स्थित नर्सिंग होम संचालक डॉक्टर तथा एक मथुरा-वृंदावन रोड पर मसानी क्षेत्र में नर्सिंग होम चलाने वाला डॉक्टर भी है। जहां तक सवाल मशहूर फिजीशियन डॉ. उमेश माहेश्वरी के अपहरण में ब्रजेश मावी की संलिप्तता का है, तो उसका नाम माहेश्वरी अपहरण केस में नहीं आया अलबत्ता तत्कालीन सीओ सिटी आलोक प्रियदर्शी और एक अपर पुलिस अधीक्षक, अपने अधीनस्थों की टीम के साथ ब्रजेश मावी से पूछताछ करने दिल्ली जरूर गये थे क्योंकि मावी तब दिल्ली पुलिस की हिरासत में था। कहा जाता है उसने माहेश्वरी अपहरण कांड से खुद को बचाये रखने के लिए ही दिल्ली पुलिस से सेंटिंग करके खुद को अरेस्ट करवाया था। 

मथुरा की पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस की हिरासत में जब ब्रजेश मावी से यह जानना चाहा कि क्या डॉ. उमेश माहेश्वरी के अपहरण में उसका हाथ है, तो उसने बेखौफ होकर मथुरा पुलिस से कहा कि यदि डॉ. माहेश्वरी के परिजन यह कह रहे हों कि मैंने अपहरण किया है तो मैंने ही किया होगा। मावी जानता था कि उसके खिलाफ मुंह खोलने की जुर्रत कोई नहीं करेगा। इसके बाद दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच, ब्रजेश मावी को अपने साथ मथुरा लाई और उसने कृष्णा नगर के उसी नर्सिंग होम संचालक डॉक्टर तथा उसके भाई को मावी से रूबरू कराया जिसके इशारे पर वह मथुरा के दूसरे डॉक्टर्स से चैथ वसूला करता था। बताया जाता है कि ब्रजेश मावी ने तब इस डॉक्टर व इसके भाई का पूरा कच्चा चिठ्ठा दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के सामने खोलकर रख दिया था और बताया था कि कब-कब और कितना-कितना पैसा उसने किन-किन डॉक्टर्स से उक्त डॉक्टर व उसके भाई के कहने पर वसूला है। मावी ने तब यह जानकारी भी दी कि उसकी प्रत्येक गतिविधियों से उक्त डॉक्टर तथा उसका भाई भलीभांति परिचित रहते थे। ब्रजेश मावी के खुलासे पर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच उक्त डॉक्टर और उसके भाई को अपने साथ पूछताछ के लिए ले जाने की तैयारी कर ही रही थी कि डॉक्टर ने एक गेम खेल दिया। डॉक्टर ने मथुरा के एक पुलिस अधिकारी को सेटिंग के तहत तब दो लाख रुपए देकर एक प्रार्थना पत्र इस आशय का दिया कि दिल्ली पुलिस बिना किसी ठोस आधार के एक अपराधी के कहने पर मुझे ले जाना चाहती है जो कानूनन सही नहीं है।

चूंकि दिल्ली पुलिस ने न तो अपने आने की सूचना मथुरा पुलिस को दी थी और ना ही उनका कोई परोक्ष सहयोग लिया था इसलिए उसे इस प्रार्थना पत्र के बाद खाली हाथ लौटना पड़ा। बताया जाता है कि ब्रजेश मावी का डॉ. उमेश माहेश्वरी के अपहरण में हाथ तो था और इसने इसका भी राजफाश दिल्ली पुलिस की मौजूदगी में किया था परंतु दिल्ली पुलिस की उमेश माहेश्वरी के अपहरण कांड में कोई रुचि नहीं थी। वह तो मावी को इसलिए दिल्ली से मथुरा लेकर आई थी ताकि उसके नेटवर्क का पता लगा सके। 

इधर मथुरा पुलिस और विशेष रूप से तत्कालीन सीओ सिटी आलोक प्रियदर्शी को भी माहेश्वरी अपहरण कांड में कोई रुचि नहीं रह गई थी क्योंकि डॉ. उमेश माहेश्वरी का परिवार अपने स्तर से उन्हें मुक्त कराने के प्रयास कर रहा था और इसमें उनका सहयोग तब कृष्ण जन्मस्थान की सुरक्षा में तैनात एक तेज-तर्रार सीओ त्रिदीप सिंह कर रहे थे। यह बात आलोक प्रियदर्शी तथा मथुरा में तैनात दूसरे बड़े पुलिस अफसरों को भारी नागवार गुजरी और अंततः उन्होंने अपने ही विभाग के सीओ त्रिदीप सिंह को माहेश्वरी अपहरण कांड का प्रमुख सूत्रधार बनाकर आरोप पत्र अदालत में दायर कर दिया। पुलिस ने सीओ को अपहरण का आरोपी तो बनाया ही, साथ ही माहेश्वरी परिवार द्वारा दी गई फिरौती की कुल रकम में से करीब 11 लाख रुपए की रिकवरी भी सीओ के घर से दिखा दी। पुलिस ने सीओ के अलावा साथनी अलीगढ़ के कुख्यात अपराधी प्रेम सिंह उर्फ बॉबी तथा अलीगढ़ में तैनात एलआईयू के एक सब इंस्पेक्टर को भी मुख्य आरोपियों में शुमार किया। इस तरह पुलिस की आपसी टसल ने ब्रजेश मावी को माहेश्वरी अपहरण कांड से पूरी तरह अलग करा दिया और जिसका ब्रजेश मावी को फिर पूरा लाभ मिला।

ब्रजेश मावी ने उसके बाद मथुरा में अपने कथित सफेदपोश शुभचिंतकों के माध्यम से एक प्रसिद्ध हलवाई को भी अपना लक्ष्य बनाया तथा काफी पैसा वसूला। बाद में इस हलवाई के माध्यम से दूसरे व्यापारी और उद्योगपतियों से चैथ वसूली की। उक्त प्रसिद्ध हलवाई ने मावी के माध्यम से अपने कई काम करवाये और कई निशाने भी साधे। इसी तरह भूतेश्वर स्थित नर्सिंग होम संचालक के इशारे पर उससे टसल रखने वाले एक होटल मालिक को टारगेट किया। जिन लोगों को ब्रजेश मावी ने अपने सफेदपोश सहयोगियों के माध्यम से टारगेट किया उनमें कृष्णा नगर के एक जूता व्यवसाई तथा डेम्पियर नगर का एक गिफ्ट एंपोरियम का मालिक भी था।

दरअसल ब्रजेश मावी जिस व्यक्ति को अपना शिकार बनाता था, उसी व्यक्ति को कुछ दिनों बाद इस बात के लिए तैयार कर लेता था कि वह उसके लिए इन्फॉर्मर का कार्य करे तथा ऐसे लोगों की जानकारी उसे दे जिससे उसकी टसल हो और वह उनसे चैथ वसूल सके।

मावी के शिकार बने लोग इसलिए उसके इस झांसे में आ जाते थे कि उन्हें इस तरह एक ओर जहां अपनी दुश्मनी निकालने का मौका मिल जाता था, वहीं दूसरी ओर वह अपनी जेब से पैसा देने से बच जाते थे। ब्रजेश मावी ने इसी तरह अपने कुछ सहपाठियों, सफेदपोश शुभचिंतकों तथा पुराने शिकार रहे लोगों के सहयोग से मथुरा के अनेक लोगों को जमकर दुहा। 

ब्रजेश मावी की मथुरा में गहरी पैठ तथा सफेदपोश लोगों से उसके ताल्लुकात की पुष्टि उसके मर्डर से भी होती है। जो प्रमोद चैधरी और गोपाल यादव ब्रजेश मावी के साथ हाथरस के कुख्यात अपराधी राजेश टोंटा के घर गए थे और जिन्होंने पुलिस को मावी की हत्या कर दिए जाने संबंधी जानकारी दी है, उनकी छवि अब तक कम से कम अपराधी की तो नहीं है। प्रमोद चैधरी तो भारतीय जनता पार्टी का नेता है। अब विचारणीय प्रश्न यह है कि प्रमोद चैधरी तथा गोपाल यादव जैसे लोगों का एक कुख्यात अपराधी से क्या वास्ता था? क्यों वह उसके इतने निकट थे कि उसके जमीनी कारोबार का भी हिस्सा बनने गए थे? प्रमोद चैधरी और गोपाल यादव तो केवल ऐसे दो नाम हैं जो आज सामने आ चुके हैं, अलबत्ता मथुरा में ऐसे तत्वों की कमी नहीं जिनके कारण ब्रजेश मावी ने मथुरा को अपना प्रमुख कार्यक्षेत्र बना रखा था और जिनके सहयोग से वह मथुरा में बेखौफ आता-जाता था।

ब्रजेश मावी के इन सफेदपोश सहयोगियों में एसे तत्व भी हैं जिनकी पुलिस अफसरों से निकटता सर्वविदित है और जो पुलिस की सारी गोपनीय जानकारी उस तक पहुंचाते रहे हैं। पुलिस यदि आज भी इन सफेदपोशों का पता लगाकर उनके खिलाफ समुचित कानूनी कार्यवाही करे तो उसे बड़ी सफलता मिल सकती है अन्यथा आज भले ही एक मावी अपने ही साथी का शिकार बन गया हो परंतु फिर कोई दूसरा मावी खड़ा हो जायेगा और जरायम का यह पेशा इसी तरह हमेशा चलता रहेगा।

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