विविधा और व्यंग्य

साल 1973 में जब बॉबी फिल्म आई थी, करोड़ों बूढ़े और जवानों में करेंट आ गया था। सोलह वर्ष में प्यार हो जाने से जूली को पहचान मिली। किशोरावस्था के प्यार और रोमांस के किस्से सदियों से आकर्षित करते रहे हैं।

Read More

आज के युवा पति, नीले प्लास्टिक ड्रम और सीमेंट के बोरों से डरते हैं, मानो ये कोई जानलेवा संकेत बन गए हों। वहीं, संयुक्त परिवारों की बुजुर्ग सासें अब शादी के बर्तन नहीं, ‘कटोरे’ इस डर से खरीद रही हैं कि बहू अब केवल रसोई तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसके इरादे कहीं और हैं।

Read More

बॉलीवुड फिल्मों ने गोरेपन को लेकर इतनी भ्रांतियां पैदा कर दीं हैं कि हर दिन टनों फेयर एंड लवली क्रीमें खप जाती हैं। गोरे होने के चक्कर में तरह-तरह के नुस्खे आजमाए जाते हैं। "गोरे रंग पे न इतना गुमान कर," “गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा” जैसे गीत बनाए जाते हैं। सांवले रंग की वजह से बच्चों के नाम कालिया, कालीचरण, भूरा, आदि रखे जाते हैं। श्री कृष्ण भी मैय्या से पूछते हैं, “राधा क्यों गोरी, मैं क्यों काला?” सच में भारतीय समाज में रंग भेद का अभिशाप युगों से चल रहा है।

Read More

अश्लील गालियों से सामना भारत के हर क्षेत्र में करना पड़ता है। हर भाषा में वही, महिला के जननांगों को केंद्रित करते हुए भद्दे, अश्लील जुमले! अपने बृज क्षेत्र में शादियों में ‘गारी’ गाने के रिवाज ने इसे मान्यता का प्रमाण पत्र दे दिया है।

Read More

क्या आपने कभी सोचा है कि हम कब से चीज़ों को सुधारने के बजाय फेंकना ज़्यादा पसंद करने लगे हैं? एक ज़माना था जब एक टूटी कुर्सी को ठीक किया जाता था, फटे कपड़ों को सिला जाता था और रिश्तों की डोर को गांठ लगाकर मज़बूत किया जाता था। लेकिन, आज की भागदौड़ भरी आधुनिक ज़िंदगी में 'यूज़ एंड थ्रो', यानी इस्तेमाल करो और फेंको, की मानसिकता सिर्फ़ बाज़ार के सामान तक सीमित नहीं रही, बल्कि ये हमारे पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में भी गहरी पैठ बना चुकी है।

Read More

उम्रदराज होना, बाल सफेद होना, कोई अभिशाप नहीं बल्कि तजुर्बे से मिला एक विशेषाधिकार है। आजकल युवा वर्ग बुजुर्गों को गरिया रहा है, बेघर कर रहा है, अमानवीय व्यवहार कर रहा है, यह भूलकर कि जो पैदा हुआ है वह स्वर्गवासी होने से पहले इस दयनीय अवस्था से जरूर गुजरेगा।

Read More


Mediabharti