साल 1973 में जब बॉबी फिल्म आई थी, करोड़ों बूढ़े और जवानों में करेंट आ गया था। सोलह वर्ष में प्यार हो जाने से जूली को पहचान मिली। किशोरावस्था के प्यार और रोमांस के किस्से सदियों से आकर्षित करते रहे हैं।
प्रेम को उम्र के बंधन में जकड़ना, 15 हो या 75, नेचर के खिलाफ है। आजकल सास को दामाद से प्यार हो रहा है, बहु को ससुर से, भतीजे को चाची से, पुजारी को भक्त से, उस्ताद को शागिर्द से! यही प्रकृति की नियति है। इश्क़ किया तो डरना क्या! सोलह आने सच्चा, बेपरवाह और बगावती—युवाओं का प्यार आज समाज की जंजीरों को तोड़ने की हिम्मत दिखा रहा है। जब दिल पंद्रह साल की उम्र में ही धड़कने लगते हैं, तो उम्र की सीमाएं क्यों?
अंग्रेजी में पढ़ें : Legal Recognition for Love: Need to lower the age limit to 15 years!
शेक्सपियर ने रोमियो जूलियट का फसाना अमर कर दिया। पहली मोहब्बत की मासूमियत, छुप-छुप कर मुस्कानें और दिल की धड़कनों का तेज़ हो जाना, ये ही तो वे अहसास हैं, जिन्हें कोई भी क़ानून नहीं बांध सकता। बालिग़ होने तक इंतजार का क्या तर्क है, जब समझदारी और गंभीरता दोस्ती व रिश्तों में शुरू हो जाती है? वक़्त आ गया है कि युवा प्रेम को सम्मान दें और सहमति की उम्र 15 वर्ष तक कम करें, ताकि दिल अपने फैसले ले सकें!
हाल ही में, कर्नाटक में 11 महीनों में 25 हजार से ज़्यादा नौजवान लड़कियों के गर्भवती होने की ख़बर ने समाज के पहरेदारों को चौंका दिया। इतनी ‘मॉरल पुलिसिंग’ के बाद भी यह परिणाम! तथ्य ये साबित करते हैं कि नौजवान इश्क़ और जज़्बात को कानून की सख्ती से दबाना मुनासिब नहीं है।
मौजूदा क़ानून, खासकर पोक्सो एक्ट, 18 साल से कम उम्र के हर रिश्ते को गुनाह मानता है, फिर चाहे वह दिल से दिल का मेल हो। नौजवान इश्क़ को गुनाह की नज़र से देखना, जैसे ‘रोमियो-जूलियट’ की कहानी या फिल्म बॉबी के गाने ‘हम तुम एक कमरे में बंद हों’ को गलत ठहराना है।
आज का युवा पहले से कहीं ज़्यादा समझदार और जागरूक है। इंटरनेट, सोशल मीडिया और स्कूलों में दी जाने वाली तालीम ने उन्हें इश्क़, हक़ और ज़िम्मेदारी का सबक सिखाया है।
कर्नाटक में इतनी संख्या में गर्भवती नौजवान लड़कियों की ख़बर बताती है कि वे अपने जज़्बात को ज़ाहिर कर रहे हैं, भले ही क़ानून इसे मंज़ूर न करे। क़ानून की सख्ती की वजह से कई बार दो युवजनों का आपसी प्यार ‘बलात्कार’ का इल्ज़ाम बन जाता है, खासकर जब परिवार वाले जात-पात या मज़हब के नाम पर खिलाफ हों। कर्नाटक हाई कोर्ट ने 2022 में कहा था कि 16 साल से ज़्यादा उम्र के नौजवानों के आपसी रिश्तों को देखते हुए क़ानून को नए सिरे से सोचना चाहिए।
शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर याद आता है। “इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश ग़ालिब, जो लगाए न लगे, और बुझाए न बने।” सामाजिक कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर कहती हैं कि किशोरों के दिलों की आग को क़ानून की ठंडी सलाखों से बुझाना ठीक नहीं है।
मैसूर की युवा लेखिका मुक्ता गुप्ता कहती हैं, "दुनियाभर में कई मुल्कों ने नौजवानों के इश्क़ को समझा है। जर्मनी, इटली और पुर्तगाल जैसे देशों में उम्र की हद 14 या 15 साल है, और वहां ‘करीब-करीब उम्र’ का क़ानून है, जो नौजवानों को आपसी रिश्तों में सजा से बचाता है। कायदे से सरकार को हर क्षेत्र में दखल नहीं करनी चाहिए।
भारत में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने 2025 में सुप्रीम कोर्ट में कहा कि 16-18 साल के नौजवानों के ख़िलाफ़ पोक्सो केस 2017 से 2021 तक 180 फीसदी बढ़े हैं। वह कहती हैं कि यह क़ानून नौजवानों की आज़ादी और इज़्ज़त को ठेस पहुंचाता है।
पारस नाथ चौधरी के मुताबिक अगर उम्र की हद 15 साल कर दी जाए, तो वे नौजवान जो बॉबी के गाने ‘झूठ बोले कौआ काटे’ की तरह अपने दिल की बात कह रहे हैं, वे बेकसूर साबित होंगे।
विशेषज्ञ बताते हैं कि पोक्सो एक्ट का मौजूदा ढांचा हर शारीरिक रिश्ते को 18 साल से कम उम्र में गुनाह मानता है, फिर चाहे वह दो नौजवानों का आपसी प्यार ही क्यों न हो। एक अध्ययन के मुताबिक, 20-25 फीसदी पोक्सो मामले आपसी रिश्तों से जुड़े हैं, जिनमें ज़्यादातर मां-बाप की नाराज़गी की वजह से दर्ज होते हैं। मिसाल के तौर पर, 2016 में कर्नाटक, महाराष्ट्र और दिल्ली में 20 फीसदी से ज़्यादा मामले ऐसे थे, जहां लड़के-लड़की का प्यार गुनाह बन गया।
मद्रास हाई कोर्ट ने 2021 में कहा था कि नौजवानों के रिश्ते जैविक और सामाजिक आकर्षण का नतीजा हैं, न कि ज़बर्दस्ती। अगर उम्र की हद 15 साल हो और ‘करीब-करीब उम्र’ का क़ानून लागू हो, तो पोक्सो का मकसद—बच्चों को शोषण से बचाना—बाकी रहेगा, और नौजवानों का प्यार सजा से बच जाएगा।
क़ानून की सख्ती की वजह से नौजवान डर के चलते डॉक्टरों से मदद नहीं मांगते। पोक्सो का सेक्शन 19 कहता है कि डॉक्टरों को हर नाबालिग गर्भावस्था की ख़बर पुलिस को देनी होगी। इससे नौजवान खतरनाक और गैर-कानूनी तरीकों से इलाज करवाते हैं, जैसा कि कर्नाटक के आंकड़े दिखाते हैं।
अगर 15 साल की उम्र में रिश्तों को कानूनी मान्यता मिले, तो नौजवान बिना डर के डॉक्टरों से सलाह ले सकेंगे। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भी सुझाया था कि आपसी रिश्तों में नरमी बरती जाए। 2023 का लॉ कमीशन रिपोर्ट भले ही इस मसले को पूरी तरह हल न कर सका, लेकिन उसने भी नौजवानों की आज़ादी और सुरक्षा के बीच संतुलन की ज़रूरत बताई।
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