धर्म, कला और संस्कृति

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग और शिवालय तीर्थ महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले में एलागंगा नदी और एलोरा गुफाओं के नज़दीक स्थित है। शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह आखिरी ज्योतिर्लिंग है। यहां की यात्रा शिवालय तीर्थ, ज्योतिर्लिंग और लक्ष्य विनायक गणेश के दर्शन से पूर्ण होती है। ये सभी तीर्थस्थल 500 मीटर के दायरे में स्थित हैं। बाहर से देखने पर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर सामान्य मंदिरों की भांति ही दिखाई देता है, लेकिन अंदर जाकर देखने से इसकी महत्ता और भव्यता स्पष्ट होती है। इस क्षेत्र में कई अन्य धर्मावलम्बियों के भी पवित्र स्थान हैं।

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गोवर्धन केवल मिट्टी का एक टीला नहीं है, बल्कि एक जीवित देवता हैं, जिन्हें श्रीकृष्ण ने इंद्र के क्रोध से बृजवासियों को बचाने के लिए उठाया था। सात दिन तक यह पर्वत करुणा की छतरी बनकर गायों, संतों, ऋषियों और ग्रामीणों को आश्रय देता रहा। आज भी यह पर्वत श्रद्धा की सांसें लेता है। 21 किलोमीटर की परिक्रमा पथ पर नंगे पांव चलने वाले श्रद्धालु गीत, आंसू और प्रार्थनाओं के साथ अपनी भक्ति समर्पित करते हैं...

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हर बार जब कोई पटाखा फूटता है, तो हमारे भीतर का दस या पचास ग्राम गुस्सा और हिंसा बाहर निकल जाती है, और हम बहुत राहत महसूस करते हैं। अंतरंग समन्वय के साथ पुरुषों और महिलाओं को खुशी से पटाखे फोड़ने और बच्चों की तरह नाचने-गाने की गतिविधियों में भाग लेना चाहिए, और इसका सबसे अच्छा मौका हमें दीवाली को मिलता है।

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मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिनों तक शक्ति की विशेष पूजा करने से हर तरह की मनोकामना पूरी होती है और दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। नवरात्रि के हर दिन एक देवी की पूजा और मंत्र जाप का विधान होता है...

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नर्मदा नदी के किनारे बसे नगर नेमावर के प्राचीन सिद्धनाथ महादेव के मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। महाभारत काल में नाभिपुर के नाम से प्रसिद्ध यह नगर व्यापारिक केंद्र हुआ करता था। राज्य शासन के रिकॉर्ड में इसका नाम 'नाभापट्टम' था। यहीं पर नर्मदा नदी का 'नाभि' स्थान है...

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आज नदियां गंदी हो रही हैं, जंगल कट रहे हैं और जानवरों की कई नस्लें खत्म हो रही हैं। ऐसे में कृष्ण की शिक्षा हमें बताती है कि प्रकृति की देखभाल करना हमारी ज़िम्मेदारी है। जो पेड़, नदी और जानवरों की रक्षा करता है, वही असली भक्त है...

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