आगरा की हवा में आज सिर्फ़ धूल ही नहीं बल्कि एक सुलगता हुआ सवाल भी घुला हुआ है। क्या जीवनयापन की ज़रूरत, जीवन की गुणवत्ता से ऊपर है? एक तरफ़ वे आवाज़ें हैं जो चीख़-चीख़ कर कहती हैं कि "बिना उद्योग के पेट नहीं भरता।" दूसरी ओर वे चिंतित फुसफुसाहटें जो कहती हैं कि "बिना ताज के पहचान मिट जाएगी।" यह टकराव अब सुप्रीम कोर्ट की शानदार इमारत तक पहुंच चुका है, जहां तर्कों की तलवारें भिड़ रही हैं। और, इन सबके बीच, ताज महल मौन, सफ़ेद पत्थर का एक विशाल सवाल बनकर खड़ा है, जिसका जवाब आगरा की धूल-धूसरित हवा में तैर रहा है...
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