18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक खामोश लेकिन बोल्ड फैसले में, वह दरवाज़ा फिर खोल दिया जिसे उसने पहले पूरी ताक़त से बंद कर दिया था। जो काम पहले ग़ैर-क़ानूनी कहा गया था, उसे अब अपवाद बना दिया गया है। असल में कोर्ट ने सिर्फ़ क़ानून की व्याख्या नहीं बदली, उसने जवाबदेही का मायना बदल दिया। एक मुल्क जहां हवा ज़हरीली, नदियां बीमार और जंगल ग़ायब हो रहे हों, वहां यह फैसला क़ानूनी उलझन नहीं बल्कि एक खतरे का संकेत हो सकता है।
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