एक तरफ पश्चिमी मीडिया में चीन का दबदबा है। चीनी लोग अमेरिका के कई प्रमुख अखबारों के प्रबंधकीय बोर्ड में निदेशक हैं। वे लॉबी और जन संचार कंपनियों पर मोटा खर्च करके सरकारों पर दबाव बनाते हैं। उधर, भारत की कहानी पर सवालिया निशान लग रहे हैं। कहने को अमेरिकी प्रशासन में तमाम भारतीय मूलवंशी हैं, लेकिन रुतबा जीरो है। पश्चिमी मीडिया के लोग, जर्मनी से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक, भारतीय कथ्य को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। वक्त पर कोई साथ नहीं दे रहा है। कहां चूक हो रही है? कैसे विश्व गुरु हैं हम?
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