साहित्य / मीडिया

एक तरफ पश्चिमी मीडिया में चीन का दबदबा है। चीनी लोग अमेरिका के कई प्रमुख अखबारों के प्रबंधकीय बोर्ड में निदेशक हैं। वे लॉबी और जन संचार कंपनियों पर मोटा खर्च करके सरकारों पर दबाव बनाते हैं। उधर, भारत की कहानी पर सवालिया निशान लग रहे हैं। कहने को अमेरिकी प्रशासन में तमाम भारतीय मूलवंशी हैं, लेकिन रुतबा जीरो है। पश्चिमी मीडिया के लोग, जर्मनी से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक, भारतीय कथ्य को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। वक्त पर कोई साथ नहीं दे रहा है। कहां चूक हो रही है? कैसे विश्व गुरु हैं हम?

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दो मोर्चों पर लड़ना किसी भी देश के लिए चुनौती बन सकती है। आधुनिक सूचना तंत्र के महारथी, फौज के जवानों का मनोबल प्रभावित कर सकते हैं और सिद्धांतों की बलि भी दे सकते हैं। झूठी, अधपकी जानकारियां तनाव बढ़ा सकती हैं। साइबर सेना सामान्य समय में भी एक बड़ा खतरा बनी हुई हैं।

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कभी लोकतंत्र का सशक्त चौथा स्तंभ कहलाने वाली पत्रकारिता, आज जनसंपर्क के शोरगुल, कॉर्पोरेट संदेशों की मिलावट और झूठी खबरों के दलदल में हांफ रही है। यह क्षरण उस स्थानीय पत्रकारिता में और भी गहरा है, जहां गांवों की अनकही पीड़ा, पर्यावरण की चीख और हाशिए पर धकेले गए समुदायों की आवाजें स्पष्ट और संवेदनशील रूप से गूंजनी चाहिए थीं।

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भारतीय मीडिया की वर्तमान स्थिति बेहद रोचक है और चिंताजनक भी। यह एक ऐसा समय है जब मीडिया अपने मौलिक लक्ष्यों से भटका हुआ प्रतीत होता है। माना जा रहा है कि मुख्यधारा मीडिया पश्चिमी संस्कृति से पोषित और प्रेरित होता हुआ आम भारतीयों से कटता जा रहा है। साथ ही, निम्न-गुणवत्ता, उपभोक्तावादी और अश्लील सामग्री को बढ़ावा दे रहा है।

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तमिलनाडु जैसे राज्यों के विरोध के बावजूद, पूरे भारत में हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाने का विचार एक आवश्यक, दिलचस्प, लेकिन जोखिमभरा कदम है। चुनावी राजनीति को अलग रखते हुए, देखने में आ रहा है कि आज हिंदी और अंग्रेजी दोनों तेजी से आगे बढ़ रही हैं। वे लोग जो दोनों भाषाओं को समझते और बोलते हैं, हर जगह पाए जा सकते हैं।

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भारतीय मीडिया आज़ादी के कई दशकों बाद तक, झूठा ही सही या दिखावे के लिए ही, विपक्ष की प्रभावी भूमिका निभाता रहा। बड़े-बड़े खुलासे हुए, सरकारें तक गिर गईं। कार्टूनिस्टों को भी नेताओं की खिंचाई के लिए खूब मौके मिलते थे। 1970 का दशक प्रेस की स्वतंत्रता का काला और स्वर्णिम युग था। आपातकाल के पहले और बाद में मीडिया ने आज़ादी का भरपूर उपयोग किया।

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