भारत में अमेरिकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हो नियंत्रण


अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर अत्यधिक टैरिफ लगा दिए हैं और रूस से ऊर्जा खरीद पर रोक लगाने की धमकी दी है। ऐसे में, भारत को मजबूती से जवाब देना चाहिए। एक बड़ा कदम हो सकता है, अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनियों जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, गूगल, यूट्यूब पर रोक लगाकर अपनी डिजिटल आजादी सुनिश्चित करना। 

अमेरिकी कंपनियां भारतीयों का डेटा इस्तेमाल कर अरबों कमाती हैं, लेकिन भारत को कुछ नहीं देतीं। इस प्रतिबंध से कू, शेयरचैट और दूसरे देशी प्लेटफॉर्म मजबूत होंगे। फेसबुक, ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म चुनावों में दखल देते हैं और झूठी खबरें फैलाते हैं। भारत अपनी डिजिटल सुरक्षा खुद संभाल सकता है। प्रतिबंध से अमेरिकी कंपनियां भारत के साथ निष्पक्ष व्यापार के लिए मजबूर होंगी। 

Read in English: Why controlling American Social Media Platforms is necessary?

चीन ने अपने ‘ग्रेट फायरवॉल’ से विदेशी प्लेटफॉर्म बैन किए हैं और अपनी टेक कंपनियों को आगे बढ़ाया है। ऑस्ट्रेलिया ने सोशल मीडिया के नुकसान देखते हुए कड़े नियम लागू किए हैं। भारत भी ऐसे कदम उठा सकता है। 

अमेरिकी सोशल मीडिया पर रोक न सिर्फ आर्थिक जवाबी कार्रवाई है, बल्कि भारत की डिजिटल स्वतंत्रता की दिशा में बड़ा कदम होगा। अमेरिका सिर्फ अपने फायदे की सोचता है। भारत को अमेरिका पर निर्भरता कम करनी होगी।

इसके अलावा, मोदी सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के तहत 2025 के बजट में 120 अरब डॉलर का निवेश घरेलू उद्योग, हरित ऊर्जा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किया है। अब और कदम उठाने होंगे। महंगी कारों, घड़ियों और कॉस्मेटिक्स के आयात पर रोक लगाई जाए। सरकारी विदेश यात्राएं कम करके वर्चुअल मीटिंग को बढ़ावा दें। सरकारी खर्चों में कटौती करें।

छोटे व्यवसायों और किसानों को मदद करें। कॉर्पोरेट सब्सिडी से 10 अरब डॉलर छोटे और लघु उद्योंगों व किसानों को दें। ऊर्जा बचत पर ध्यान दें। पेट्रोल-डीजल की खपत घटाकर सोलर, हाइड्रो जैसे विकल्पों को बढ़ावा दें। 

‘आत्मनिर्भर भारत’ सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है! टिप्पणीकार प्रो. पारस नाथ चौधरी कहते हैं, "अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर बेहूदा और बेतहाशा टैरिफ लगाने और रूस के साथ ऊर्जा व्यापार पर अतिरिक्त प्रतिबंधों की धमकी के बीच, भारत को एक मजबूत और रणनीतिक जवाब देना होगा।"

ट्रंप की यह चुनौती भारत को अपनी रणनीतिक निर्भरता पर पुनर्विचार करने और अपनी वैश्विक स्थिति को फिर से परिभाषित करने का अवसर देती है। भारत को यह भ्रम त्यागना होगा कि लोकतांत्रिक मूल्य अमेरिका के साथ विश्वसनीय साझेदारी की गारंटी देते हैं। 

अमेरिका का पेरिस समझौते से अचानक पीछे हटना, सीरिया और अफगानिस्तान में सहयोगियों को छोड़ना, और अप्रत्याशित व्यापार नीतियां दिखाती हैं कि वह आपसी विश्वास से ज्यादा अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देता है। अमेरिका-भारत ‘कॉम्पैक्ट’ जो आर्थिक और रक्षा संबंधों को गहरा करने का वादा करता था, अब टैरिफ के बीच खोखला लगता है।

आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक मुद्दा नहीं है बल्कि यह राष्ट्रीय गौरव का प्रश्न है। अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए भारत को मितव्ययिता को राष्ट्रीय आदर्श बनाना होगा। सरकार को एक ‘राष्ट्रीय मितव्ययता मिशन’ शुरू करना चाहिए जो फिजूलखर्ची रोके और संसाधनों को उत्पादक क्षेत्रों में लगाए। ये सुधार भारत के वित्तीय अनुशासन और आर्थिक संप्रभुता के प्रति संकल्प को दिखाएंगे, जो 1.4 अरब नागरिकों की जवाबदेही की मांग के अनुरूप होगा। 

ट्रंप के टैरिफ एक झटका नहीं, बल्कि एक उत्प्रेरक हैं। ये अस्थिर साझेदारों पर अत्यधिक निर्भरता की कमजोरी दर्शाते हैं और भारत को अपना रास्ता खुद बनाने की प्रेरणा भी देते हैं। 3.9 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और सात फीसदी की विकास दर के साथ, भारत के पास यह चुनौती को आत्मनिर्भरता, मितव्ययिता और वैश्विक प्रभाव के लिए एक स्प्रिंगबोर्ड बनाने के साधन हैं।



Related Items

  1. डिजिटल ताल पर थिरक रहा है भारत का त्योहारी व्यापार

  1. भारत ने नवीकरणीय क्रांति को नए सिरे से किया है परिभाषित

  1. भारत में दहेज क़ानूनों की नाकामी की दास्तान…




Mediabharti