भक्तों के हर दुख का निवारण करती है पपलाज माता


राजस्थान के दौसा जनपद में करीब एक हजार साल पुराना पपलाज माता का मंदिर है। यहां स्थापित माता की मूर्ति को एक चमत्कारी मूर्ति माना जाता है। यह स्थान जिला मुख्यालय से 35 किमी और उपखंड क्षेत्र लालसोट से 15 किमी की दूरी पर घाटा में स्थित है।

इस मंदिर में माताजी के दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में हमेशा मेले का माहौल बना रहता है। यहां गूंगे, बहरे, अंधे, लकवाग्रस्त छोटे बच्चे, व्यापारी या अन्य परेशानियों से पीड़ित लोग माता के दरबार में अपने कष्ट निवारण की उम्मीद में आते हैं। माना जाता है कि मंदिर के पास बना एक छोटा सा कुआं और रात के समय मंदिर के नीचे से निकलने वाले पानी के प्रवाह से लोगों की कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं। स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का दावा है कि इस कुएं का पानी शरीर पर लगानेभर से शरीर पर होने वाले सभी त्वचा रोग ठीक हो जाते हैं।

माह भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की छठी तिथि से शुरू होकर अष्टमी तक चलने वाले माता के वार्षिक आभानेरी मेले में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। सैकड़ों की संख्या में पदयात्राएं की जाती हैं, तदोपरांत भक्त मंदिर पहुंचते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। मनोकामना पूरी होने पर मंदिर में भक्तों द्वारा भंडारा किया जाता है। भंडारे में दाल, पुआ और खीर आदि पकवानों की धूम रहती है।

चैत्र व आश्विन नवरात्रों में भी यहां एक मेले का आयोजन किया जाता है। लोक गायक अपने मधुर लोक गीतों से भक्तों को आह्लादित करते हैं। माता को गेहूं और मखाने का भोग चढ़ाया जाता है।

यह मंदिर वास्तुकला का एक बेजोड़ नमूना है। एक बड़े मंच पर यह एक छोटा मदिर है। इस मंच पर पहुंचने के लिए कुछ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर की दीवारों पर सूर्यमुखी पुष्प की नक्कासी की गई है।

मंदिर की ऐतिहासिक पड़ताल के अनुसार यहां पूर्व में हर्षत माता का एक बड़ा मंदिर था, जिसे इस्लामिक आक्रांताओं ने नष्ट कर दिया। तब से मुख्य मंदिर के बाद यही निर्माण यहां बचा है। तोड़े गए मंदिर के पत्थरों को अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहां मौजूद चांद बावड़ी के गलियारे में रखा गया है। पपलाज माता मंदिर के चारों ओर बड़े मंदिर की टूटी हुई दीवारें और मूर्तियां रखी हुई हैं। विश्व विख्यात चांद बावड़ी भी मंदिर के सामने ही स्थित है। माता के मन्दिर के ठीक सामने ही लांगुरिया का मन्दिर है तथा मुख्य मन्दिर से पहले ही नीचे पहाड़ी के मोड़ पर भैरव मन्दिर है।

पपलाज माता मंदिर के निकट एक वर्षों पुराना वट वृक्ष है। कहा जाता है कि एक बार अकाल के समय दैवीय शक्तियों ने युद्ध करके पाताल से राजा वासु के उद्यान से इस वट वृक्ष को पृथ्वी पर लाकर यहां जगह दी। मशहूर राजस्थानी गवरी नृत्य की शुरुआत भी यहीं से मानी जाती है।

यहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। दौसा शहर की ओर से यहां आने के लिए यात्रियों को लालसोट जाने की जरूरत नहीं है। लालसोट से पहले ही नांगल से एक रास्ता पपलाज माता के मन्दिर के लिए जाता है।



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