कहानी भारतीय इस्पात उद्योग के विकास और वैश्विक नेतृत्व की...

भारत के इस्पात उद्योग में हुई प्रगति की कहानी इस क्षेत्र में हुए उल्लेखनीय परिवर्तन का प्रमाण है, जो देश की व्यापक आर्थिक विकास की यात्रा को दर्शाता है। वैश्विक उत्पादन में कभी एक मामूली भूमिका निभाने वाला यह क्षेत्र आज विकसित होकर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक बन गया है, जिसने वर्ष 2018 में जापान को पीछे छोड़कर यह दर्जा हासिल किया है। इस्पात उद्योग में यह बदलाव आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता और सतत औद्योगीकरण की दिशा में भारत की व्यापक यात्रा का प्रतीक है।

भारत के इस्पात उद्योग की वृद्धि, विशेष रूप से साल 2019 और 2023 के बीच, उल्लेखनीय रही है। इस अवधि के दौरान, भारत का इस्पात उत्पादन छह प्रतिशत की प्रभावशाली चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ा, जो चीन के एक प्रतिशत और वैश्विक इस्पात उत्पादन से भी आगे निकल गया, जिसमें एक प्रतिशत  की गिरावट देखी गई। पिछले पांच वर्षों में वैश्विक इस्पात क्षमता में लगभग 62 मिलियन टन की वृद्धि देखी गई है, जिसमें भारत का योगदान इस वृद्धि का छह प्रतिशत है। विशेष रूप से, एशिया की इस्पात निर्माण क्षमता में वृद्धि का लगभग 89 प्रतिशत हिस्सा आसियान और भारत का है।

भारत के इस्पात उद्योग का यह प्रदर्शन वैश्विक बाजार में देश की रणनीतिक स्थिति को उजागर करता है, जो 'आत्मनिर्भर भारत' जैसे घरेलू विनिर्माण प्रयासों से प्रेरित है। भारत सिर्फ स्टील का उत्पादन ही नहीं कर रहा है; यह आयात निर्भरता को कम करने और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए एक रोडमैप तैयार कर रहा है।

भारत के इस्पात उद्योग की इस सफलता में राष्ट्रीय इस्पात नीति-2017 की महत्वपूर्ण भूमिका  रही है, जिसमें 2030-31 तक 300 मिलियन टन कच्चे इस्पात की क्षमता हासिल करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं और 255 मिलियन टन कच्चे इस्पात और 230 मिलियन टन तैयार इस्पात का उत्पादन अपेक्षित है। इस नीति का उद्देश्य भारत को इस्पात उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों की इस्पात संबंधी जरूरतों को पूरा करना तथा उद्योग की क्षमता और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए टिकाऊ और ऊर्जा-कुशल विधियों को अपनाने पर जोर देना है।

कच्चे इस्पात का उत्पादन वर्ष 2019-20 में 109.137 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 144.299 मिलियन टन  हो गया, जो पिछले वर्ष (2022-23 में 127.197 मिलियन टन ) की तुलना में 13.4 प्रतिशत की वृद्धि है। घरेलू इस्पात उद्योग की क्षमता वर्ष 2019-20 में 142.299 मिलियन टन  प्रति वर्ष से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 179.515 मिलियन टन  हो गई, जिससे उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। इसी अवधि के दौरान उत्पादन क्षमता का उपयोग बढ़कर 81 प्रतिशत हो गया।

लेकिन, भारतीय इस्पात उद्योग की कहानी सिर्फ़ क्षमता में विस्तार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह घरेलू खपत में वृद्धि भी दर्शाती है। कुल तैयार स्टील की खपत वर्ष 2019-20 में 100.171 मीट्रिक टन थी, जो वर्ष 2023-24 में बढ़कर 136.291 मीट्रिक टन हो गई। यह पिछले वर्ष की तुलना में 13.7 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ मजबूत घरेलू मांग को दर्शाता है। वित्त वर्ष 2027 तक स्टील की मांग में छह प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के अनुमान के अनुसार भारत का इस्पात उद्योग स्टील क्षेत्र से जुड़ी मांग को पूरा करने के अलावा बेहतर प्रदर्शन करने के लिए भी तैयार है।

इस्पात उद्योग में हुई इस वृद्धि का श्रेय रणनीतिक नीतियों और उद्योग का नेतृत्व करने वाली पहल को जाता है, जो क्षमता विस्तार और उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात उत्पादों के विकास पर केंद्रित हैं।

इस्पात उद्योग एक अविनियमित क्षेत्र है तथा सरकार इस क्षेत्र के विकास के लिए अनुकूल नीतिगत वातावरण बनाकर एक सुविधा प्रदाता के रूप में कार्य करती है। सरकार ने इस्पात क्षेत्र को पूर्ण रूप से पुनर्जीवित करने के लिए कई कदम उठाए हैं।

इस्पात उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए, एक प्रमुख पहल उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना है, जिसका उद्देश्य पूंजी निवेश को आकर्षित करना और आयात को कम करना है, जिसमें अनुमानित ₹29,500 करोड़ का निवेश और विशेष इस्पात के लिए 25 मिलियन टन की अतिरिक्त क्षमता का निर्माण शामिल है। इस्पात उद्योग को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए, बजट 2024 में, सरकार ने कच्चे माल, फेरो निकल पर मूल सीमा शुल्क कम कर दिया और मार्च 2026 तक फेरस स्क्रैप पर शुल्क छूट बढ़ा दी। एक अन्य प्रमुख पहल घरेलू रूप से निर्मित लौह और इस्पात उत्पाद नीति है, जो सरकारी खरीद के लिए 'मेड इन इंडिया' स्टील को बढ़ावा देती है।

वित्तीय प्रोत्साहनों के अलावा, सरकार ने उद्योग की पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाने के लिए निर्णायक कदम उठाए हैं। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, स्टील क्षेत्र को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग के व्यापक लक्ष्य में एकीकृत करता है, जो स्टील उत्पादन के डीकार्बोनाइजेशन में योगदान देता है। स्टील स्क्रैप रीसाइक्लिंग नीति घरेलू स्तर पर उत्पादित स्क्रैप की उपलब्धता बढ़ाकर इन प्रयासों को और आगे बढ़ाती है, जिससे संसाधन दक्षता को बढ़ावा मिलता है।

आज, भारत का इस्पात उद्योग एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, जो स्थिरता को अपनाते हुए महत्वपूर्ण वृद्धि के लिए तैयार है। बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाएं और 'मेक इन इंडिया' और पीएम गति-शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान जैसी पहल मांग को बढ़ा रही हैं, जिससे निरंतर वृद्धि सुनिश्चित हो रही है। सरकार और निजी क्षेत्र दोनों रणनीतिक निवेश उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिए तैयार हैं, जिससे उद्योग को राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पार करने में मदद मिलेगी। जैसे-जैसे भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में काम कर रहा है, इस्पात क्षेत्र आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और औद्योगिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हुएव टिकाऊ और समावेशी प्रगति के लिए वैश्विक मानक स्थापित करेगा।

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