जब एक वृद्ध ने खुश्चेव को बताया समाजवादी क्रांति का 'परिणाम'...


रूस में भारतीय राजदूत टीएन कौल ने निकिता खुश्चेव के संस्मरणों में एक मजेदार वाकये का जिक्र किया है। कौल लिखते हैं...

एक बार खुश्चेव की मुलाकात एक नब्बे वर्षीय आदमी से हुई। उन्होंने उससे पूछा, 'क्यों दादाजी, आप महान अक्टू्बर समाजवादी क्रांति से पहले की अपेक्षा आज ज्यादा सुखी हैं न?

बूढ़े ने निर्विकार भाव से बताया, ''मैं यह नहीं जानता कि तब ज्यादा सुखी था या अब ज्यादा सुखी हूं, पर एक बात आपको जरूर बता देना चाहता हूं कि तब मेरे पास दो जोड़ी जूते, दो ओवरकोट थे, दो ऊनी हैट और दो जोड़ी दस्ताने थे। अब तो हालत ये है कि सभी चीजें एक-एक ही हैं और वह भी फटी-पुरानी।''

बूढ़े की बात सुनकर खुश्चेव निराश हुए और उन्होंने अपनी बात को ‘सही’ साबित करने का एक और प्रयास किया, ''जाने भी दीजिए दादाजी! क्या आप जानते हैं कि चीन, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और हिन्दुस्तान जैसे मुल्कों में तो हालत यह है कि अधिकांश लोगो के पास ये चीजें हैं ही नहीं और वे नंग-धड़ंग रहने को मजबूर हैं।''

इस पर बूढ़े ने भी उसी अंदाज में खुश्चेव को जवाब दिया, ''... तो उनकी ‘महान समाजवादी क्रांति’ हमारी महान अक्तू्बर समाजवादी क्रांति से बहुत-बहुत पहले हुई होगी।''



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