गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर देखने में जरूर धीर-गंभीर नजर आते थे लेकिन उनकी वाकपटुता बेमिसाल थी। इसी का एक नमूना देखिए।
एक बार वह अध्यापकों की एक सभा में शामिल होने के लिए गए हुए थे।
साहित्य चर्चा के बाद हास-परिहास का वातावरण बनाने के उद्देश्य से गुरुदेव ने एक दूर बैठे परिचित व्यक्ति नेपाल बाबू को संबोधित करते हुए कहा कि नेपाल बाबू, आजकल आप चीजें भूल जाते हैं, सो आपको दंड देना होगा।
उक्त नेपाल बाबू तो यह सुनकर घबरा ही गए, वहां उपस्थित अन्य लोग भी मामले को न समझ सके और एक दूसरे की ओर देखने लगे। तभी, टैगोर ने नेपाल बाबू की और एक डंडा बढ़ाते हुए कहा कि कल इसे आप हमारे घर भूल आए थे। सो लीजिए अपना दंड।
सारा माजरा समझकर वहां मौजूद सभी लोगों के होठों पर मुस्कान तैर गई।
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तत्कालीन कलकत्ता स्थित शांति निकेतन के प्रांगण में एक दिन कहीं से घूमता-घामता एक गधा आ गया। उसे देखकर वहां मौजूद विद्यार्थी शैतानी करने लगे और हुल्लड़ मचाने लगे।
जब अधिक शोर-शराबा हुआ तो उसे सुनकर गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर अपने कमरे से बाहर आए और स्थिति का जायजा लेने लगे। बाहर निकलकर हुल्लड़ का कारण भांपते हुए उन्हें तनिक भी देर न लगी।
थोड़ा ठहरकर और छात्रों की ओर मुखातिब होकर वह जोर से बोले- अरे भाई, यह गधा किसका सहपाठी है? जिसका हो वह अपने साथ ले जाए।
इतना सुनना था कि सभी छात्र एक दूसरे की ओर देखने लगे और उनकी कही बात का अर्थ समझकर तुरंत चुपचाप अपनी कक्षाओं की ओर प्रस्थान कर गए।
इससे साबित होता है कि एक कुशल अध्यापक छात्रों को बिना डांट-फटकार के भी अनुशासन के दायरे में ला सकता है।
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