चौंकानेवाली रही है पिछले दशक में भारत की विकास यात्रा

विपक्षी दलों के नेताओं की मानें तो भारत गर्त में जा रहा है। राहुल गांधी हर दिन मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाते रहे हैं कि अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है। सही स्थिति क्या है, यह जानने के लिए साल 2015 से पूर्व और 2025 तक के आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता लगता है कि तमाम दिक्कतों के बावजूद भारत की विकास यात्रा सही गति से सही दिशा की तरफ अग्रसर है।

राजनीति में अक्सर जोर-शोर से बहसें होती हैं, आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है, और भावनाएं हावी हो जाती हैं। लेकिन अगर हम इन सबको एक तरफ रखकर सिर्फ आंकड़ों की बात करें, तो पिछले दस सालों में भारत की अर्थव्यवस्था में कई बड़े और सकारात्मक बदलाव हुए हैं।

सबसे पहले, आम लोगों की जेब पर कर का बोझ कम हुआ है। 2009-2014 के दौरान, दो लाख रुपये तक की सालाना कमाई पर भी आयकर देना पड़ता था। लेकिन, अब नई कर व्यवस्था और विभिन्न छूटों की वजह से यह सीमा काफी बढ़ गई है। खास तौर पर पुरानी कर व्यवस्था में, सामान्य छूट, धारा 80सी जैसी कटौतियों, और अन्य छूटों को जोड़कर कुछ मामलों में सात लाख रुपये तक की आयकर-मुक्त हो सकती है। इसका मतलब है कि मध्यम वर्ग के लाखों लोगों को अब टैक्स में राहत मिली है, और उनकी जेब में पहले से ज्यादा पैसा बच रहा है।

बैंकों की सेहत में भी सुधार हुआ है। यूपीए सरकार के आखिरी सालों में बैंकों का बुरा हाल था। 2014 तक बैंकों के गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां, यानी डूबने वाले कर्ज, 4.3 फीसदी के आसपास थे, जो 2017-18 तक बढ़कर 11.2 फीसदी तक पहुंच गए। लेकिन, इंसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड जैसे सख्त कानूनों और नई नीतियों की वजह से अब यह स्तर मार्च 2025 तक घटकर 2.5 फीसदी के आसपास आ गया है। इससे बैंकों की स्थिति मजबूत हुई है, और अब वे व्यवसायियों और आम लोगों को पहले से ज्यादा आसानी से कर्ज दे पा रहे हैं।

देश के बुनियादी ढांचे में निवेश भी कई गुना बढ़ा है। 2009-14 के दौरान सड़कों, रेलवे, हवाई अड्डों और बंदरगाहों जैसे आधारभूत प्रोजेक्ट पर सरकार हर साल औसतन 1.5-2 लाख करोड़ रुपये खर्च करती थी। लेकिन, अब नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन और अन्य योजनाओं के तहत यह निवेश कई गुना बढ़ गया है। 2025-26 के बजट में पूंजीगत व्यय के लिए 11.21 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, और 2020-25 के लिए 111 लाख करोड़ रुपये के निवेश की योजना है। इस बढ़ते निवेश से न सिर्फ देश का ढांचा मजबूत हो रहा है, बल्कि लाखों लोगों को रोजगार के नए अवसर भी मिल रहे हैं।

शेयर बाजार और देश की आर्थिक बचत में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। 2014 में सेंसेक्स 25,000 के आसपास था, जो 2025 तक 80,000 से ऊपर पहुंच गया। म्यूचुअल फंडों का प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियां 10 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 55 लाख करोड़ रुपये हो गया। साथ ही, देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2014 के 304 अरब डॉलर से बढ़कर जून 2025 तक 694.11 अरब डॉलर हो गया। यह भंडार किसी भी आर्थिक संकट से निपटने के लिए एक मजबूत सुरक्षा कवच का काम करता है।

महंगाई पर भी काफी हद तक काबू पाया गया है। यूपीए सरकार के दौरान मुद्रास्फीति 8-10 फीसदी के बीच रहती थी, जो कभी-कभी 10 फीसदी से भी ऊपर चली जाती थी। लेकिन अब, मार्च 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 3.34 फीसदी थी, और जून 2025 तक यह घटकर 2.1 फीसदी रह गई, जो पिछले कई सालों में सबसे निचला स्तर है। इससे आम लोगों के लिए घर का बजट संभालना आसान हुआ है।

भ्रष्टाचार के मोर्चे पर भी प्रगति हुई है। 2009-14 के दौरान कोयला घोटाला, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे बड़े वित्तीय घोटाले सुर्खियों में थे। इसके उलट, पिछले दस सालों में केंद्र सरकार से जुड़ा कोई बड़ा वित्तीय घोटाला सामने नहीं आया है। आधार और डिजिटल भुगतान जैसे कदमों ने शासन में पारदर्शिता को बढ़ाया है। हालांकि, छोटे स्तर की अनियमितताएं अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं, फिर भी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस कदम उठाए गए हैं।

साफ है कि एक दशक में भारत की अर्थव्यवस्था ने कई क्षेत्रों में मजबूती हासिल की है। राजनीतिक बहसें और आलोचनाएं अब भी चलती हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि भारत की आर्थिक सेहत पहले से बेहतर हुई है।

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