साल 1942 का साल... हिन्द महासागर से उठी मानसून की हवाएं भारत पहुंच चुकी थीं। उनके साथ ही घमासान नौसैनिक युद्ध की खबर भी पहुंची। विश्व दो ध्रुवों में बंट चुका था। भारत भी उबल रहा था और सदियों पुरानी दासता की बेड़ियों को तोड़ डालने का इंतजार कर रहा था। ऐसे वक्त में विश्व युद्ध में ब्रिटेन को भारत के समर्थन के बदले में औपनिवेशिक राज्य का दर्जा देने के प्रस्ताव के साथ सर स्टैफर्ड क्रिप्स का भारत आगमन हुआ। ब्रिटेन ने महारानी के प्रति निष्ठा के बदले में भारत को स्वशासन देने का प्रस्ताव किया लेकिन उनको इस बात का अहसास नहीं था कि शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों ने देश को उपनिवेश बनता देखने के लिए अपने जीवन का वलिदान नहीं किया था। देशभर के स्वतंत्रता सेनानियों की एक ही मांग थी, और यह थी पूर्ण स्वराज। इसलिए 8 अगस्त 1942 की पूर्व संध्या पर गांधीजी ने देशवासियों के समक्ष शंखनाद करते हुए कहा, ‘ये एक छोटा-सा मंत्र है जो मैं दे रहा हूं। आप चाहें तो इसे अपने हृदय पर अंकित कर सकते हैं और आपकी हर सांस के साथ इस मंत्र की आवाज आनी चाहिए। ये मंत्र है –‘करो, या मरो’। (Read in English: Quit India: Movement That Prepared Ground For Future Politics In India)
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