बहादुरी और बलिदान की अदम्य मिसाल थे शहीद करतार सिंह सराभा

यह आजादी से पूर्व के भारत की एक कहानी है जब पंजाब का एक बेहद युवा क्रांतिकारी फांसी के तख्‍ते पर भेजे जाने की अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। यह मात्र 19 वर्ष का करतार सिहं सराभा था जो लाहौर विवाद में अपनी कथित भूमिका में शामिल अन्‍य 27 क्रांतिकारियों में से एक था।यह आजादी से पूर्व के भारत की एक कहानी है जब पंजाब का एक बेहद युवा क्रांतिकारी फांसी के तख्‍ते पर भेजे जाने की अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। यह मात्र 19 वर्ष का करतार सिहं सराभा था जो लाहौर विवाद में अपनी कथित भूमिका में शामिल अन्‍य 27 क्रांतिकारियों में से एक था। उसके दादाजी उससे मिलने लाहौर जेल आए। उन्‍होंने कहा, ‘‘करतार सिंह, हमें अभी भी विश्‍वास नहीं होता कि देश को तुम्‍हारी कुर्बानी से फायदा होगा। तुम अपनी जिंदगी क्‍यूं बर्बाद कर रहे हो? अपने जवाब में करतार सिंह ने अपने दादाजी को कुछ रिश्‍तेदारों की याद दिलाई जो हैजा, प्‍लेग अथवा अन्‍य बीमारियों से मर गए थे तो क्‍या आप चाहते हैं कि आपका पोता एक ऐसी कष्‍टकारक बीमारी से मरे? क्‍या यह मौत उससे हजार गुना बेहतर नहीं है? बुजुर्ग व्‍यक्‍ति की वाणी को मौन करते हुए उसने पूछा।


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