बिहार में चुनाव संपन्न हुए और मोदी जी बंगाल की ओर निकल लिए। लेकिन, भाव-विभोर और मंत्र-मुग्ध कर देने वाली जीत अपने पीछे तमाम किस्से छोड़ गई है।
वोट देकर लोट रहीं अति पिछड़ी कहार जाति की एक बुजुर्ग महिला वोट देने के बाद यह पूछने पर कि “केकरा के वोट देलू, आजी?” (किसको वोट दीं, दादी?) कहती हैं...,
“उनकरे के!” (उन्हीं को!)
“उनको किसको?”
“अरे बूझत नइख अ?” (अरे समझ नहीं रहे?)
“ना…”
“जे खियावात बा, जिलावत बा, उनकरे के” (जो खिला, जिला रहा है उसी को)
“के खिआवत बा?” (कौन खिला रहा है?)
(झल्लाकर) “तू नइख अ जानत?” (तुम नहीं जानते हो?)
“मोदी के, अउर केकरा के!” (मोदी को, और किसको!)
“काहें?” (क्यों?)
“उहे न पिनशिन, राशन, दवाई देत बाड़न” (वही न पेंशन, राशन और दवाई दे रहे हैं)
विविध योजनाओं के लाभार्थी, विशेषकर महिलाएं इस चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के भावुक, प्रतिबद्ध, समर्पित समर्थक बने। इसी के चलते, जमकर वोट बरसे और महिलाओं के वोट निर्णायक साबित हुए।
जो कमजोर, गरीब, बेसहारा महिलाएं हैं उनके लिए 1100 रुपये संजीवनी बने। यह भी कि यह 'दयानत', यानी ईमान, की बात है। बाद में मिले 10 हजार रुपयों ने तो कमाल ही कर दिया।
एक दूसरा चित्र...! "रोड पर चलल मुश्किल हो जाई"। ‘रोड’ यहां एक व्यापक अर्थ रखता है!
सवर्णों का राजद के भूत ने पीछा नहीं छोड़ा! यह चुनाव का मुख्य कथ्य यानी ‘नैरेटिव’ बन गया। यहां तक कि अति पिछड़े दो घर और 10 जातियों का भी...। माना जाता रहा कि इनका 'सशक्तीकरण' लालू के समय में हुआ था। सशक्तीकरण लेकिन, महज 'स्वर' के स्तर पर!
ब्राह्मण जाति के टैक्सी चालक ओझा जी कहते हैं, “हमनी के रहीं जा जन सुराजे..., लेकिन अंतिम दिन सिलेंडरे में दे देनी जा! पता न काहें लहर चल गइल”। यानी, हम लोग जन सुराज के ही थे। उसी को वोट देने का मन बनाए थे। लेकिन, वोट वाले दिन पता नहीं क्या हुआ कि हम लोग सिलेंडर को वोट दे दिए।
यहां सिलेंडर मतलब एनडीए साझीदार का उम्मीदवार। पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी का चुनाव चिह्न यही था। इस मतलब यह है कि भाजपा का आधार वोट मोदी के नाम पर एनडीए के उम्मीदवार को ही मिला।
कुल मिलाकर, बिहार में चुनावी माहौल मोदी और नीतीश-मय ही रहा। 20 साल पहले जिस बच्ची को सरकार की ओर से एक साइकिल मिली, फिर बड़े होने के बाद सड़क पर चलने की सुरक्षा मिली, सुरक्षा महसूस करने के बाद सरकार से मिली सहायता से एक छोटा सा कारोबार किया, और जब उस कारोबार को चलाने के लिए 10 हजार की एक और सहायता तथा दो लाख की एक और मदद का आश्वासन मिला तो नीतीश-मोदी के नेतृत्व में आश्चर्यचकित कर देने वाली जीत का रास्ता पूरी तरह खुल गया...






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