वर्ष 2024 में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों को देखकर सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों ही प्रसन्न हैं। जनता ने इन चुनावों में सभी को प्रसन्न होने का अवसर दिया है। लोकतंत्र की यही विशेषता है कि इसमें जनता का निर्णय ही सर्वोपरि होता है। प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी अपने तृतीय चरण का आगाज कर चुके हैं। साथ ही, मंत्रिमंडल का गठन एवं लोकसभा अध्यक्ष भी उनकी इच्छानुरूप ओम बिरला ही निर्वाचित हो चुके हैं।
मोदी की जीत के पश्चात, भाजपा अपने लोकसभा क्षेत्रों में मंथन करके यह जानने का प्रयास कर रही है कि जहां उनको 400 सांसदों के चुने जाने की आशा थी, वह सिमटकर मात्र 240 ही क्यों रह गई?
उपरोक्त विषय पर मंथन तो अवश्य ही किया जा रहा है, परन्तु वातानुकूलित कमरों में बैठकर सम्भवतया कोई परिणाम शायद ही निकल पाए। इसका प्रमुख कारण यह है कि जब जनता ने अपने बहुमूल्य मत का उपयोग करने के लिए तीक्ष्ण गर्मी की भी परवाह नहीं की, तो मंथन के लिए भी इसी तीक्ष्ण गर्मी में ही जनता के मध्य ही जाना चाहिए, तभी सही वस्तुस्थिति का सही ज्ञान हो पाएगा। तभी यह पता लग पाएगा कि जनता की प्रसन्नता अथवा रुष्टता का क्या कारण है?
यदि इस विषय पर गहनता से मंथन नहीं किया गया तो इसका दुष्परिणाम आगामी हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखण्ड और वर्ष 2027 के उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में सहन करना पड़ सकता है।
यदि निष्पक्ष रूप से आंकलन किया जाए तो स्पष्ट होता है कि भाजपा को जो 240 सीटें प्राप्त हुई हैं वे मात्र मोदी एवं योगी के हिन्दुत्ववादी व्यक्तित्व के कारण ही प्राप्त हुई हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा की जीत के सूत्रधार मोदी एवं शिवराज सिंह चौहान रहे तो उड़ीसा में जीत का श्रेय सांसद विजयपाल सिंह की कूटनीति को ही जाता है। अब विचारणीय प्रश्न यह है कि निवर्तमान सांसद, जनता के हृदय में एक अमिट छाप बनाने में सफल क्यों नहीं हो पाए?
यदि हम इस विषय पर विचार करें तो इसके अनेक कारण इंगित होते हैं, यथा - भ्रष्टाचार, युवाओं की बेरोजगारी, मोदी के जनहित कार्यो का लाभ उपयुक्त लाभार्थी तक न पहुंचना, नेताओं की आपसी कलह, उनका जनता के साथ दुर्व्यहार, जनता के कार्यो में सहयोग न करना, झूठे आश्वासन देना, अधिकांश प्रशासनिक अधिकारियों का निरंकुश होना और भ्रष्टाचार में लिप्त रहना, विकास प्राधिकरणों में व्याप्त भ्रष्टाचार, नेताओं की असाधारण आर्थिक प्रगति आदि अनेक कारण है, जिनको जनता के मध्य जाकर ही ज्ञात करना एवं उनका निराकरण करना अत्यंत आवश्यक है।
निःसन्देह, जनता शासन व प्रशासन की कार्यशैली से क्षुब्ध हो रही है। जनता अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए अधिकारियों के कार्यालयों में चक्कर काटती रहती है, जबकि अधिकारीगण उनसे स्नेहपूर्ण व्यवहार तक नहीं करते और वे भयंकर गर्मी में एक गिलास पानी के लिए भी तरसते रह जाते हैं। तहसील और मजिस्ट्रेट न्यायालयों में किसानों के जो वाद वर्षों से लम्बित पड़े हैं, उनके निराकरण के स्थान पर मात्र तारीख पर तारीख मिलती रहती है।
इन सब तथ्यों का चिंतन, मंथन एवं निराकरण होना अति आवश्यक है। यदि जनता के हृदय में अपनी सकारात्मक छवि बनानी है तो जनता के विश्वास को जीतना होगा, उनको प्रशासकीय और शासकीय सुविधायें देनी होगी और भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करना ही होगा।
(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं)
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