परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। लेकिन, देश की सत्ता पर आसीन दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा पिछले करीब 11 साल से एक ही ढर्रे पर चल रही है। कम से कम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अब एक बड़े परिवर्तन की दरकार है।
आज के दिन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा बनाई बुनियाद पर भारतीय जनता पार्टी भारत के प्रत्येक गांव, शहर तथा गलियों तक में अपना अस्तित्व स्थापित कर चुकी है। कहा जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा रूपी वृक्ष की जड़ है जो इसके तनों और फलों को शक्ति प्रदान करता है। इसके विपरीत, भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष जेपी नड्डा का यह कहना कि उनकी पार्टी, संघ के सहयोग बिना भी अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम है, महज एक अतिश्योक्तिपूर्ण वक्तव्य ही है। संघ और भाजपा दोनों एक दूसरे के पूरक है। यदि भाजपा को संघ का सहयोग मिलना बंद हो जाए तो पार्टी स्वयं को बेहद असहाय स्थिति में पाएगी।
इधर, भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन बीते कुछ समय से लम्बित है। किसी भी पार्टी का अध्यक्ष उसकी रीढ़ की हड्डी सदृश होता है। यदि अध्यक्ष सशक्त है तो वह शीर्ष नेतृत्व को अपने सही निर्णयों को स्वीकार करने के लिए विवश कर सकता है।
इसके विपरीत, यदि अध्यक्ष महज एक कठपुतली मात्र है तो वह पार्टी के संगठन को मजबूत करने में ज्यादा सहायक नहीं हो पाएगा। मीडिया के कई हल्कों में हो रही चर्चाओं से प्रतीत होता है कि संघ अब भाजपा के अध्यक्ष पद पर एक सशक्त व्यक्ति को पदासीन करना चाहता है। संघ चाहता है कि नया उम्मीदवार पारंपरिक सांगठनिक संस्कारों में रचा-बसा हो।
विगत कुछ वर्षों के दौरान भाजपा के संगठन व संघ के साथ समन्वयन में जो कमी आई है, आरएसएस अब इसे दूर करना चाहता है। भाजपा के संगठन में ऊपर से नीचे तक आजकल जो भी दिख रहा है वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों के पूर्णतया विपरीत है। इसके चलते, पार्टी की छवि में निरन्तर ह्रास भी नजर आ रहा है।
वर्ष 2024 के चुनाव में जहां भाजपा 400 पार का नारा लगा रही थी, वह मात्र 240 सीटों पर रुक गई। उसके 106 सांसद दलबदल कर आए हैं। बाहरी सांसदों के पार्टी में प्रवेश के बाद भी सरकार, नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू की बैसाखियों का सहारा लिए हुए है। ऐसी स्थिति में यदि शीर्ष नेतृत्व के द्वारा अतिशीघ्र परिवर्तन नहीं किया गया तो भाजपा के लिए आगे चुनावी वैतरिणी पार करना और कठिन हो जाएगा।
संघ इस स्थिति से भली-भांति परिचित है और वह भाजपा का ह्रास और अधिक होते हुए नहीं देखना चाहता है। इसलिए, संघ की अपेक्षा है कि भाजपा का नया अध्यक्ष एक सुदृढ़ मानसिकता का हो, जो पार्टी को सफलता की नई ऊंचाईयों पर ले जाने में सक्षम हो।
भाजपा की मूल छवि यही है कि यह भ्रष्टाचारविहीन, भारतीय संस्कारों से ओत प्रोत, सत्यता में विश्वास करने वाली, गरीबों का उत्थान करने वाली तथा देशभक्त पार्टी है। लेकिन, आज यह पार्टी अपने कर्तव्य पथ से कुछ भटक गई लगती है। इसको संघ पुनः सन्मार्ग पर लाने का प्रयास करता दिख रहा है।
(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं)
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