बिहार हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रहा है। इस राज्य में नालन्दा जैसे विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रमुख केन्द्र रहे हैं। यह राज्य महात्मा बुद्ध की कर्मस्थली रहा है एवं भगवान श्रीराम का भी बिहार से अटूट संबंध रहा है। ऐसे ऐतिहासिक महत्व वाला बिहार राज्य वर्तमान में असामाजिक तत्वों तथा भ्रष्टाचार का केन्द्र बन गया है।
आज यहां कोई भी उद्योगपति न तो निवेश का इच्छुक है और ना ही किसी भी तरह का व्यवसाय करना चाहता है। जिस बिहार राज्य पर उसकी विशिष्टताओं के कारण बिहार की जनता कभी गर्व का अनुभव करती थी, आज वही बिहार उन्हें शर्मसार कर रहा है।
बीते एक माह के दौरान बिहार राज्य में नदियों एवं अन्य स्थानों पर बने हुए अनेक नवनिर्मित, निर्माणाधीन या कुछ पुराने पुल ताश के पत्तों की तरह धाराशायी हो गए और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। दूसरी ओर, यहां यह भी जानना जरूरी है कि स्वतंत्रता से पूर्व भारत में अंग्रेजों द्वारा प्रमुख नदियों पर कई बड़े-बड़े पुलों का निर्माण किया गया था, जो कि अभी तक सुदृढ़ अवस्था में हैं। उन पर आज भी भारी वाहनों का आवागमन होता है।
चिंता का विषय यह है कि भारत के इंजीनियरों व ठेकेदारों द्वारा पुलों का निर्माण इतनी उपेक्षा से किया जा रहा है कि ये निर्माणधीन अवस्था अथवा संचालन से पूर्व ही खंडित हुए जा रहे हैं। इन सभी पुलों का निर्माण परिवहन मंत्रालय द्वारा कराया जाता है। इनका तकनीकी नक्शा भी मंत्रालय के इंजीनियरों द्वारा तैयार किया जाता है एवं उनमें प्रयोग की जाने वाली निर्माण सामाग्री भी इंजीनियरों के दिशा-निर्देशों के अनुरूप ही प्रयोग करके, अनेक उच्च अधिकारियों द्वारा निरीक्षण कर प्रमाणित किया जाता है।
इतना सब होने के पश्चात भी यदि पुल की गुणवत्ता अत्यन्त निम्न स्तर की हो तो उससे दो बातें स्पष्ट हैं कि या तो इन पुलों के निर्माण में संलग्न इंजीनियर व अधिकारियों का ज्ञान पूर्ण नहीं है या वे पुल निर्माण कार्य में ही सक्षम नहीं हैं। इसके इतर, इन पुलों के निर्माण का ठेका लेने वाले ठेकेदार ने पुल निर्माण सामग्री में जरूर कुछ हेरा-फेरी की है। दोनों ही स्थितियां अत्यधिक शर्मनाक हैं।
निश्चित रूप से, लगातार ढहते हुए ये पुल उभरते भारत के भविष्य की कल्पना को धूलधूसरित कर रहे हैं।
(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं)
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