हरियाणा के विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं और भाजपा वहां फिर से भगवा झंडा लहराकर पुनः सत्तासीन होने में सफल हो चुकी है। विपक्षियों के समस्त प्रयासों के बावजूद उसने समस्त समीकरणों को ध्वस्त कर तीसरी बार विजयश्री प्राप्त की।
यद्यपि, हरियाणा में भाजपा ने एक ऐतिहासिक विजय प्राप्त की, परन्तु वहां की जीत विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा नेतृत्व के सामने कुछ प्रश्नचिह्न भी रखती है। राज्य में सत्तानशीं डबल इंजन की सरकार से विगत 10 वर्षों के शासन काल में ऐसी क्या त्रुटि रह गई, जो कि इस चुनाव में विजय प्राप्त करने के लिए पार्टी को इतना परिश्रम करना पड़ा और हर चुनावी कूटनीतिक अस्त्र को प्रयोग में लाना पड़ा। अपने शासन काल के दौरान सत्तारूढ़ दल द्वारा जनता का पूर्ण विश्वास न जीत पाने के कारण ही विजय एवं पराजय का अन्तर महज एक फीसदी से भी कम रहा।
लोकतंत्र में विजय अथवा पराजय मिलना ही महत्वपूर्ण नहीं है, अपितु वह विजय अथवा पराजय सम्मानपूर्वक हुई अथवा नहीं यह तथ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है। विपक्षी दल आरोप लगाते हैं कि चुनाव आयोग द्वारा सत्तापक्ष की सहायता की गई। विपक्षियों के इन आरोपों में कितना सत्य अथवा असत्य निहित है, यह तो चुनाव आयोग ही बता सकता है। परन्तु, इतना सत्य जरूर है कि चुनाव आयोग को यह समझना ही होगा कि सम्पूर्ण विश्व की निगाहें हमारे लोकतंत्र पर हैं। यदि प्रतिपक्ष अनर्गल प्रचार कर रहा है तो उसे अविलम्ब न्यायिक दंड दिलाएं।
अब बारी महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों की है। भाजपा, अपने सहयोगी दलों के साथ अत्यधिक खींचातानी एवं प्रयासों के पश्चात सीटों का बंटवारा करने में सफल हो चुकी है। दोनों ही गठबंधन अपनी-अपनी जीत की ताल ठोक रहे हैं। परन्तु, विजयश्री किसको प्राप्त होगी, यह कहना अभी बहुत कठिन है। महाराष्ट्र में कोई भी ऐसा कद्दावर नेता नहीं, जिस पर जनता आंख बन्द करके विश्वास करती हो।
मोदी द्वारा चुनावी प्रलोभन देने की रीति का प्रतिरोध पहले ही व्यक्त किया जा चुका है, फिर, महाराष्ट्र चुनाव से पूर्व राज्य सरकार द्वारा प्रलोभन स्वरूप हजारों करोड़ की रेवड़ियां बांटने की क्या आवश्यकता पड़ गई? क्या वे योजनाएं वास्तव में जनता तक पहुंच पाएंगी? केन्द्र सरकार द्वारा जनता का विश्वास जीतने में क्या कोई शंका रह गई थी? एकनाथ शिंदे के साथ ही उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस बहुत ही जुझारू पार्टी कार्यकर्ता हैं। उन्होंने शिंदे के साथ मिलकर महाराष्ट्र की जनता की पूर्ण सेवा की है, क्या इसमें उन्हें कोई शंका है? उनको अपने कार्य पर गर्व होना चाहिए था और उसी को जनता के समक्ष रखते तो शायद ज्यादा बेहतर होता।
अब अंतिम परिणाम तो मतगणना के बाद ही आएगा। तब ही पता चलेगा कि विजयश्री किसे मिलेगी। तब तक हम और आप यह उम्मीद कर सकते हैं कि चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता पर किसी की भी उंगली नहीं उठाने देगा।
(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं)
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