दिल्ली की बागडोर अब आतिशी के हाथों में हैं और उन्होंने खुद को केजरीवाल का ‘भरत’ घोषित कर उनकी खड़ाऊं सत्ता के सिंहासन पर रख दी हैं। अब आगामी चुनावों में उनका मुकाबला पहले की तरह प्रदेश में नेतृत्वविहीन भाजपा से होना है।
राजनीतिक हलकों में, फिलहाल, आतिशी को आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल की ‘मजबूरी’ माना जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री की कहानी का यदि फिर पुनरावलोकन करें तो एक समय के आयकर विभाग कर्मचारी केजरीवाल नौकरी से त्यागपत्र देकर अन्ना हजारे के आन्दोलन में सम्मिलित हुए और बाद में कई तरह की घटनाओं के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने दिल्ली की जनता के लिए चिकित्सा एवं शिक्षा के क्षेत्र में कई सफल प्रयोग किए। इसी दौरान उन्हें शराब घोटाले के आरोप में कारावास काटना पड़ा और कोरट-कचहरियों के चक्कर लगाने पड़े। तदोपरांत, लगभग छह माह की जेल के बाद सर्वोच्च न्यायालय से उनको कुछ शर्तों के साथ जमानत दे दी। इन शर्तों के चलते उनकी छवि एक दिखावटी मुख्यमंत्री के रूप में रह गई। अब वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर अपने पद के अनुरूप कार्य नहीं कर सकते थे। इस कारण, अब उनके पास किसी अन्य को नामित करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प शेष नहीं था।
वर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी ने राजनीति में अपनी पहचान आम आदमी पार्टी की एक कर्मठ नेता के रूप में स्थापित की है। वह प्रथम बार दिल्ली से विधायक निर्वाचित हुई। तत्पश्चात, उनको दिल्ली सरकार के 10 मंत्रालयों के संचालन का दायित्व दिया गया। इसी के साथ-साथ, वह आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता भी नियुक्त की गई। संभवत: उनकी कार्यशैली से प्रभावित होकर अरविन्द केजरीवाल ने उनके नाम का प्रस्ताव अपने विधायकों के समक्ष रखा होगा, जिसे सभी ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया। और, इस प्रकार, आतिशी के मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। मुख्यमंत्री आतिशी 43 वर्ष की हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा अभी मात्र 11 वर्ष की है। परन्तु, इन 11 वर्षों में उन्होंने पार्टी में जो सर्वमान्यता प्राप्त की है, वह बहुत ही कम लोगों को प्राप्त होती है।
आतिशी के मुख्यमंत्री बनने के बाद दिल्ली में भाजपा तथा आम आदमी पार्टी के मध्य मुकाबला अब अत्याधिक रोचक हो चला है। अब देखना यह है कि आतिशी के प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा किस नेता को अपना उम्मीदवार बनाती है। वर्तमान में भाजपा में दिल्ली का कोई भी नेता उतना लोकप्रिय नहीं दिखता, जिसे पार्टी मुख्यमंत्री के रूप में आगे कर सके। भाजपा की एक नेता स्मृति ईरानी का नाम चर्चा में है। लेकिन, उनकी समस्या यह है कि उनकी पहचान भाजपा के शीर्ष नेताओं के मध्य तो है, परन्तु दिल्ली के साधारण मतदाताओं के मध्य वह प्रभावहीन नजर आती हैं। अब आगामी चुनाव छह माह में प्रस्तावित है। संभावना यह है कि प्रदेश का आगामी चुनाव भी मोदी के नेतृत्व में ही हो। विडम्बना यह है कि आज भाजपा के पास चमत्कारी नेता के रूप में एक मात्र मोदी ही हैं, जिनकी लोकप्रियता के आधार पर भाजपा अन्य राज्यों की भांति ही दिल्ली का चुनाव लड़ेगी।
चुनावों का परिणाम भविषय के गर्त में हैं। आम आदमी पार्टी पहले की तरह एक बार फिर चुनाव जीतेगी या इस बार बीजेपी कई तरह से कमजोर होने के बावजूद फिर से सत्तानशीं होगी, इस रहस्य का उद्घाटन ही लोकतंत्र का सच्चा आनंद है।
(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं)
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