साल 2025 हिंदुस्तान के लिए उम्मीद की किरण लेकर आया है क्योंकि दक्षिण पश्चिमी मानसून अपने वक़्त से पहले ही आ चुका है। इससे मुल्कभर में बहुत ज़रूरी राहत मिलने की उम्मीद है।
मौसम की भविष्यवाणियों में मुल्क के अहम इलाकों में मानसून के आगे बढ़ने की तफ़सील भी दी गई है। दिल्ली-एनसीआर में जून के आखिर तक पहली मानसूनी बारिश होने का अंदाज़ा है, और पूरी हिंदुस्तानी सरज़मीन पर 15 जुलाई तक इसके फैलने की उम्मीद है।
कुल बारिश की मात्रा के लिहाज़ से, मौसम विभाग ने जून से सितंबर तक के दौर के लिए दीर्घकालिक औसत बारिश का 105 फीसदी ‘औसत से ज़्यादा’ मानसून रहने की भविष्यवाणी की है। इस आशावादी अनुमान की पुष्टि, एक मामूली फ़र्क़ के साथ, निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट ने भी की है, जिसने दीर्घकालिक औसत बारिश का तकरीबन 103 फीसदी सामान्य मानसून रहने की उम्मीद ज़ाहिर की है।
इस साल मानसून का भौगोलिक वितरण समान रहने की उम्मीद नहीं है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल और कर्नाटक के कई इलाकों में मामूली से ज़्यादा बारिश होने का संभावना है। यह इन इलाकों के खेतिहर समुदायों और पानी के भंडारों के लिए बहुत अच्छा इशारा है। इसके बरअक्स, उत्तर पूर्वी हिंदुस्तान, लद्दाख का बुलंदी वाला इलाक़ा और तमिलनाडु में मामूली से कम बारिश होने की उम्मीद है। इसके लिए इन इलाकों के किसानों को पानी के बेहतर इंतज़ाम और फ़सल की एहतियाती मंसूबाबंदी करने की ज़रूरत होगी ताकि पानी की किल्लत से बचा जा सके।
साल 2025 में मज़बूत और वक़्ती मानसून के लिए कई मौसमी कारण अनुकूल नज़र आ रहे हैं। एल नीनो सदर्न ऑसिलेशन फ़िलहाल न्यूट्रल चरण में है, जो तारीखी ऐतिहासिक तौर पर हिंदुस्तानी उपमहाद्वीप में सेहतमंद मानसूनी गतिविधि से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा, बंगाल की खाड़ी में हल्के ला नीना जैसे हालात पैदा होने से कम दबाव वाले सिस्टम बनने की संभावना है, जो मानसूनी हवाओं को चलाने और बारिश बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी हैं।
इस आशावादी परिदृश्य में इज़ाफ़ा करते हुए, जनवरी से मार्च के बीच यूरेशियाई इलाक़े में नॉर्मल से कम बर्फ़बारी हुई है। इसकी अहमियत इसलिए है क्योंकि इस इलाक़े में कम बर्फ़बारी का हिंदुस्तान में मज़बूत गर्मी के मानसून से ताल्लुक़ पाया गया है। इन मौसमी इशारों का आपसी तालमेल आने वाले बारिश के मौसम के लिए एक सुखद तस्वीर पेश करता है।
खेती-बाड़ी की तरक़्क़ी और विकास के लिए एक ज़रिया है मानसून जो जीवन जल की हैसियत रखता है, क्योंकि मुल्क की आधी से ज़्यादा खेती मौसमी बारिशों पर निर्भर है। चावल, गन्ना, कपास और दालों जैसी अहम फ़सलें वक़्ती और मुनासिब मानसूनी बारिश पर बहुत ज़्यादा आधारित होती हैं। 2025 में भरपूर मानसून से खेती की पैदावार में काफ़ी इज़ाफ़ा होने की उम्मीद है, जिससे आमदनी बढ़ेगी और लाखों किसानों की ज़िंदगी बेहतर होगी। इसका बदले में रोजमर्रा की जरूरी चीजें, ट्रैक्टरों की बिक्री और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री जैसे मुल्क की तरक़्क़ी में सीधे तौर पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
खेती-बाड़ी के अलावा, एक मज़बूत मानसून मुल्क के अहम पानी के ज़ख़ीरों को फिर से भर देगा, जिससे जलाशय और ज़मीन के अंदर पानी की सतह ऊपर आएगी। यह मुल्क के मुख्तलिफ़ हिस्सों में पानी की किल्लत को कम करने में अहम किरदार अदा करेगा, ख़ास तौर पर उन इलाकों में जो हाल के सालों में सूखे जैसे हालात से जूझ रहे हैं। इससे खेती और घरेलू ज़रूरतों दोनों के लिए पानी की ज़्यादा सुरक्षा यक़ीनी होगी।
आशावादी भविष्यवाण के बावजूद, मौसम के विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में साइक्लोनिक सरगर्मी तेज़ होने जैसी अप्रत्याशित सूरतेहाल मानसून की मामूल की रफ़्तार में रुकावट डाल सकती हैं। इन मौसमी ख़राबियों से कुछ इलाकों में तेज़ बारिश और सैलाब आ सकता है, और मानसून की रफ़्तार अस्थायी तौर पर कमज़ोर भी पड़ सकती है।
कुल मिलाकर, 2025 का मानसून हिंदुस्तान के लिए, ख़ास तौर पर इसके खेतिहर क्षेत्रों और पानी के ज़ख़ीरे के इंतज़ाम के लिए सकारात्मक इशारे लेकर आया है। जबकि मुल्क का बड़ा हिस्सा भरपूर बारिश की उम्मीद कर रहा है। उत्तर पूर्वी राज्यों और तमिलनाडु के किसानों को आगाह किया गया है कि वह कम बारिश के लिए तैयार रहें और अपनी फ़सलों की हिफ़ाज़त के लिए पानी देने की कारगर योजना बनाना पहले से कर लें।
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