कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है। इसमें लाखों तीर्थयात्री पवित्र नदियों में स्नान के लिए आते हैं। यह स्नान आध्यात्मिक शुद्धि और नवीनीकरण का प्रतीक है। यह हर 12 साल में चार बार क्रमिक रूप से गंगा पर हरिद्वार में, शिप्रा पर उज्जैन में, गोदावरी पर नासिक और प्रयागराज, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है, होता है। अर्द्ध कुंभ मेला हर छह साल में हरिद्वार और प्रयागराज में होता है, जबकि महाकुंभ मेला, एक दुर्लभ और भव्य आयोजन है, जो हर 144 साल में होता है।
कुंभ मेला आध्यात्मिक से कहीं बढ़कर संस्कृतियों, परंपराओं और भाषाओं का एक जीवंत मिश्रण है, जो एक ‘लघु भारत’ को प्रदर्शित करता है। यहां लाखों लोग बिना किसी औपचारिक निमंत्रण के एक साथ आते हैं। यह आयोजन विभिन्न पृष्ठभूमियों से तपस्वियों, साधुओं, कल्पवासियों और साधकों को एक साथ, एक स्थान पर लाता है, जो भक्ति, तप और एकता का प्रतीक है। साल 2017 में यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता प्राप्त, कुंभ मेला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। साल 2025 में प्रयागराज अनुष्ठानों, संस्कृति और खगोल विज्ञान के मेल इस भव्य आयोजन की 13 जनवरी से 26 फरवरी तक फिर से मेजबानी करेगा।
Read in English: Maha Kumbh Mela to set new global standards for spiritual events
इस दौरान, तीर्थयात्री न केवल आध्यात्मिक अनुष्ठानों की एक श्रृंखला में शामिल होंगे, बल्कि एक ऐसे सफ़र पर भी निकलेंगे जो भौतिक, सांस्कृतिक और यहां तक कि आध्यात्मिक सीमाओं से भी परे है। शहर की जीवंत सड़कें, चहल-पहल भरे बाज़ार और स्थानीय व्यंजन इस अनुभव में एक समृद्ध सांस्कृतिक परत जोड़ते हैं। अखाड़ा शिविर एक अतिरिक्त आध्यात्मिक आयाम प्रदान करते हैं, जहां साधु और तपस्वी चर्चा, ध्यान और ज्ञान साझा करने के लिए एक साथ आते हैं। साथ में, ये तत्व महाकुंभ को आस्था, संस्कृति और इतिहास का एक असाधारण उत्सव बनाते हैं, जो सभी उपस्थित लोगों को एक समृद्ध अनुभव प्रदान करता है।
इस बार का महाकुंभ मेला उन्नत सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के साथ भी भक्तों के अनुभव को बेहतर करने के लिए तैयार है। इससे सभी प्रतिभागियों के लिए एक निर्बाध, सुरक्षित और अधिक मनोरंजक यात्रा सुनिश्चित होगी। बेहतर स्वच्छता प्रणाली, विस्तारित परिवहन नेटवर्क और उन्नत सुरक्षा उपायों से एक सहज, सुरक्षित और अधिक समृद्ध अनुभव मिलने की उम्मीद है। अभिनव समाधानों को शामिल करते हुए, मेला इस पैमाने के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मेजबानी के वैश्विक मानकों को फिर से परिभाषित करने के लिए तैयार है।
प्रयागराज का समृद्ध इतिहास 600 ईसा पूर्व का है, जब वत्स साम्राज्य फला-फूला और कौशाम्बी इसकी राजधानी थी। गौतम बुद्ध ने कौशाम्बी की यात्रा की थी। बाद में, सम्राट अशोक ने मौर्य काल के दौरान इसे एक प्रांतीय केंद्र बनाया, जो उनके एक पत्थर से बने स्तंभों से जाना जाता था। शुंग, कुषाण और गुप्त जैसे शासकों ने भी इस क्षेत्र में कलाकृतियां और शिलालेख छोड़े हैं।
सातवीं शताब्दी में, चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने प्रयागराज को ‘मूर्तिपूजकों का महान शहर’ बताया था, जो इसकी मजबूत ब्राह्मणवादी परंपराओं को दर्शाता है। शेर शाह के शासनकाल में इसका महत्व बढ़ गया, जिसने इस क्षेत्र से होकर ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण कराया। 16वीं शताब्दी में, अकबर ने इसका नाम बदलकर 'इलाहाबास' कर दिया, जिससे यह एक किलेबंद शाही केंद्र और प्रमुख तीर्थ स्थल बन गया, इसी ने इसकी आधुनिक प्रासंगिकता के लिए मंच तैयार किया।
त्रिवेणी संगम वह स्थान है जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है। माना जाता है कि अदृश्य सरस्वती, जो ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक हैं, कुंभ मेले के दौरान प्रकट होती हैं। त्रिवेणी संगम पर आने वाले तीर्थयात्री प्रयागराज में कई प्रतिष्ठित मंदिरों के भी दर्शन करते हैं। संत समर्थ गुरु रामदासजी द्वारा स्थापित दारागंज में श्री लेटे हुए हनुमान जी मंदिर में शिव-पार्वती, गणेश, भैरव, दुर्गा, काली और नवग्रह की मूर्तियां हैं। पास ही, श्री राम-जानकी और हरित माधव मंदिर आध्यात्मिक वातावरण में चार चांद लगाते हैं। श्री अलोपशंकरी देवी को समर्पित अलोप शंकरी मंदिर और नाग देवता का सम्मान करने वाला नागवासुकी मंदिर भी लोकप्रिय हैं। इन्हें मेले के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है।
शंकर विमान मंडपम, एक 130 फुट ऊंचा दक्षिण भारतीय शैली का मंदिर है। इसमें आदि शंकराचार्य, कामाक्षी देवी और तिरुपति बालाजी की मूर्तियां हैं। प्रयागराज के बारह माधव मंदिरों में सबसे महत्वपूर्ण श्री वेणी माधव मंदिर प्रयाग तीर्थयात्रा को पूरा करने के लिए आवश्यक है। इलाहाबाद किले के पास अक्षयवट वृक्ष और पातालपुरी मंदिर का पौराणिक महत्व है। अक्षयवट एक पवित्र वट वृक्ष है, जिसका उल्लेख हिंदू ग्रंथों में मिलता है। अन्य उल्लेखनीय मंदिरों में मनकामेश्वर मंदिर, दशाश्वमेध मंदिर और तक्षकेश्वर नाथ मंदिर शामिल हैं। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्य को संरक्षित करने के लिए महाकुंभ मेला के लिए सरस्वती कूप का नवीनीकरण किया गया है। राम घाट पर शाम की गंगा आरती नदी देवी के सम्मान में एक मनोरम अनुष्ठान है।
प्रयागराज भारत के चौथे सबसे पुराने विश्वविद्यालय इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लिए भी जाना जाता है। इसकी स्थापना 23 सितंबर, 1887 को हुई थी। इतिहास में इसकी उत्पत्ति 9 दिसंबर, 1873 को सर विलियम मुइर द्वारा स्थापित मुइर सेंट्रल कॉलेज से जुड़ी है। प्रयागराज का 1864 में स्थापित और 1878 में अपने वर्तमान भवन में स्थानांतरित सार्वजनिक पुस्तकालय में दुर्लभ पांडुलिपियां और पुस्तकें हैं। यहीं, साल 1887 में राज्य की पहली विधान परिषद की बैठक भी हुई थी जिससे इसका ऐतिहासिक महत्व और बढ़ गया।
प्रयागराज में पिछला साल 2019 का कुंभ मेला भी एक ऐतिहासिक आयोजन था। इसमें 24 करोड़ तीर्थयात्री शामिल हुए थे। तब इसके आयोजन ने वैश्विक स्तर पर प्रशंसा बटोरी थी। 70 मिशन प्रमुखों और 3,200 प्रवासी भारतीय प्रतिभागियों सहित 182 देशों के नेताओं ने व्यवस्थाओं की सराहना की।
इस बार का महाकुंभ मेला एक ऐतिहासिक आयोजन होने के साथ-साथ पिछले आयोजनों की सफलता को आगे बढ़ाते हुए नवाचार की प्रगति को अपनाएगा। प्रयागराज का समृद्ध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ताना-बाना, अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ मिलकर तीर्थयात्रियों को आस्था, एकता और भक्ति का एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करेगा। आयोजन की सतर्क योजना और परंपरा के साथ आधुनिक तकनीक का मेल कुंभ मेले को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा, जो बड़े पैमाने पर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समारोहों की मेजबानी के लिए एक वैश्विक मानक स्थापित करेगा।
जब यहां लाखों लोग एक बार फिर संगम पर एकत्रित होंगे, तो महाकुंभ मेला भारत की स्थायी आध्यात्मिक विरासत और विविधता और सद्भाव का जश्न मनाने की उसकी प्रतिबद्धता का एक शक्तिशाली प्रतीक बना रहेगा।
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