मणिपुर, भारत के सात पूर्वोत्तर राज्यों में से एक प्राकृतिक संसाधनों से ओत-प्रोत राज्य है। इस राज्य को दक्षिण एशिया का ‘प्रवेश द्वार’ भी माना जाता है। मणिपुर भारत के सर्वाधिक सुन्दर स्थानों में से एक है। यहां की शांत जलवायु, हरे-भरे लहलहाते घने वन और सुन्दर झीलें इस पर्वतीय क्षेत्र की सुन्दरता में चार चांद लगा देते है।
ऐसे प्यारे मणिपुर को हिंसा की ज्वाला में धधकते दो वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। प्रतिदिन वहां कोई न कोई लज्जित करने वाली घटना घटित हो ही रही है। महिलाओं पर अत्याचार, घरों को फूंकना, लड़ाई, दंगा आदि क्या-क्या वहां घटित नहीं हो रहा है। इसका वर्णन करना ही रोंगटे खड़े कर देता है और जो प्रदेश ऐसी वीभत्स स्थिति का इतने लंबे समय तक साक्षी रहा हो, उसकी जनता की पीड़ा के विषय में विचार करना भी आसान नहीं है।
आज यह तथ्य भी स्वीकार करना ही होगा कि वहां सरकार का नियंत्रण समाप्त हो गया है। दुःख इस बात का है कि वहां के मुख्यमंत्री, स्थिति की गम्भीरता के अनुरूप देश एवं प्रदेश के हित में निर्णय क्यों नहीं ले पा रहे हैं। क्यों, वह मणिपुर में बांग्लादेश सदृश परिस्थितियों की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब मणिपुर के राजनेताओं और अधिकारियो के विरुद्ध खराब घटनाएं होनी शुरू हो जाएंगी। यदि ऐसा हो जाता है तो वह परिस्थिति भारत की संस्कृति पर एक आघात होगा।
अब समय आ गया है कि वहां के मुख्यमंत्री, अविलम्ब अपना कार्यभार अपने किसी योग्य साथी को स्थानान्तरित कर दें अथवा राष्ट्रपति शासन के लिए केन्द्र सरकार को अनुशंसा कर दें। ताकि, केन्द्रीय सुरक्षाबल, वहां की असहाय जनता को सुरक्षा प्रदान करने का कार्य कर सकें और कानून का शासन पुनः स्थापित हो सके। यदि ऐसा करने में और अधिक विलम्ब किया गया तो मणिपुर की ज्वाला अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में भी फैलने की आशंका है। ऐसा होता है तो एक भंयकर स्थिति उत्पन्न हो सकती है। शायद, इसी स्थिति को भांपकर गृहमंत्री अमित शाह को अपना महाराष्ट्र दौरा छोड़कर तुरंत दिल्ली वापस आना पड़ा और मणिपुर पर अपना ध्यान केन्द्रित करना पड़ा।
अब समय आ गया है कि प्रदेश की वर्तमान परिस्थिति को गम्भीरता से लिया जाए। अब वहां प्रेम का प्रवाह उत्पन्न करने की आवश्यकता है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो इसके बहुत गम्भीर परिणाम देश को भुगतने होंगे। मणिपुर की घटनाओं से सम्पूर्ण देश विचलित है। चुनावों में विजयश्री प्राप्त करना ही किसी पार्टी का उद्देश्य नहीं होता, अपितु आम जनता का पूर्ण ध्यान रखना भी उसकी प्रथम वरियता पर आना चाहिए।
अब समय आ गया है कि भारत के विदुषी, ज्ञानी और संत, मणिपुर के विषय में मंथन कर, वहां स्थिति को सामान्य करने के लिए सरकार को सुझाव दें। वे स्वयं भी मणिपुर की ओर प्रस्थान करें और वहां की जनता के भय, निराशा, क्रोध को शांत कर सद्भावना और प्रेम का वातावरण स्थापित करने में अपना योगदान दें। इन विषम परिस्थितियों में प्रेम व सौहार्द का ही मार्ग उत्तम प्रतीत होता है। यह काम हमारे साधु-संत सहजता के साथ कर सकते है। इसके लिए उन संतो को जनता से संवाद स्थापित करना होगा। यदि ऐसा हो जाता है तो ईश्वर भी अपनी कृपा स्वयं ही बरसा देंगे और मणिपुर पुनः स्वर्ग बन जाएगा।
(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं।)
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