पिछले सात दशकों से एक ख़तरनाक पैटर्न देखने को मिल रहा है। पश्चिमी मीडिया लगातार भारत को गलत ठहराता रहा है, जबकि पाकिस्तान और कुछ इस्लामी हुकूमतों को बेगुनाह बताता है। यह सिर्फ रिपोर्टिंग नहीं, बल्कि एक साज़िशन झूठा कथ्य गढ़ने की कोशिश है, जो न सिर्फ़ भारत के खिलाफ़ है, बल्कि आतंकवाद को भी मजबूती देती है।
1947 के बंटवारे से लेकर 1965, 1971, 1999 की जंग, 2019 के बालाकोट स्ट्राइक, और हाल के आतंकवाद को नियंत्रित करने के ऑपरेशन सिंदूर अभियान तक, हर बार पश्चिमी मीडिया ने भारत को ही हमलावर बताया, जबकि पाकिस्तान को मासूम बनाकर पेश किया।
Read in English: How Western media's double standards strengthening terrorism
जबकि सच्चाई यह है कि पाकिस्तान दुनियाभर में आतंक फैलाने वाले गुटों जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को पनाह देता रहा है। साल 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले में सैकड़ों बेगुनाह मारे गए, लेकिन पश्चिमी मीडिया ने पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने के बजाय ‘दोनों पक्षों को संयम बरतना चाहिए’ जैसे बयान दिए।
जब भारत ने बालाकोट में आतंकियों के ठिकानों पर सटीक हमला किया, तब भी पश्चिमी मीडिया ने भारत की सफलता को नज़रअंदाज़ कर झूठी ख़बरें फैलाईं कि भारत के फाइटर प्लेन गिर गए और अब पाकिस्तान की चीनी हथियारों पर निर्भरता को सराहा गया है, लेकिन भारत की संयमित कार्रवाई को नजरअंदाज कर दिया गया।
प्रो. पारस नाथ चौधरी कहते हैं कि “भारत एक लोकतांत्रिक, विविधतापूर्ण और मज़बूत अर्थव्यवस्था वाला देश है, फिर भी पश्चिमी मीडिया पाकिस्तान की तरफ झुकाव दिखाता है, जो बार-बार आतंकियों को पालता है, अल्पसंख्यकों को दबाता है और कभी फौजी तो कभी कमज़ोर जम्हूरी हुकूमतों के बीच झूलता रहता है।”
प्रो. चौधरी कहते हैं, "पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और अमेरिका की तरफ से लगातार आर्थिक मदद मिलती रही है, जबकि वह खुद आतंक को बढ़ावा देता है। ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान की फौजी छावनी में पकड़ा गया, पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई। दूसरी तरफ़, भारत को, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बार-बार मानवाधिकार पर भाषण सुनना पड़ता है।"
दक्षिण एशियाई मामलों के जानकार, डॉ बर्ट्रेंड शाह कहते हैं, "बांग्लादेश में भी कट्टर इस्लामी ताक़तों के बढ़ने पर पश्चिमी देशों की चुप्पी शर्मनाक है। वहां के गैर-सरकारी संगठनों को अमेरिका से पैसा मिलता है, जिनका संबंध जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों से रहा है। सिर्फ़ बंगाल की खाड़ी तक पहुंच बनाने के लिए, ये ताकतें कट्टरपंथ को नज़रअंदाज़ कर रही हैं।"
इस पूरे भेदभाव की जड़ें सांस्कृतिक हैं। पश्चिम मीडिया को हिंदू धर्म की बहुलता और विविधता समझ में नहीं आती। पश्चिमी पत्रकारों को ये संस्कृति ‘पिछड़ी’ या ‘अंधविश्वासी’ लगती है, जबकि इस्लामी समाजों को वे ‘पीड़ित’ मानते हैं। यही दोहरी सोच भारत के खिलाफ़ एक साजिश को पोषित कर रही है।
भारत की गुटनिरपेक्ष नीति और स्वतंत्र विदेश नीति भी पश्चिम को चुभती है। पाकिस्तान जैसा देश, जो अमेरिकी हितों के लिए मोहरा रहा है, उनके लिए उपयोगी है, पर भारत की स्वाभिमानी नीति उन्हें मंज़ूर नहीं।
यह सब केवल रिपोर्टिंग की ग़लती नहीं है, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है। जब भारत की छवि को गलत तरीके से दिखाया जाता है, तो न सिर्फ़ भारत को नुक़सान होता है, बल्कि आतंकवाद को भी बल मिलता है।
अब समय आ गया है कि इस दोहरी मानसिकता को बेनकाब किया जाए। पश्चिमी मीडिया का भारत-विरोधी रवैया न तो सच्चाई का साथ देता है और न ही इंसाफ का। जब तक यह पक्षपात खत्म नहीं होता, तब तक भारत को विश्व में सही पहचान नहीं मिल सकती।
तकनीक, कूटनीति और जनतांत्रिक मूल्यों के क्षेत्र में भारत अब उभरती हुई ताक़त है। अगर पश्चिम चाहता है कि दुनिया स्थिर और सुरक्षित रहे, तो उसे अपनी सोच बदलनी होगी। वरना, वह खुद अपने भरोसे और मूल्यों को खो देगा।
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