‘व्यावसायिक बुद्धि’ और ‘रणनीतिक दूरदर्शिता’ की हुई जीत


भारत और पाकिस्तान की सीमाओं पर हाल ही में हुआ तथाकथित ‘युद्धविराम’ दक्षिण एशिया की राजनीति में एक महत्वपूर्ण क्षण है, जो शांति, व्यावहारिकता और समझदारी की जीत का प्रतीक है।

यह सफलता अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘व्यावसायिक सूझबूझ’ से संभव हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने इस मौके पर अपनी ताकत और उदारता दिखाई, विकास और वैश्विक सम्मान के लिए जरूरी शांति प्रयासों को अपनाया। पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर जोरदार हमला करके भारत ने अपनी सैन्य ताकत साबित की। फिर भी, ‘युद्धविराम’ स्वीकार कर भारत ने गांधीवादी भावना दिखाई, ताकत की स्थिति से पीछे हटकर दीर्घकालिक स्थिरता को प्राथमिकता दी।

लंबे समय तक युद्ध का खतरा मंडरा रहा था, जिसमें युद्ध-उन्मादी लोग और रिटायर्ड जनरल, अपने सुरक्षित घरों से, तनाव बढ़ाने की वकालत कर रहे थे। उनकी बातों को टीवी एंकरों ने और बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, जिससे समाज में बंटवारा और आर्थिक प्रगति को नुकसान हो सकता था। ऐसी तेज़ आवाज़ वाली बकवास ने सच को छिपा दिया। यह एक शाश्वत सत्य है कि युद्ध दोनों पक्षों को तबाह करता है, अर्थव्यवस्थाओं को बर्बाद करता है और लोगों को कष्ट देता है।

लंबा टकराव चीन को अपनी सैन्य ताकत दिखाने का मौका देता, जिससे उसका निश्चित रूप से क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ता। सबसे डरावना था पाकिस्तान का अंतिम हथियार के रूप में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल, जो पूरे उपमहाद्वीप के लिए खतरा था।

शुक्र है, समझदारी जीती, जिसमें ट्रंप की व्यावसायिक बुद्धि और मोदी की रणनीतिक दूरदर्शिता की बड़ी भूमिका रही। शुरू में पाकिस्तान के ‘युद्धविराम’ प्रस्ताव पर भारत के जवाब से कुछ लोग नाराज़ और निराश थे। लेकिन, धीरे-धीरे लोग मोदी के शांति के हाथ मिलाने के फैसले की समझदारी देखने लगे।

यह ‘युद्धविराम’ न केवल जान-माल की हानि रोकता है, बल्कि भारत की आर्थिक प्रगति को भी सुरक्षित करता है, जो लाखों लोगों को गरीबी और अभाव से मुक्ति दिलाने के लिए जरूरी है। भारत के लोग, जो लंबे समय से अविकास की बेड़ियों में जकड़े हैं, शांति के लाभ—बेहतर स्कूल, अस्पताल और अवसर—के हकदार हैं, न कि युद्ध की तबाही के।

भारतीय नेतृत्व के इस स्थिति को संभालने का तरीका तारीफ के काबिल है। पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को नष्ट करके भारत ने साफ संदेश दिया कि वह अपनी संप्रभुता पर कोई समझौता नहीं करेगा। फिर भी, ‘युद्धविराम’ स्वीकार कर मोदी ने कूटनीतिक जीत हासिल की और भारत को एक परिपक्व वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया। सैन्य ताकत और कूटनीतिक संयम का यह मिश्रण मोदी की टीम की योग्यता को दर्शाता है, जिसके लिए उन्हें पूरे अंक मिलते हैं।

भारत में दिखी एकता इस जीत को और मजबूत करती है। ओवैसी के भाषणों से लेकर चेन्नई में स्टालिन के नेतृत्व में एकता मार्च तक, देश सरकार के प्रयासों के साथ एकजुट हुआ। मुस्लिम समूहों और विपक्षी दलों ने मतभेद भुलाकर समर्थन दिया, जिससे देश में अद्भुत एकता दिखी।

यह ‘युद्धविराम’ कमजोरी नहीं, बल्कि भारत के सशस्त्र बलों पर भरोसे और शांति के प्रति प्रतिबद्धता का सबूत है। जैसे-जैसे धूल बैठती है, संदेश साफ हो गया है। भारत एकजुट और ऊंचा खड़ा है, तैयार है एक ऐसे भविष्य को आकार देने के लिए जहां विकास, न कि विनाश, उसकी पहचान हो।



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