वैज्ञानिकों ने दुर्लभ-पृथ्वी यौगिक में एक नए प्रकार के चुंबकत्व की खोज की है, जिसका उपयोग क्वांटम और स्पिनट्रॉनिक तकनीकों में किया जा सकता है। यह पदार्थों के एक नए वर्ग की कल्पना करता है, जिसे तेज़, अधिक ऊर्जा-कुशल चुंबकीय और क्वांटम उपकरणों को डिज़ाइन करने के लिए अनुकूलित किया जा सकता है।
दुर्लभ-पृथ्वी पदार्थ आधुनिक तकनीक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये इलेक्ट्रिक वाहनों और स्मार्टफ़ोन से लेकर पवन टर्बाइनों और रक्षा प्रणालियों तक, हर चीज़ को शक्ति प्रदान करते हैं। इनमें से, नियोडिमियम-आधारित स्थायी चुम्बक अपने प्रबल चुम्बकीय प्रदर्शन के कारण अपरिहार्य हैं। हालांकि, अब तक, ऐसे पदार्थों में चुम्बकत्व को मुख्यतः इलेक्ट्रॉन के घूर्णन द्वारा संचालित माना जाता था, जो पारंपरिक लौहचुम्बकत्व के लिए उत्तरदायी एक अंतर्निहित गुण है।
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जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र की ओर से किए गए अध्ययन ने पहली बार प्रदर्शित किया कि नियोडिमियम नाइट्राइड की एकल-क्रिस्टलीय विकसित पतली फ़िल्में, इलेक्ट्रॉनों के कक्षीय कोणीय संवेग से उत्पन्न लौहचुम्बकत्व प्रदर्शित करती हैं, जो पारंपरिक चुंबकीय व्यवहार से एक मौलिक बदलाव का प्रतीक है।
हाल ही में ‘एसीएस नैनो’ में प्रकाशित यह ऐतिहासिक खोज, ‘ऑर्बिट्रोनिक्स’ के उभरते क्षेत्र में नई संभावनाओं को खोलती है, जिसका उद्देश्य भविष्य की क्वांटम और स्पिनट्रॉनिक प्रौद्योगिकियों के लिए इलेक्ट्रॉनों की कक्षीय गति का उपयोग करना है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान, जेएनसीएएसआर, बेंगलुरु, के प्रो बिवास साहा के नेतृत्व में टीम ने उन्नत पतली-फिल्म वृद्धि और अभिलक्षणन तकनीकों का इस्तेमाल किया। इसके साथ ही इलेक्ट्रॉनिक संरचना विश्लेषण का भी इस्तेमाल किया गया, जिससे यह पता चला कि क्रिस्टल समरूपता, इलेक्ट्रॉनिक संकरण और दुर्लभ-पृथ्वी कक्षीय अवस्थाएं मिलकर इस अद्वितीय कक्षीय-संचालित चुंबकत्व को कैसे स्थिर करती हैं।
साहा ने कहा, "यह खोज चुंबकत्व की हमारी समझ में एक क्रांतिकारी बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है। कक्षीय स्वतंत्रता की कोटि को नियंत्रित करके, हम पदार्थों के एक नए वर्ग की कल्पना कर सकते हैं जहां स्पिन और कक्षीय आघूर्ण, दोनों को तेज़, अधिक ऊर्जा-कुशल चुंबकीय और क्वांटम उपकरणों को डिज़ाइन करने के लिए समायोजित किया जा सकता है।"
यह अध्ययन एनडीएन की चुंबकीय विषमता और इलेक्ट्रॉनिक बैंड संरचना पर भी प्रकाश डालता है, जो चुंबकत्व में प्रबल कक्षीय योगदान वाले पदार्थों के डिज़ाइन के लिए एक मूलभूत ढांचा प्रदान करता है। स्पिनट्रॉनिक्स की तरह, ऑर्बिट्रोनिक्स की अवधारणा अगली पीढ़ी की सूचना और स्मृति प्रौद्योगिकियों का मार्ग प्रशस्त कर सकती है जो स्पिन-आधारित उपकरणों की सीमाओं से आगे जाती हैं।
यह खोज विशेष रूप से सामयिक है क्योंकि दुर्लभ-पृथ्वी पदार्थों के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा तेज़ हो रही है। उच्च-प्रदर्शन वाले चुम्बकों में एक प्रमुख घटक, नियोडिमियम, स्वच्छ ऊर्जा और रक्षा क्षेत्रों में सबसे रणनीतिक सामग्रियों में से एक है। दुनिया के लगभग आठ फीसदी दुर्लभ-पृथ्वी भंडार के साथ, भारत सामग्री नवाचार के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में योगदान देने के लिए अच्छी स्थिति में है।
जेएनसीएएसआर के अलावा, आईआईएसईआर तिरुवनंतपुरम और राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी, इंदौर के शोधकर्ताओं के साथ-साथ डेसी (जर्मनी) और एएलबीए (स्पेन) के शोधकर्ताओं ने भी इस सहयोगात्मक प्रयास में योगदान दिया। इसमें शामिल अन्य शोधकर्ताओं में रेणुका करंजे, अनुपम बेरा, सौरव रुद्र, देबमाल्या मुखोपाध्याय, सौविक बनर्जी, मनीषा बंसल, किरण बड़ाइक, सौरव चौधरी, वेइबिन ली, मैनुअल वाल्विडारेस और तुहिन मैती शामिल हैं।






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