भारत में नदियां केवल जलधाराएं नहीं होती हैं बल्कि वे सभ्यताओं की जननी, संस्कृतियों की पोषक और धार्मिक आस्थाओं का केंद्र भी होती हैं।
प्राचीन भारत नदियों के किनारे ही विकसित हुआ और ‘सोने की चिड़िया’ कहलाया। इन्हीं नदियों में से एक है यमुना, जो न केवल जल का स्रोत है, बल्कि भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास का एक अभिन्न अंग भी है।
Read in English: Yamuna: The Carrier of Life, Religion, and Culture…
यमुना नदी को दिव्य मातृस्वरूपा देवी के रूप में पूजा जाता है। यमुना ही एक ऐसी नदी है जिसे हिन्दू धर्म में 'महारानी' का दर्जा प्राप्त है। पुराणों के अनुसार, यमुना सूर्य देव की पुत्री और यमराज की बहन हैं, इसलिए माना जाता है कि भाई दूज के दिन यमुना की पूजा करने से यमराज का भय समाप्त होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यमुना केवल एक भौगोलिक नदी नहीं, बल्कि कृष्ण भक्ति की धारा है। जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब वसुदेव ने उन्हें कंस के अत्याचार से बचाने के लिए यमुना पार कर गोकुल पहुंचाया था। कहते हैं कि उस रात यमुना ने श्रीकृष्ण के चरणों का स्पर्श करने के लिए अपनी जलधारा को उछाल दिया। इसी कारण से वैष्णव भक्तों के लिए यमुना केवल एक नदी नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण की लीला भूमि की साक्षी भी है। वृंदावन, मथुरा और गोवर्धन, बटेश्वर जैसे प्रमुख तीर्थस्थल यमुना के किनारे ही स्थित हैं, जहां श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं, रासलीला और भक्ति परंपरा का विकास हुआ।
यमुना का जल केवल जीवन ही नहीं देता, बल्कि भारत की संस्कृति, कला और व्यापार को भी समृद्ध करता आया है। मथुरा और वृंदावन में वैष्णव भक्ति आंदोलन का विकास हुआ, जहां बल्लभाचार्य और चैतन्य महाप्रभु जैसे संतों ने श्रीकृष्ण भक्ति को एक नई दिशा दी। सूरदास ने अपनी अमर रचनाएं यमुना तट पर ही लिखीं। मीरा बाई की भक्ति-भावना भी यहीं फली-फूली।
इतिहास के पन्नों में देखें तो यमुना के किनारे ही महाभारत की रचना हुई। कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत जैसे ऐतिहासिक स्थल यमुना के तट पर ही स्थित हैं, जहां अनेक युद्ध लड़े गए। यही नहीं, मुगल शासकों ने भी यमुना के महत्व को समझा और आगरा तथा दिल्ली में कई भव्य स्मारक इसी नदी के किनारे बनाए, जिनमें ताजमहल, लाल किला और हुमायूं का मकबरा प्रमुख हैं। मुगल बादशाह बाबर ने यमुना के जल को अमृत बताया और आगरा में इसके तट पर आराम बाग बनाया।
यदि गंगा को मोक्षदायिनी माना जाता है, तो यमुना को जीवनदायिनी कहा जाता है। गंगा के तट पर जहां अंतिम संस्कार और अस्थि-विसर्जन किए जाते हैं, वहीं यमुना तट पर पूजा-पाठ, ध्यान और भक्ति रस में डूबने की परंपरा अधिक प्रचलित है। गोकुल, मथुरा, वृंदावन, बटेश्वर आदि तीर्थस्थल यमुना की महिमा को दर्शाते हैं।
यमुना के बिना श्रीकृष्ण कथा अधूरी है, और इसी तरह श्रीकृष्ण के बिना यमुना की महिमा भी अधूरी है। यही कारण है कि हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर भक्तगण यमुना स्नान करते हैं, जिससे उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है।
यमुना की यात्रा उत्तराखंड के यमुनोत्री ग्लेशियर से शुरू होती है, जहां देवी यमुना का मंदिर स्थित है। यह स्थान चार धाम यात्रा का एक महत्वपूर्ण भाग है। यहां से निकलकर यमुना देहरादून, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से होकर बहती है।
हरियाणा और उत्तर प्रदेश में बहते हुए यमुना कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को छूती है। महाभारत कालीन स्थल, संत पराशर और सत्यवती की कथा, राजा भरत और भीष्म पितामह से जुड़े प्रसंग इस नदी के किनारे घटित हुए।
आगरा में प्रवेश करने पर यमुना का रूप और भी भव्य हो जाता है। यहां यह ताजमहल के समीप बहती है, जिससे इसकी सौंदर्यता और बढ़ जाती है। आगरा से आगे बढ़ते हुए यह चंबल और बेतवा जैसी नदियों को अपने में समाहित कर लेती है। अंततः प्रयागराज में यह गंगा और सरस्वती से मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है, जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।
यमुना का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने यमुना के पानी की गुणवत्ता के बारे में बहुत कुछ लिखा है, जिसकी पुष्टि मध्ययुगीन इतिहासकारों और विदेशी यात्रियों ने भी की है। अबुल फजल और लाहौरी दोनों ने यमुना के पानी के बारे में विस्तार से लिखा है। यह यमुना का पानी ही था जिसने शाहजहां को अपने सपनों का स्मारक ताजमहल इसके किनारे बनवाने के लिए मजबूर किया। पंडित जगन्नाथ ने यमुना की प्रशंसा में ‘अमृत लहरी’ लिखी।
इतिहास और धर्म में यमुना का जो महत्व रहा है, वही आज प्रदूषण और अव्यवस्था के कारण खतरे में है। औद्योगिक कचरा, सीवेज और अवैध रेत खनन ने इस नदी को बुरी तरह प्रभावित किया है। दिल्ली और आगरा जैसे शहरों में यमुना की हालत गंभीर हो चुकी है। श्रीकृष्ण की यह प्रिय नदी अब स्वयं मदद की प्रतीक्षा कर रही है।
यमुना केवल जलधारा नहीं, बल्कि भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास की आधारशिला है। यह श्रीकृष्ण की लीलाओं की साक्षी रही है, संतों और भक्तों की प्रेरणा रही है और हजारों वर्षों से भारतीय सभ्यता का पोषण कर रही है। आज इसे बचाने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस पवित्र नदी के महत्व को समझ सकें और इसकी महिमा से लाभान्वित हो सकें।
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