शिंगणापुर के शनि करते हैं शहर की रक्षा, नहीं होती हैं चोरियां


आमतौर पर शनि को लेकर हमारे मन में कई धारणाएं हैं। इसे बहुत कष्ट देने वाला ग्रह माना जाता है। लेकिन, वास्तविकता में ऐसा नहीं है। यदि शनि की आराधना ध्यानपूर्वक की जाए तो उनसे उत्तम कोई आराध्य नहीं है। माना जाता है कि शनि की जिस पर कृपा होती है, उस व्यक्ति के लिए सफलता के सारे द्वार खुल जाते हैं।

भारत में सूर्यपुत्र शनि के कई मंदिर हैं परन्तु, तीन स्थान ऐसे हैं जिन्हें सिद्धपीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है। ये हैं, महाराष्ट्र में शनि शिंगणापुर, वृंदावन में कोकिला वन व ग्वालियर में गोमती तट पर मौजूद सिद्धपीठ। इन तीनों में भी शनि शिंगणापुर की मान्यता सर्वाधिक है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित इस विश्व प्रसिद्ध शनि मंदिर की विशेषता यह है कि यहां शनि महाराज की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक बड़ा सा काला पत्थर है, जिसे शनि का विग्रह माना जाता है।

साथ ही, यह बगैर किसी छत्र के खुले आसमान के नीचे, एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजमान है। इस मूर्ति के उत्तर में एक नीम का वृक्ष है, लेकिन उस वृक्ष की किसी भी डाली की छाया इस मूर्ति पर आज तक नहीं पड़ी है। छाया पड़ने से पहले ही वह डाली खुद-ब-खुद टूटकर गिर जाती है।

गौरतलब है कि शिंगणापुर के अधिकांश घरों में खिड़की, दरवाजे और तिजोरियां नहीं हैं। दरवाजों की जगह केवल पर्दे लगे होते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यहां चोरी की घटनाएं नहीं होती हैं। कहा जाता है कि यहां जो भी चोरी करता है, उसे शनि महाराज स्वयं सजा देते हैं। गांव वालों पर शनि की विशेष कृपा है। यहां चोरी का कोई भय नहीं है।

ऐसी मान्यता है कि बाहरी या स्थानीय लोगों ने यदि कभी यहां किसी के घर से चोरी करने का प्रयास भी किया है तो वह गांव की सीमा से पार नहीं जा पाता है। उससे पूर्व ही शनि का प्रकोप उस पर हावी हो जाता है। उक्त चोर को अपनी चोरी कबूल भी करनी पड़ती है। शनि के समक्ष उसे माफी भी मांगना होती है अन्यथा उसका जीवन नर्क बन जाता है।

शनि के प्रकोप से मुक्ति पाने के लिए देश-विदेश से लोग यहां आते हैं और शनि विग्रह की पूजा करके शनि के कुप्रभाव से मुक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। माना जाता है कि यहां पर शनि महाराज का तैलाभिषेक करने वाले को शनि कभी कष्ट नहीं देते हैं।

शनि मराहाज के शिंगणापुर पहुंचने की कहानी बड़ी रोचक है। कहा जाता है कि सदियों पहले शिंगणापुर में खूब वर्षा हुई। वर्षा के कारण यहां बाढ़ की स्थिति आ गई। लोगों को वर्षा प्रलय के समान लगने लगी। इसी बीच, एक रात शनि महाराज एक गांववासी के सपने में आए और पानस नाले में अपने इस मौजूदा विग्रह के बारे में बताया। शनि महाराज ने अपने विग्रह को उठाकर गांव में लाकर उसे स्थापित करने का निर्देश दिया। सुबह उस व्यक्ति ने गांव वालों को सपने की बात बताई। सभी लोग पानस नाले पर गए और वहां मौजूद शनि का विग्रह देखकर वे हैरान रह गए।

गांव वाले मिलकर उस विग्रह का उठाने लगे, लेकिन वे विग्रह को हिला तक नहीं सके। सभी हारकर वापस लौट आए। शनि महाराज फिर उस रात उसी व्यक्ति के सपने में आए और बताया कि कोई मामा-भांजा मिलकर विग्रह को उठाएं तो विग्रह स्थापना संभव है।

अगले दिन उस व्यक्ति ने जब यह बात बताई तब एक मामा-भांजे ने मिलकर विग्रह को उठाया और बैलगाड़ी पर बिठाकर शनि महाराज को गांव में लाया गया और उस स्थान पर स्थापित किया, जहां वर्तमान में शनि विग्रह मौजूद है। इस विग्रह की स्थापना के बाद उत्तरोत्तर गांव की समृद्घि और खुशहाली बढ़ने लगी। तब से माना जाता है कि मामा यदि अपने भांजे के साथ मिलकर विग्रह के दर्शन करते हैं तो उन्हें विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।

एक और जनश्रुति के अनुसार, कहा जाता है कि जो कोई भी शनि भगवान के दर्शन के लिए प्रांगण में प्रवेश करता है, उसे तब तक पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए, जब‍ तक की वह दर्शन करके वहां से बाहर न निकल जाए। यह वह ऐसा करता है तो उस पर शनि की कृपा दृष्टि नहीं होती है। उसका यहां आना निष्फल हो जाता है।

शिंगणापुर के इस चमत्कारी शनि मंदिर में मौजूद विग्रह लगभग पांच फीट नौ इंच ऊंचा व लगभग एक फीट छह इंच चौड़ा है। देश-विदेश से श्रद्धालु यहां आकर शनि के इस दुर्लभ विग्रह का दर्शन करते हैं। यहां के मंदिर में स्त्रियों का शनि विग्रह के पास जाना वर्जित है। महिलाओं के शनि मंदिर में न जाने और उन्हें स्पर्श न करने के पीछे यह मत है कि शनि केवल एक ग्रह है, कोई देवता नहीं हैं। इस बात का उल्लेख हमें स्कन्द पुराण में भी मिलता है। जबकि, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह बात स्पष्ट है कि महिलाओं का शरीर सृजन क्रिया के लिए होता है।

माना यह भी जाता है कि शनि के मंदिरों में तंत्र-मंत्र और जादू टोने को भगाने का कार्य भी किया जाता है और महिलाओं को तंत्र-मंत्र या झाड़फूंक वाले स्थान पर नहीं जाना चाहिए। वहां मौजूद ऊर्जा उन्हें भारी नुकसान पहुंचा सकती है। लेकिन, 8 अप्रैल 2016 में इस परंपरा के खिलाफ विरोध किए जाने के बाद इस मंदिर प्रांगण में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति मिल गई है। महिलाएं अब दूर से शनिदेव के दर्शन कर सकती हैं।

शनिवार के दिन आने वाली अमावस्या को तथा प्रत्येक शनिवार को यहां शनि की विशेष पूजा और अभिषेक होता है। इस दिन यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। प्रतिदिन प्रातः 4 बजे एवं सायंकाल 5 बजे यहां आरती होती है। शनि जयंती पर जगह-जगह से प्रसिद्ध ब्राह्मणों को बुलाकर 'लघुरुद्राभिषेक' कराया जाता है। यह कार्यक्रम प्रातः 7 से सायं 6 बजे तक चलता है।

सुबह हो या शाम, सर्दी हो या गर्मी, यहां स्थित शनि विग्रह के समीप जाने के लिए पुरुषों का स्नान कर पीताम्बर धारण करना अत्यावश्क है। ऐसा किए बगैर पुरुष शनि विग्रह का स्पर्श नहीं पर सकते हैं। इसके लिए यहां पर स्नान और वस्त्रादि की बेहतर व्यवस्थाएं हैं। खुले मैदान में एक टंकी में कई सारे नल लगे हुए हैं, जिनके जल से स्नान करके पुरुष शनि के दर्शनों का लाभ ले सकते हैं।

भक्त तेल, काले तिल व काले उड़द चढ़ाकर पूजा करते हैं। यहां एक विशेष कुआं है, जिसके पानी से ही शनि भगवान को स्नान कराया जाता है। उस कुएं का पानी किसी और कार्य के लिए प्रयोग नहीं किया जाता है। पूजन सामग्री के लिए यहां आसपास बहुत सारी दुकानें हैं, जहां से पूजन सामग्री लेकर शनि को समर्पित की जा सकती है।

शनि के इस अनूठे आराध्य स्थान की साईं तीर्थ शिरडी से दूरी 40 किलोमीटर, पुणे से 158 किलोमीटर, नासिक से 130 किलोमीटर तथा मुम्बई से 280 किलोमीटर है। मंदिर तक सड़क मार्ग से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है। महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें शिरडी, राहुरी, अहमदनगर, पुणे, वाशी और मुंबई आदि सहित महाराष्ट्र के सभी अन्य प्रमुख स्थलों से आसानी से उपलब्ध हैं।

यह मंदिर ट्रेन के माध्यम से भी सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। मंदिर से जुड़ने वाले कुछ प्रमुख शहरों में मुंबई, पुणे, दिल्ली, गोवा, अहमदाबाद, बेंगलुरु, शिरडी और चेन्नई आदि शामिल हैं। हालांकि, शनि शिंगणापुर का निकटतम रेलवे स्टेशन राहुरी है, जो 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा मंदिर से अहमदनगर 35 किलोमीटर, श्रीरामपुर 54 किलोमीटर और शिरडी रेलवे स्टेशन 75 किलोमीटर दूर है।

मंदिर तक पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा औरंगाबाद में है, जो यहां से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नासिक हवाई अड्डा 144 किलोमीटर व पुणे हवाई अड्डा मंदिर से 161 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए हवाई अड्डे से कार या बस की सेवा ली जा सकती है।



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