सिंगापुर जैसा बनने के लिए भारत के सामने हैं बड़ी बाधाएं

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सिंगापुर यात्रा काफी चार्चाओं में रही। दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच सरकारों और कंपनियों के बीच व्यापार बढ़ाने को लेकर कई समझौते हुए हैं। साथ ही, भारत को सिंगापुर सदृश बनाने के सपने की खबरें भी आईं।

वास्तव में, भारत और सिंगापुर के बीच सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक स्तर पर कई बड़े अंतर हैं। इस यात्रा के परिणामों और सपनों को आगे ले जाने के लिए भारत को कई बाधाओं को दूर करना होगा। कुछ ठोस कदम और कुछ कड़े निर्णय लेने होंगे।

दोनों देशों के बीच व्यापार प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सबसे प्रमुख बाधक समस्या भ्रष्टाचार की है। भ्रष्टाचार को शून्य की ओर लाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को कई कड़े कदम उठाने होंगे।

सिंगापुर में उच्च श्रेणी की शिक्षा व्यवस्था है, जबकि भारत की सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था को दीमक लगी हुई है और अक्सर नियुक्तियों में भ्रष्टाचार के प्रकरण सामने आते रहते हैं। 

सिंगापुर की चिकित्सा व्यवस्था का स्तर काफी ऊंचा है। सभी को एक समान एवं लगभग निःशुल्क चिकित्सा सुविधा की उपलब्धता है जबकि भारत में चिकित्सा के स्तर को बताने की जरूरत नहीं है।

सिंगापुर में जनता को त्वरित न्याय मिलता है और भारत के विभिन्न न्यायालयों में लगभग आठ करोड़ मुकदमे लम्बित पड़े हुए हैं। भारत की आधी से अधिक जनता पिछले 20-25 वर्षों से न्याय की आस में न्यायालयों में चक्कर लगा रही है।

सिंगापुर में महिला के उत्पीड़न की घटनाएं नगण्य हैं। भारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार, यहां प्रतिदिन लगभग 100 महिलाओं का यौन शोषण होता है। इसके अतिरिक्त ऐसे जो कृत्य पुलिस में दर्ज ही नहीं हो पाते, उनकी संख्या कितनी होगी, इसका अनुमान लगाना भी सम्भव नहीं है।

सिंगापुर में नगण्य अपराधों के चलते वहां की सड़कों पर पुलिस के दर्शन दुर्लभ होते हैं। जबकि हमारे यहां अपराधों की भरमार के चलते सड़कों और चौराहों पर हर समय पुलिस तैनात दिखेगी। कई बार तो पुलिस की उपस्थिति में भी अपराधी, अपराध करके भाग जाते हैं।

भारत में नवीन उद्यमियों अथवा अन्य प्रकार के निवेशकों का रास्ता सुगम करने के स्थान पर उनका उपहास किए जाने का चलन रहा है। उन्हें विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। इसके विपरीत, सिंगापुर में उनके लिए रेड कारपेट बिछाया जाता है तथा अधिकारीगण, उन निवेशकों के घर जाकर उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं। यहां निवेशक अधिकारियों एवं मंत्रियों के कार्यालयों में चक्कर काटते रहते हैं।

सिंगापुर की सड़कें, पुल, सरकारी कार्यालय एवं सभी सार्वजनिक भवनों का निर्माण उच्चकोटि का होने के कारण विश्व प्रसिद्ध है। इसके विपरीत, भारत में पुल बनते-बनते गिर जाते हैं। सड़कें निर्माण के तुरन्त पश्चात ही टूट जाती हैं। सार्वजनिक भवन कुछ ही समय पश्चात क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। 

भारत में शुद्ध पेय एवं खाद्य पदार्थ का मिलना एक दुष्कर कार्य है। अबोध शिशुओं के दूध से लेकर वृद्धों के खाद्य पदार्थों तक में मिलावट ही मिलावट है, जबकि सिंगापुर में सभी खाद्य तथा पेय पदार्थ काफी मात्रा शुद्ध रूप में उपलब्ध हैं।

सिंगापुर में वृद्धों का सम्मान किया जाता है। उन्हें ज्यादातर सुविधाएं निःशुल्क तथा उत्तम श्रेणी की प्रदान की जाती है, जबकि भारतीय वृद्धों का हाल कैसा है, यह बताने की जरूरत नहीं है।

सिंगापुर स्वच्छता एवं न्याय का श्रेष्ठतम उदाहरण है। इसके विपरीत, भारत में स्वच्छता के नियमों का पालन न करना और सभी प्रकार के कानून को तोड़ना गर्व का विषय माना जाता है।

सिंगापुर के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री अथवा अन्य नेतागण निडरता के साथ, बिना किसी विशेष सुरक्षा व्यवस्था के साइकिल पर आम जनता के मध्य जाते रहते हैं। क्या भारत में यह संभव है?

भारत के राजनेतागण विभिन्न श्रेणियों की सुरक्षा के साथ राजा-महाराजा के समान मार्ग पर निकलते हैं। उनके सड़कों पर निकलने के समय प्रशासन द्वारा जनता के आवागमन को रोक दिया जाता है। निरीह जनता इस असुविधा तथा उसके कारणों को धिक्कारते हुए उनके निकल जाने की प्रतीक्षा करती रहती है।

यदि प्रधानमंत्री मोदी के अथक प्रयासों से भारत को सिंगापुर सदृश बनाने का स्वप्न पूर्ण हो जाता है तो भारत विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बन सकता है। आशा है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति में अवश्य ही सफल होंगे।

(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं)

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