ओ री चिरैया..., नन्हीं सी चिड़िया..., अंगना में फिर आ जा रे...!

एक समय था जब गांवों की शांत सुबह से लेकर शहरों की शोरगुलभरी चहल-पहल तक, गौरैया हवाओं को अपनी खुशनुमा चहचहाहट से भर देती थीं। इन नन्हें पक्षियों के झुंड, बिन बुलाए मेहमान होने के बावजूद स्वागतयोग्य व अविस्मरणीय यादें बनाते थे। लेकिन, समय के साथ, ये नन्हीं दोस्त हमारी जिंदगी से गायब हो गई हैं। कभी बहुतायत में पाई जाने वाली घरेलू गौरैया अब कई जगहों पर एक दुर्लभ दृश्य और रहस्य बन गई है।

गौरैया छोटी लेकिन एक महत्वपूर्ण पक्षी हैं जो पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं। वे विभिन्न कीड़ों और कीटों को खाकर कीटों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। इसके अतिरिक्त, गौरैया परागण और बीज प्रसार में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। उनकी उपस्थिति जैव विविधता को बढ़ाती है, जिससे वे ग्रामीण और शहरी दोनों पारिस्थितिकी तंत्रों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण बन जाती हैं।

Read in English: Preserving the chirps of our tiny feathered friends…

भारत में गौरैया सिर्फ़ पक्षी नहीं हैं; वे साझा इतिहास और संस्कृति का प्रतीक हैं। हिंदी में ‘गोरैया’, तमिल में ‘कुरुवी’ और उर्दू में ‘चिरिया’ जैसे कई नामों से जानी जाने वाली गौरैया पीढ़ियों से हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा रही हैं। इसके बावजूद, गौरैया अब तेजी से लुप्त हो रही हैं। इस गिरावट के कई कारण हैं। सीसा रहित पेट्रोल के उपयोग से जहरीले यौगिक पैदा हुए हैं जो उन कीटों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिन पर गौरैया भोजन के लिए निर्भर हैं। शहरीकरण ने उनके प्राकृतिक घोंसले के स्थान भी छीन लिए हैं। आधुनिक इमारतों में वे स्थान नहीं होते जहां गौरैया घोंसला बना सकें, जिससे उनके बच्चों को पालने के लिए जगह कम हो गई है।

इसके अलावा, कृषि में कीटनाशकों के इस्तेमाल से कीटों की संख्या में कमी आई है। इससे गौरैया के भोजन की आपूर्ति पर और असर पड़ा है। कौओं और बिल्लियों की बढ़ती मौजूदगी और हरियाली की कमी ने समस्या को और बढ़ा दिया है। इन कारकों और जीवनशैली में बदलाव के कारण गौरैया के अस्तित्व पर संकट आ गया।

अब जरूरत है कि हम हमारे इन छोटे पंखों वाले मित्रों को बचाने के लिए गंभीर प्रयास करें। चाहे वह ज्यादा हरियाली लगाने, कीटनाशकों के उपयोग को कम करने, या सुरक्षित घोंसला बनाने जैसे छोटे प्रयास हों, हर कदम मायने रखता है। हम इन छोटे पक्षियों को हमारे जीवन में वापस ला सकते हैं और प्रकृति और मानवता के बीच सामंजस्य को बनाए रख सकते हैं।

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