बलिदान का मूर्त रूप है सेल्युलर जेल

सेल्युलर जेल“ओ, मेरी प्रिय मातृभूमि, तुम क्‍यों आंसू बहा रही हो?

विदेशियों के शासन का अंत अब होने को है!

वे अपना सामान बांध रहे हैं!

राष्‍ट्रीय कलंक और दुर्भाग्‍य के दिन अब लदने ही वाले हैं!

आजादी की बयार अब बहने को है,

आजादी के लिए तड़प रहे हैं बूढ़े और जवान!

जब भारत गुलामी की बेड़ियां तोड़ेगा,

‘हरि’ भी अपनी आजादी की खुशियां मनाएगा!’’


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