देशभर में 1 जुलाई से लागू हुए तीन नए आपराधिक कानूनों को दंड की जगह न्याय देने वाला और पीड़ित-केन्द्रित बताया जा रहा है।
नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि नए कानूनों को हर पहलू पर चार वर्षों तक विस्तार से अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा करके लाया गया है।
गृह मंत्री ने कहा कि आजादी के 77 साल बाद भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली आज पूर्णतया स्वदेशी हो रही है और यह तीन नए कानून आज से देश के हर पुलिस थाने में लागू हो जाएंगे। शाह ने कहा कि इन कानूनों के आधार में दंड की जगह न्याय, देरी की जगह त्वरित ट्रायल और त्वरित न्याय को रखा गया है। इसके साथ ही पहले के कानूनों में सिर्फ पुलिस के अधिकारों की रक्षा की गई थी लेकिन इन नए कानूनों में अब पीड़ितों और शिकायतकर्ता के अधिकारों की भी रक्षा करने का प्रावधान है।
शाह ने कहा कि इन कानूनों में अंग्रेजों के समय से विवाद में रहे कई प्रावधानों को हटाकर आज के समय के अनुकूल धाराएं जोड़ी गई हैं। साथ ही, भारतीय संविधान की आत्मा के अनुरूप धाराओं ओर अध्यायों की प्राथमिकता तय की गई है। उन्होंने कहा कि नए कानूनों में सबसे पहली प्राथमिकता महिलाओं व बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को दी गई है।
इसी प्रकार, इन कानूनों में पहली बार बार मॉब लिंचिंग को परिभाषित कर इसके लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान किया गया है। नए कानूनों में अंग्रेजों का बनाया राजद्रोह का कानून समाप्त कर दिया गया है। नए कानून में देशविरोधी गतिविधियों के लिए नई धारा जोड़ी गई है जिसके तहत भारत की एकता और अखंडता को क्षति पहुंचाने वालों को कड़ी सज़ा का प्रावधान है।
शाह के अनुसार, इन कानूनों के देशभर में पूरी तरह लागू होने के बाद भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली दुनिया की सबसे आधुनिकतम न्याय प्रणाली बन जाएगी। तीनों नए कानूनों में तकनीक को न केवल अपनाया गया है, बल्कि इस तरह का प्रावधान भी किया गया है कि अगले 50 सालों में आने वाली सभी तकनीकें इसमें समाहित हो सके।
गृह मंत्री ने बताया कि देशभर के 99.9 प्रतिशत पुलिस थाने कंप्यूटराइज़्ड हो चुके हैं। ई-रिकॉर्ड जनरेट करने की प्रक्रिया भी 2019 से शुरू हो गई थी। जीरो-प्राथमिकी, ई-प्राथमिकी और आरोपपत्र सभी डिजिटल होंगे। नए कानूनों में सभी प्रक्रियाओं के पूरा होने की समयसीमा भी तय की गई है। पूरी तरह लागू होने के बाद तारीख पर तारीख से निजात मिल सकेगी। अब किसी भी मामले में प्रथमिकी दर्ज होने से सुप्रीम कोर्ट तक तीन साल में न्याय मिल सकेगा।
नए कानूनों में सात साल या उससे अधिक की सज़ा वाले अपराधों में फॉरेंसिक जांच को अनिवार्य किया गया है। इससे न्याय जल्दी मिलेगा और दोष-सिद्धि दर को 90 फीसदी तक ले जाने में सहायक होगा।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 में भी साक्ष्य के संबंध में टेक्नोलॉजी को बढ़ावा दिया गया है। इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के प्रति विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। अब सर्वर लॉग्स, स्थान संबंधी साक्ष्य और वॉयस मैसेजेज़ की व्याख्या की गई है। तीनों नए कानून देश की आठवीं अनुसूची की सभी भाषाओं में उपलब्ध होंगे और केस भी उन्हीं भाषाओं में चलेंगे।
नए कानूनों पर लगभग 22.5 लाख पुलिसकर्मियों के प्रशिक्षण के लिए अभी तक 23 हजार से अधिक मास्टर ट्रेनर्स का प्रशिक्षण किया जा चुका है। ज्यूडिशरी में 21 हजार सब-ऑर्डिनेट ज्यूडिशरी की ट्रेनिंग हो चुकी है। साथ ही, 20 हजार पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को प्रशिक्षित किया गया है।
ध्यान रहे, इन कानूनों पर लोकसभा में कुल 9 घंटे 29 मिनट चर्चा हुई, जिसमें 34 सदस्यों ने हिस्सा लिया, जबकि राज्यसभा में हुई 6 घंटे 17 मिनट की चर्चा में 40 सदस्यों ने हिस्सा लिया।
पुलिस रिमांड पर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए गृह मंत्री ने कहा कि नए कानूनों के तहत रिमांड का समय पहले की तरह 15 दिन का ही है। उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि इन कानूनों में 60 दिन के अंदर कुल 15 दिन की रिमांड का प्रावधान किया गया है। 15 दिन की रिमांड की सीमा को नहीं बढ़ाया गया है।






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