जहां गिरा माता सती का हृदय, वहीं बसा है अंबा माता का मंदिर

अंबाजी माता का मंदिर भारत के सबसे प्राचीन और प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। इसके पीछे प्रचलित कहानी के अनुसार, जब देवी सती ने अग्निकुंड में कूदकर अपनी जान दे दी तो उनकी मृत्यु से निराश होकर शिव अपने रौद्र रूप के साथ उनके जलते शरीर को गोद में लेकर निकल पड़े। यह देख भगवान विष्णु ने अपना दिव्य चक्र छोड़ दिया जिससे माता सती के शरीर के टुकड़े अलग-अलग दिशाओं में जाकर गिर पड़े। कहा जाता है कि उनका हृदय इसी स्थान पर गिरा था।

अरावली पर्वत श्रृंखला स्थित अरसुरी पहाड़ी पर यह मंदिर स्थापित है। यह मंदिर मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक है। अंबाजी मंदिर निर्माण के बारे में कई दंत कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन, ज्यादा प्रामाणिक रूप से मंदिर का निर्माण साल 1584 से 1594 के बीच कराया माना जाता है। इसके निर्माण में अहमदाबाद के एक भक्त तपिशंकर की अहम भूमिका रही। हाल के वास्तु अनुसंधान से पता चला है कि वल्लभी राजा अरुण सेन ने 14वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया था। वह सूर्यवंशी कबीले के सदस्य थे।

हर साल हजारों की संख्या में श्रृद्धालु यहां अंबा माता के दर्शन करने आते हैं। भद्रवी पूर्णिमा, नवरात्रि और दीवाली के दिनों में भक्तों की यहां सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। आस-पास जंगलों की मौजूदगी के चलते श्रद्धालुओं को आध्यात्मिकता के साथ-साथ यहां भरपूर प्राकृतिक नजारे भी दिखाई देते हैं। मंदिर के आसपास कई दूसरे पर्यटन स्थल भी मौजूद हैं।

गुजरात के बनासकांठा जिले की सीमा के अंदर आने वाला यह मंदिर इसलिए भी अनोखा माना जाता है क्योंकि यहां देवी की मूर्ति के बजाय पवित्र ‘श्री’ यंत्र है। इस यंत्र की ही यहां पूजा की जाती है। खास बात यह है कि इस श्री यंत्र को देखने की मनाही है। इसका फोटो खींचना भी निषेध है। भक्त इसकी पूजा आंखों पर सफेद पट्टी बाधंकर करते हैं।

मंदिर सफेद संगमरमर से बना है, जिसमें सोने के शंकु हैं। प्रवेश करने के लिए एक मुख्य द्वार और बगल में एक और छोटा दरवाजा है। मंदिर के गर्भगृह को चांदी के दरवाजों से सुशोभित किया गया है। कक्ष के अंदर एक आला है, जिसे दीवार में लगाया गया है। इसी पर पूजा करने के लिए यह पवित्र श्री यंत्र स्थापित है। मंदिर के अंदर मूर्ति की अनुपस्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि यह मंदिर यहां प्राचीन समय से मौजूद है। यहां के पुजारी इस पूजा क्षेत्र को इस तरह से सजाते हैं कि इसे कोई भी देवता की छवि के रूप में देख सके। मंदिर से थोड़ी दूरी पर एक चौड़ा कुंड है, जिसे ‘मानसरोवर’ के नाम से जाना जाता है। यहां डुबकी लगाना बेहद पवित्र माना जाता है।

मंदिर में आंगन शक्ति, द्वार शक्ति, गर्भ गृह और निज मंदिर मौजूद है। मंदिर के शीर्ष पर 103 फीट की ऊंचाई पर एक राजसी कलश स्थापित है जिसका वजन तीन टन बताया जाता है। इस पर शुद्ध सोना चढ़ाया गया है। उसके साथ माता अंबा का पवित्र ध्वज और त्रिशूल भी जुड़ा है। दूसरी ओर, मुख्य मंदिर के गर्भगृह में एक विशाल मण्डप स्थित है। मंडप के सामने विशाल चहार चौक है।

रात्रि के समय, अंबाजी मंदिर में भव्य समारोह आयोजित किए जाते हैं। मंदिर परिसर में भक्तों द्वारा गरबा और अन्य लोक नृत्यों की प्रस्तुतियां दी जाती हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में रात के दौरान नायक और भोजोक समुदाय यहां भवई थिएटर का आयोजन करते हैं।

कहा जाता है कि यहां भगवान श्री कृष्ण का मुंडन संस्कार हुआ था। श्री कृष्णा की पत्नी रुक्मिणि ने भी भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए यहां पूजा की थी। इससे पहले, भगवान श्री राम भी एक बार यहां शक्ति उपासना के लिए ठहरे थे। पांडवों द्वारा भी अपने वनवास के दौरान यहां पूजा-अर्चना किए जाने की बात कही जाती है।

यहां रोपवे की सवारी, माताजी के झूले, गुफा और सूर्यास्त बिंदु का दृश्य बहुत सुन्दर दिखाई देता है। वराही माता का मंदिर, अंबिकेश्वर महादेव मंदिर, गणपति मंदिर और कई ऐसे दूसरे मंदिर यहां आसपास मौजूद हैं। खोड़ियार माता, अजय माता और हनुमान के मंदिर भी नजदीक के गांव में ही स्थापित हैं।

अंबाजी मंदिर सप्ताह के सभी सातों दिन दर्शन के लिए खुला रहता है। दर्शन करने का समय सुबह 7 बजे से 11 बजे तक, दोपहर को 12 बजे से शाम 4 बजे तक और शाम को 6 बजे से रात 9 बजे तक है।

यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन पालनपुर है, जो मंदिर से लगभग 40 किमी की दूरी पर स्थित है। वहीं, आबू रोड रेलवे स्टेशन यहां से करीब 20 किमी की दूरी पर है। अलग-अलग राज्यों के कुछ नजदीकी शहरों और अन्य शहरों से ट्रेनें पालनपुर से जुड़ी हुई हैं, जिनका उपयोग करके अंबाजी की एक कुशल यात्रा की योजना बनाई जा सकती है। टैक्सी और पब्लिक ट्रांसपोर्ट के दूसरे साधन भी यहां उपलब्ध हैं।



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