बाबा बटेश्वर नाथ धाम से जुड़ी हैं सैकड़ों कहानियां

आगरा में ताजमहल से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में यमुना नदी के किनारे बाबा भोलेनाथ की नगरी तीर्थ बटेश्वर धाम देशभर में प्रसिद्ध है। बाबा बटेश्वर नाथ धाम से सैकड़ों कहानियां जड़ी हुई हैं। ये सभी कहानियां सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलयुग कालखंड की हैं।

बाबा बटेश्वर नाथ धाम के इस प्राचीन मंदिर में भगवान शिव को मूंछों और बड़ी आंखों के साथ दिखाया गया है। यहां शिव और पार्वती सेठ-सेठानी की मुद्रा में बैठे हैं। शिव की इस तरह की मूर्ति दुनियाभर में इकलौती है। शिव को समर्पित इस विशाल मंदिर की दीवारों पर ऊंची गुंबददार छत है तथा इसका गर्भगृह रंगीन चित्रों से सुसज्जित है। गर्भगृह के सामने एक कलात्मक मंडप है। इस मंदिर में एक हजार मिट्टी के दीपकों का स्तंभ है जिसे ‘सहस्र दीपक स्तंभ’ कहा जाता है। बटेश्वर का यह धाम 101 शिव मंदिरों की श्रंखला के लिए भी पूरे प्रदेश में जाना जाता है। नागर शैली के इन खूबसूरत शिव मंदिरों का निर्माण भदावर के राजघराने में राजा बदन सिंह भदौरिया ने कराया था।

इस शिव मंदिर की मान्‍यता दूर-दूर तक है। लोग यहां घंटा चढ़ाकर मनौती मांगते हैं। यहां 50 ग्राम से लेकर पांच क्विंटल तक के घंटे चढ़ाए जा चुके हैं, निकटवर्ती एटा जिले के जलेसर क्षेत्र में बनते हैं। यहां कार्तिक शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया को प्रत्‍येक वर्ष बड़ा मेला लगता है जिसका मुख्‍य आकर्षण पशु मेला भी है। इस मेले में हर साल लाखों रुपयों का पशुओं का कारोबार होता है। पूर्णिमा पर विशेष स्नान के लिए यहां लाखों श्रद्धालुओं का आना होता है।

पुराणों में एक उल्लेख के अनुसार यहां पर भगवान श्री कृष्ण के पितामह राजा शूरसेन की राजधानी थी। महाभारत काल के दौरान वासुदेव की बारात बटेश्वर से मथुरा गई थी। जब जरासंध ने मथुरा पर आक्रमण किया तो यह स्थान भी नष्ट-भ्रष्ट हो गया। बटेश्वर-महात्म्य के अनुसार महाभारत युद्ध के समय बलभद्र विरक्त होकर इस स्थान पर तीर्थ यात्रा के लिए आए थे। यह भी लोकश्रुति है कि कंस का मृत शरीर बहते हुए बटेश्वर में आकर ‘कंस किनारा’ नामक स्थान पर ठहर गया था। इस स्थान का उल्लेख लिंग पुराण, मत्स्य पुराण, नारद पुराण तथा महाशिवपुराण में भी है। महाशिवपुराण के अंतर्गत कोटि रुद्र संहिता के अध्याय 2 के श्लोक 19 में इस तीर्थ की चर्चा की गई है।

यहां 22वें जैन तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की जन्मस्थली भी है। जैन परम्पराओं के अनुसार मुनि गर्भकल्याणक तथा जन्म-कल्याणक का निर्वाण इसी स्थान पर हुआ था।

इसके अलावा, भदौरिया राजाओं का महल जीर्ण-शीर्ण अवस्था में खड़ा आज भी अपनी भव्यता की कहानी कहता है। इस महल से एक सुरंग नीचे-ही-नीचे यमुना तट के जनाना घाट को गई थी, जहां रानियां स्नान करने जाया करती थीं। छोटी लखौरी ईंटों से बना यह किला किसी समय बटेश्वर की शान था। वर्तमान में यह किला झाड़-झंखाड़ और घास-पात से पटा पड़ा है। वर्षा के दिनों में यहां कभी-कभी चांदी के सिक्के मिल जाते हैं। बटेश्वर में किसी समय गोसाइयों, बैरागियों और ब्राह्मणों की बहुत सुंदर हवेलियां थीं। आज वे हवेलियां भी नष्ट हो गई हैं। बड़े-बड़े टीलों पर बसा यह ऐतिहासिक गांव धीरे-धीरे उजड़ता चला जा रहा है। यहां दो-दो मंजिल के अनेक भव्य मकान खाली पड़े हैं। यमुना तट पर एक प्रसिद्ध प्राचीन कुआं भी है, जिसे ‘भूड़ा-कुआं कहते हैं। इस इलाके के ज्यादातर कुओं का पानी बहुत खारा है लेकिन इस कुएं का पानी बहुत शीतल और मीठा है।

यमुना नदी पश्चिम से पूरब दिशा की ओर बहती है, लेकिन बटेश्वर नगरी में यह पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बहती हुई बटेश्वर का चक्कर लगाती है। इसके पीछे यहां लोक मानस में राजा भदौरिया से जुड़ी एक कहानी प्रचलित है। यहां नदी अर्द्धचंद्राकार का रूप लेती हुई बह रही है।

कहा जाता है कि अकबर के समय में यहां भदौरिया राजपूत राजा बदन सिंह थे। एक बार वह अकबर से मिलने गए और उसे बटेश्वर आने का निमंत्रण देते समय भूल से यह कह गए कि आगरा से बटेश्वर पहुंचने में यमुना नदी को पार नहीं करना पड़ता है, जो वस्तु स्थिति के विपरीत था। घर लौटने पर उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ, क्योंकि आगरा से बिना यमुना पार किए बटेश्वर नहीं पहुंचा जा सकता था। राजा बदन सिंह चिन्ता में पड़ गए और भय से कहीं सम्राट के सामने झूठा न बनना पड़े, उन्होंने यमुना की धारा को पूर्व से पश्चिम की ओर मुड़वाकर उसे बटेश्वर के दूसरी ओर कर दिया। इसके लिए एक मील लम्बे, अत्यन्त सुदृढ़ और पक्के घाटों का नदी तट पर निर्माण करवाया गया ताकि नगर को यमुना की धारा से हानि भी न पहुंचे।

कार्तिक पूर्णिमा में चंद्रमा का प्रकाश जब तट पर बनी 101 महादेव मंदिरों की श्रंखला पर पड़ता है तो मंदिरों का प्रतिबिंब यमुना में स्पष्ट झलकता है। यह अलौकिक पल श्रद्धालुओं को रोमांचित करता है। हालांकि, अब दर्जनों मंदिर व घाट ध्वस्त हो चुके हैं और कुछ गिरासू अवस्था में हैं।

बटेश्वर के घाट इसी कारण प्रसिद्ध हैं कि उनकी लम्बी श्रेणी अविच्छिन्न रूप से दूर तक चली गई है। उनमें बनारस की भांति बीच-बीच में रिक्तता नहीं दिखाई पड़ती। रात्रि में जब पूजा-आरती होती है, तब घंटा, घड़ियाल और शंख आदि के स्वरों से वातावरण गुंजित हो उठता है। ‘जय शंकर’, आदि के पावन तुमुल गगनभेदी स्वरों से जनमानस को भक्तिभाव में लीन कर देने वाले इस तीर्थ का माहत्म्य बहुत अधिक है।

भदावर में लोकविश्वास है की सभी तीर्थो की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती, जब तक कि बटेश्वर में पूजा का जल न चढ़ाया जाए। आदि काल से ही बटेश्वर शिव तीर्थ रहा है ‘गर्ग सहिंता’ में कहा गया है की श्रावण-शुक्ला और महाशिवरात्रि पर यमुना स्नान करने पर अक्षय पुण्य मिलता है। यह ब्रजमण्डल की चौरासी कोस की यात्रा के अंतर्गत आता है।

बटेश्वर अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के संस्कृत विद्वानों और आचार्यों को अच्छी ख्याति प्राप्त थी। श्रीमद्भागवत के प्रकांड पंडित आचार्य श्याम लालजी यहीं के निवासी थे। भदोरिया वंश के पतन के पश्चात बटेश्वर में 17वीं शती में मराठों का आधिपत्य स्थापित हुआ। इस काल में संस्कृत विद्या का यहां पर अधिक प्रचलन था। बटेश्वर में ही प्रसिद्ध वाजपेय यज्ञ हुआ था। यहां के वाजपेयी ऊंची मर्यादा के माने जाते हैं। यज्ञ-स्थल को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह पुण्यभूमि निश्चय ही प्राचीन है। वाजपेयी कुल की एक मठिया जिसे ‘गुज्जी बाबा’ की मठिया कहते हैं, यमुना के किनारे बनी हुई है। शुभ कार्यों के समय इस कुल के लोग यहां दर्शन-पूजन के लिए आते हैं। दूर-दूर से लोग यहां शंकरजी का जलाभिषेक करने, विल्वपत्र चढ़ाने और वंदन-अर्चन करने आते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का परिवार भी यहीं बटेश्वर गांव का रहने वाला था जो बाद में ग्वालियर जा बसे। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी का जन्म यहीं हुआ था।

आगरा से बटेश्वर के लिए रेल मार्ग से जा सकते हैं। आगरा से पैसेंजर ट्रेन यहां के लिए चलती है। वहीं, आगरा से सड़क मार्ग द्वारा भी यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। आगरा से यह क्षेत्र करीब 70 किलोमीटर दूर है। आगरा के बिजलीघर, ईदगाह और कलेक्ट्रेट से बाह के लिए बसें उपलब्ध हैं। यहां से बटेश्वर धाम मंदिर पहुंचा जा सकता हैं।

Related Items

  1. यमपाश से मुक्ति को भाई-बहन यहां यमुना में करते हैं एकसाथ स्नान...

  1. ‘पागल बाबा’ और उनके मंदिर की अजब कहानी

  1. इस बार जन्माष्टमी पर कान्हा की नगरी में तीन दिन रहेगी धूमधाम


Mediabharti